Friday, May 30, 2008

खून के रिश्ते

कहते हैं खून के रिश्ते आख़िर खून के रिश्ते होते हैं, लाख रंजिश हो, एक को तकलीफ में देख कर दूसरा तड़प उठता है, लेकिन लगता है ये सारी बातें , सारे दावे बदलते वक़्त के साथ साथ अपनी हैसियत बुरी तरह खोते जारहे हैं. आज सारे रिश्ते अपनी पाकीज़गी तो खो ही रहे हैं, ऐसा लगता है जैसे अपना वजूद भी खोते जा रहे हैं. हर दिन हम किसी किसी रिश्ते को दम तोड़ता हुआ देखने पर मजबूर हैं.

कल हल्द्वानी में हुयी एक घटना एक अजीब सी सोच को जन्म दे कर चली गई.
वाकया कुछ यूँ ही कि मुन्ना मंसूरी नाम के आदमी की बेटी रेशमा ने साल भर पहले अपने पड़ोस में रहने वाले लड़के से प्रेम विवाह किया था . लड़की के घर वाले इस रिश्ते के ख़िलाफ़ थे. बहरहाल दोनों हँसी खुशी जिंदगी गुजार रहे थे. रेशमा गर्भवती थी. बुधवार की शाम दोनों बाज़ार से खरीदारी कर के कार से लौट रहे थे. रास्ते में रेशमा के भाईयों ने उन पर धारदार हथियारों से हमला कर दोनों को बुरी तरह लहुलुहान कर दिया. लोगों ने जैसे तैसे दोनों को अस्पताल पहुंचाया, जहाँ देर रात , पहले रेशमा के साथ उसके पेट में आठ महीने के बच्चे , और थोडी देर बाद उसके पति की भी मौत हो गई.

इंसानियत और रिश्तों को शर्मसार करने वाली इस घटना से लोग भड़क उठे और उन्होंने रेशमा के भाइयों को पकड़ कर खूब पीटा और उनके घर को आग के हवाले कर दिया.

ये कोई अनोखी घटना नही है, ऐसी या इस से मिलती जुलती घटनाएं रोजाना हमारे अखबारों का हिस्सा बनती रहती हैं. हम सुबह की चाय के साथ इन्हें पढ़ते हैं और भूल जाते हैं. आरूशी हत्याकांड जैसी कुछ हाई प्रोफाइल घटनाएं ज़रूर लोगों की दिलचस्पी का कारण बनती हैं क्योंकि मीडिया दिन रात इनको हाई लाईट करता है.

लेकिन बहुत कम लोग हैं जो ये सोचते हैं कि आख़िर ऐसी घटनाओं का कारण क्या है?

रिश्ते कहाँ खोते जारहे हैं?

ज़रा ध्यान से ऐसी घटनाओं पर गौर करें तो एक सीधी साफ वजह समझ में आती है. वजह है बेटियाँ….

ऐसे सारे मामलों में आम तौर पर यही देखा गया है कि लड़की के घर वाले बेटी के साथ दामाद या उसके प्रेमी को मौत के घाट उतार देते हैं. कारण साफ है कि बेटी की दिखायी हिम्मत उन्हें रास नही आती और वो इसको अपने स्वाभिमान का मसला बना लेते हैं और इस कदर बना लेते हैं कि उसके आगे ना उन्हें रिश्ते दिखायी देते हैं उसके बाद होने वाली क़यामत का अहसास होता है.

ये स्वाभिमान सिर्फ़ बेटी की हिम्मत पर क्यों?

लड़के भी अपनी मरजी से शादी करते हैं. कई बार जात बिरादरी, यहाँ तक कि अपने धर्म से अलग लड़की से करते हैं. लड़के के घर वाले बड़े आराम से उन्हें माफ़ कर देते हैं लेकिन यही काम जब एक लड़की करती है तो सज़ा ही हक़दार क्यों ठहराई जाती है?

