Saturday, February 9, 2008

मेरे घर आईं तसलीमा नसरीन और आन्ना कारेनीना और


कितना अच्छा लग रहा है। आज मेरे घर पहली बार आईं तसलीमा नसरीन, जिन्हें दुनिया भर के गुंडा-मवाली और फिरकापरस्त हाथ धोकर खोज रहे हैं। सुना था कि इधर वह अपने अज्ञातवास में कहीं खरे-खरे अनुभवों को कविता के लय-ताल में निबद्ध कर रही हैं तो ढूंढते-ढाढ़ते में भी जाने कहां-कहां हो आयी। वह तो मिलीं नहीं, उनके अनमोल खजाने को जरूर सहेज लाई। आप समझ गए होंगे, मैं बात कर रही हूं विश्व पुस्तक मेले की। हां आज का पूरा दिन मैंने अपने जीवन साथी के साथ वहीं बिताया। खूब मजा आया। कितने अच्छे-अच्छे लोगों से मुलाकातें भी हुईं। उन्हीं में एक थे शशी दा। पचास साठ साल की उमर में वैसे ही लईम-सईम, फाड़-फाड़ कर आंखें झपकाते हुए, चेहरे पर मार्क्स की तरह झब्बेदार दाढ़ी, मुंह पर कितनी अच्छी-अच्छी बातें दुनिया भर की। और उनके साथ तमाम तरह के लोग। विश्व पुस्तक मेले में उन्होंने भी अपनी एक दुकान सजा रखी है। उनकी किताबें भी खूब बिक रही हैं। खूब आमदनी हो रही होगी और क्रांति-वांति की बातें भी। उनके साथ देश की जानी-मानी कवि कात्यायनी भी मौजूद थीं। कितनी अच्छी आंटी हैं वह, विचार-व्यवहार दोनों में। स्त्रियों के लिए बनारस से ही लगातार संघर्ष कर रही हैं बेचारी।


आन्ना कारेनीना तो बहुत पहले एक बार मेरे घर आई थीं, फिर कहीं चली गईं, आज तक पता नहीं चला। कोई शायद चुरा ले गया। सोची उन्हें भी घर लेती चलूं। सो एक स्टाल से उन्हें भी उठाकर झोले में डाल लिया। वेरा को भी ले आयी। वेरा उन सपनों की कथा कहो। कविता की बड़ी प्यारी किताब है यह है। करीब सात-आठ किताबें और। इनमें ज्यादातर आधी दुनिया के बारे में लिखी-पढ़ी गई हैं। अब इन्हें पढूंगी, फिर ब्लागर सहेलियों के लिए कुछ न कुछ लिखूंगी।




आज सिर्फ दो सवाल




-क्या ब्लॉगर सहेलियां अपने भी पुस्तकमेले के अनुभव यहां उपलब्ध कराएंगी?


-दुनिया के मेले में आधी दुनिया क्यों कहा जाता है स्त्री जाति को?

Thursday, February 7, 2008

ब्रेष्ट और कुछ औरतों की बातें

......
कैसा जमाना है
कि पेड़ों के बारे में बातचीत भी लगभग जुर्म है
क्योंकि इसमें बहुत सारे कुकृत्यों के बारे में हमारी चुप्पी भी शामिल है।
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हर चीज बदलती है
अपनी हर आखिरी सांस के साथ
तुम एक ताजा शुरुआत कर सकते हो।
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अमरीकी सिपाही ने जब मुझसे कहा
कि खाते-पीते मध्यवर्ग की जर्मन लड़कियां
तंबाकू के बदले और निम्न मध्य वर्ग की
चाकलेट के बदले खरीदी जा सकती हैं।
लेकिन भूख से तड़पते रूसी मजदूर
कभी नहीं खरीदे जा सकते
मुझे गौरव महसूस हुआ।
......

सिर्फ पांच सवाल
-रोजाना कितनी औरतें मरती हैं बीमारी से?
-रोजाना कितनी औरतें मरती हैं भूख से?
-रोजना कितनी लड़कियां स्कूल नहीं जाती हैं?
-रोजाना कितनी दहेज हत्याएं दर्ज होती हैं थानों में?
-जिस देश की राष्ट्रपति औरत हो, वहां की ज्यादातर औरतें गरीब क्यों हैं?