इस दोहरे मापदंड की वजह सदियों से बेटी को अपनी जायदाद समझने की मानसिकता रही है.

आज भी हम बेटी बहुओं को अपनी प्रापर्टी समझते हैं.

हमारी जायदाद सिर्फ़ हमारी है, जब इस जायदाद को किसी और को ले उड़ता देखते हें तो हमारा खून खौल उठता है और हम हर अंजाम को भूल कर मरने मारने पर तुल जाते हैं.

आख़िर ऐसा कब तक होता रहेगा?

हम क्यों नही समझते कि हमारी बेटियाँ भी इंसान हैं, उनके भी जज्बात हो सकते हैं, उन की भी कोई मरजी , पसंद ना पसंद हो सकती है.

ठीक है कि माँ बाप दुनिया को उन से ज़्यादा समझते है. ग़लत बातों पर उन्हें प्यार से समझया जासकता है. उंच नीच बताई जासकती है. लेकिन जब वो अपनी मरजी कर ही लें तो उन्हें उनकी जिंदगी का जिम्मेदार समझ कर हँसी खुशी रहने क्यों नही दिया जाता?

बीच में ये स्वाभिमान का मसला कहाँ से आजाता है?

जब तक हम बेटे और बेटियों को समान अधिकार नही देंगे, सवाभिमान कि ये आग ऐसे ही खूनी ताण्डव कराती रहेगी.

प्रस्तुतकर्ता- rakshchanda

Monday, May 26, 2008

जहांआरा मर रही है, उसे तुरंत मदद चाहिए

देर रात ईटीवी ने पूरे देश से की गुहार। आगरा में एक मां अपनी बेटी की मौत की दुआ कर रही है। लोहामंडी मेंरहती है वह। तिल-तिल मर रही है।
पैसे की कमी से डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। मां 20-20 रुपये में कुरान पढ़ाकर पैसे जुटा रही है, लेकिन उससेइलाज क्या होगा, घर का खर्चा भी बमुश्किल चल पा रहा है।
जहांआरा की दास्तान आंसुओं के सैलाब में डुबो देने वाली है। जब उसकी सगाई होने वाली थी, वह आग से जलगई। भावी ससुरालियों ने शादी रचाने से इंकार कर दिया।
इसके बाद साल-दर-साल गुजरते गए और मां-बेटी पर मुसीबतों का पहाड़ टूटता गया। मां भी अस्सी की दहलीजपार कर चुकी है। बेटी चारपाई पर पड़ी है।
अब बेवा मां आबिदा की एक ही ख्वाहिश है कि हे खुदा, तिल-तिल मर रही मेरी बेटी को इस दुनिया से उठा ले। मेरेमें इतना दम नहीं कि उसका दवा-इलाज कर सकूं। परवरिश का और कोई चारा नहीं
ईटीवी की अपील पर मुरादाबाद, देहरादून, महाराष्ट्र आदि से कई लोगों ने जहांआरा की मदद में हाथ बढ़ा दिए। सहायताराशि देने के लिए जहांआरा का खाता नंबर भी जारी किया गया।
यदि कोई जहांआरा का सहयोग करना चाहे तो इस नंबर पर ईटीवी से सहयोग संबंधी विस्तृत जानकारी ले सकता है।

बहनों, तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं!


उसे उसके पति ने पीटा,
उसे उसके भाई ने मार डाला,
उसे उसके पिता ने जला दिया,
उसे उसके बेटे ने घर से निकाल दिया।
और क्या-क्या हुआ
उसके साथ?
और क्या-क्या हो रहा है
उसके साथ?
और क्या-क्या होने वाला है
उसके साथ?


एक.............
भारत में घरेलू झगड़ों में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा को रोकने के तरीके ईजाद किये जाते रहे हैं लेकिन वे कितने कारगर हुए?

इस विधेयक की ख़ास बात ये है कि घरेलू हिंसा के दायरे में शारीरिक, मानसिक और यौन प्रताड़ना को तो शामिल किया ही गया है, साथ ही मारपीट की धमकी देने पर भी कार्रवाई हो सकती है.

एक महत्वपूर्ण बात इस विधेयक में यह कही गई है कि जो महिलाएँ बिना विवाह के किसी पुरुष के साथ रह रही हों, वो भी घरेलू हिंसा संबंधी विधेयक के दायरे में शामिल हैं.

विधेयक में इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि पीड़ित महिला हिंसा की शिकार ना हो, इसके लिए ग़ैरसरकारी संस्थाओं की मदद से सुरक्षा अधिकारी के इंतज़ाम करने का भी प्रावधान है.

सुरक्षा के इंतज़ाम

सरकार का कहना है कि इस क़ानून से महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा की रोकथाम में मदद मिलेगी.

इस क़ानून के तहत मजिस्ट्रेट पीड़ित महिला की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दे सकता है जिसके तहत उसे प्रताड़ित करने वाला व्यक्ति उस महिला से संपर्क स्थापित नहीं कर सकेगा.

मजिस्ट्रेट की ओर से आदेश पारित होने के बाद भी अगर महिला को प्रताड़ित करने वाला व्यक्ति उससे संपर्क करता है या उसे डराता-धमकाता है तो इसे अपराध माना जाएगा और इसके लिए दंड और 20 हज़ार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

मजिस्ट्रेट इस मामले में महिला के दफ़्तर या उसके कामकाज की जगह पर प्रताड़ित करने वाले व्यक्ति के प्रवेश पर रोक लगा सकता है.

भारत में घरेलू हिंसा की घटनाओं का स्तर कई देशों की तुलना में बहुत अधिक है और लंबे समय से ऐसे क़ानून की माँग महिला संगठनों की ओर से होती रही है।


दो................

एक सर्वे के मुताबिक अमेरिका के करीब एक-तिहाई पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार है। यह अलग बात है कि महिलाओं के उलट, पुरुषों की यह पीड़ा सामने नहीं आ पाती। इस उत्पीड़न का पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इस सर्वे में 400 लोगों की राय शामिल की गई। इनसे टेलीफोन पर सवाल-जवाब किए गए। साक्षात्कार में पांच प्रतिशत पुरुषों ने पिछले साल घरेलू हिंसा का शिकार होने की बात स्वीकारी, जबकि 10 फीसदी ने पिछले पांच सालों के दौरान और 29 फीसदी पुरुषों ने जीवन में कभी न कभी घरेलू हिंसा का शिकार होने की बात कबूल की। यह सर्वे राबर्ट जे रीड की अगुवाई में हुआ। रीड का कहना है कि पुरुष प्रधान समाज में घरेलू हिंसा के शिकार पुरुष शर्मिदगी महसूस करते है, क्योंकि समाज में उनको शक्तिशाली माना जाता है। वह बताते हैं कि घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों में युवाओं की संख्या कहीं ज्यादा है। 55 साल से अधिक उम्र वाले लोगों की तुलना में युवाओं की संख्या दोगुनी बताई गई है। रीड ने कहा कि इसका कारण है कि 55 से ऊपर के पुरूष घरेलू हिंसा के बारे में बात करने को तैयार नहीं होते हैं। अध्ययन ने इस भ्रम को भी गलत साबित कर दिया है कि घरेलू हिंसा के शिकार पुरूषों पर इसका कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ता। शोधकर्ताओं ने पाया कि घरेलू प्रताड़ना का शिकार पुरूषों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका काफी गंभीर प्रभाव पड़ता है। सर्वे में घरेलू हिंसा के दायरे में धमकाना, अभद्र टिप्पणी, शारीरिक हिंसा-मारपीट या फिर यौन संबंध के लिए मजबूर करने करना आदि को शामिल किया गया था।

तीन..........
हमारे देश में दो एक ही लिंग के व्यक्ति साथ नहीं रह सकते हैं और न उन्हें कोई कानूनन मान्यता या भरण-पोषण भत्ता दिया जा सकता है। यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या किसी महिला को, उस पुरुष से भरण-पोषण भत्ता मिल सकता है जिसके साथ वह पत्नी की तरह रह रही हो जब कि-
उन्होने शादी की हो; या
  • वे शादी नहीं कर सकते हों।
पत्नी का अर्थ केवल कानूनी पत्नी ही होता है। इसलिए न्यायालयों ने इस तरह की महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता दिलवाने से मना कर दिया। अब यह सब बदल गया है।

संसद ने, सीडॉ के प्रति हमारी बाध्यता को मद्देनजर रखते हुए, घरेलू हिंसा अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act) २००५ पारित किया है। यह १७-१०-२००६ से लागू किया गया। यह अधिनियम आमूल-चूल परिवर्तन करता है। बहुत से लोग इस अधिनियम को अच्छा नहीं ठहराते है, उनका कथन है कि यह अधिनियम परिवार में और कलह पैदा करेगा।

समान्यतया, कानून अपने आप में खराब नहीं होता है पर खराबी, उसके पालन करने वालों के, गलत प्रयोग से होती है। यही बात इस अधिनियम के साथ भी है। यदि इसका प्रयोग ठीक प्रकार से किया जाय तो मैं नहीं समझता कि यह कोई कलह का कारण हो सकता है।

इसका सबसे पहला महत्वपूर्ण कदम यह है कि यह हर धर्म के लोगों में एक तरह से लागू होता है, यानि कि यह समान सिविल संहिता स्थापित करने में बड़ा कदम है।

इस अधिनियम में घरेलू हिंसा को परिभाषित किया गया है। यह परिभाषा बहुत व्यापक है। इसमें हर तरह की हिंसा आती हैः मानसिक, या शारीरिक, या दहेज सम्बन्धित प्रताड़ना, या कामुकता सम्बन्धी आरोप।

यदि कोई महिला जो कि घरेलू सम्बन्ध में किसी पुरूष के साथ रह रही हो और घरेलू हिंसा से प्रताड़ित की जा रही है तो वह इस अधिनियम के अन्दर उपचार पा सकती है पर घरेलू संबन्ध का क्या अर्थ है।

इस अधिनियम में घरेलू सम्बन्ध को भी परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक कोई महिला किसी पुरूष के साथ घरेलू सम्बन्ध में तब रह रही होती जब वे एक ही घर में साथ रह रहे हों या रह चुके हों और उनके बीच का रिश्ता:
  • खून का हो; या
  • शादी का हो; या
  • गोद लेने के कारण हो; या
  • वह पति-पत्नी की तरह हो; या
  • संयुक्त परिवार की तरह का हो।

इस अधिनियम में जिस तरह से घरेलू सम्बन्धों को परिभाषित किया गया है, उसके कारण यह उन महिलाओं को भी सुरक्षा प्रदान करता है जो,
  • किसी पुरूष के साथ बिना शादी किये पत्नी की तरह रह रही हैं अथवा थीं; या
  • ऐसे पुरुष के साथ पत्नी के तरह रह रही हैं अथवा थीं जिसके साथ उनकी शादी नहीं हो सकती है।

इस अधिनियम के अंतर्गत महिलायें, मजिस्ट्रेट के समक्ष, मकान में रहने के लिए, अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए, गुजारे के लिए आवेदन पत्र दे सकती हैं और यदि इस अधिनियम के अंतर्गत यदि किसी भी न्यायालय में कोई भी पारिवारिक विवाद चल रहा है तो वह न्यायालय भी इस बारे में आज्ञा दे सकता है।

अगली बार चर्चा करेंगे वैवाहिक संबन्धी अपराध के बारे में और तभी चर्चा करेंगे भारतीय दण्ड सहिंता की उन धाराओं की जो शायद १९वीं सदी के भी पहले की हैं। जो अब भी याद दिलाती हैं कि पत्नी, पति की सम्पत्ति है। (उन्मुक्त से साभार)


चार...............

भारतीय परिवारों में बड़े पैमाने पर किए गए एक अध्ययन से यह साबित हुआ है कि घरेलू हिंसा के शिकार होने वाले भारतीय महिलाओं और बच्चों में कुपोषण का शिकार होने की संभावना औरों की अपेक्षा ज्यादा होती है। उन्हें रक्त और वजन की कमी जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है। यह तथ्य हार्वड स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ (एचएसपीएच) द्वारा किए गए एक अध्ययन से सामने आए हैं।
एचएसपीएच में मानव विकास और स्वास्थ्य तथा समाज विषय के प्रोफेसर एस.वी. सुब्रमण्यम ने कहा
, ''इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि घरेलू हिंसा और कुपोषण का आपस में गहरा संबंध है। भारत में भोजन न देना भी हिंसा का ही एक रूप है और यह स्वास्थ्य से सीधा जुड़ा हुआ है।''

शोध के लिए भारतीय राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 1998-99 के आंकड़ों का प्रयोग किया गया। अध्ययन में 15 से 49 आयुवर्ग की 69,072 महिलाएं तथा 14,552 बच्चे शामिल थे। इन सभी का प्रशिक्षित लोगों द्वारा व्यक्तिगत साक्षात्कार लिया गया। उनके साथ हुई घरेलू हिंसा के आंकड़ों के साथ ही उनके रक्त के नमूने लिए गए।

शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन महिलाओं ने यह स्वीकार किया था कि पिछले एक वर्ष के दौरान वे एक से अधिक बार घरेलू हिंसा की शिकार हुईं उनमें रक्ताल्पता और वजन कम होने की शिकायतऔरों के मुकाबले 11 फीसदी और 21 फीसदी ज्यादा थी।

शोधकर्ताओं ने कहा कि घरेलू हिंसा का असर इतना ज्यादा है कि इसे रोक कर महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक असर को रोका जा सकता है।

Sunday, May 25, 2008

रात के संतरी की कविता






रात को
ठीक ग्यारह बजकर तैंतालीस मिनट पर
दिल्ली में जीबी रोड पर
एक स्त्री
ग्राहक पटा रही है।

पलामू के एक कस्बे में
नीम उजाले में एक नीम हकीम
एक स्त्री पर गर्भपात की
हर तरकीब आजमा रहा है।

बाड़मेर में
एक शिशु के शव पर
विलाप कर रही है एक स्त्री।

मुंबई के एक रेस्त्रां में
नीली-गुलाबी रोशनी में थिरकती स्त्री ने
अपना आखिरी कपड़ा उतार दिया है
और किसी घर में
ऐसा करने से पहले
एक दूसरी स्त्री
लगन से रसोईघर में
काम समेट रही है।

महाराजगंज के ईंट-भट्टे में
झोंकी जा रही है एक रेजा मजदूरिन
जरूरी इस्तेमाल के बाद
और एक दूसरी स्त्री
चूल्हे में पत्ते झोंक रही है
बिलासपुर में कहीं।

ठीक उसी रात, उसी समय
नेल्सन मंडेला के देश में
विश्वसुंदरी प्रतियोगिता के लिए
मंच सज रहा है।

एक सुनसान सड़क पर एक युवा स्त्री से
एक युवा पुरुष कह रहा है
-मैं तुम्हें प्यार करता हूं।

इधर, कवि
रात के हल्के भोजन के बाद
सिगरेट के हल्के-हल्के कश लेते हुए
इस पूरी दुनिया की प्रतिनिध स्त्री को
आग्रह पूर्वक
कविता की दुनिया में आमंत्रित कर रहा है
सोचते हुए कि
इतने प्यार, इतने सम्मान की,
इतनी बराबरी की
आदी नहीं,
शायद इसलिए नहीं आ रही है।
झिझक रही है।
शरमा रही है।