Wednesday, December 23, 2009

sansadji.com पर झारखंड चुनाव नतीजों का रुझान


भाजपा सबसे आगे लेकिन घाटे का सौदा भी. कांग्रेस मुख्य टक्कर में. शिबू सोरेन की भी फिर कट रही चांदी.....वाह रे झारखंड........सांसदजी डॉट कॉम पर सविस्तार शुरुआती रुझान

Monday, December 21, 2009

कब थमेगी भाजपा के भीतर की हलचल?

सांसदजी डॉट कॉम पर आज

क्यों गए आडवाणी? क्यों आईं सुषमा स्वराज? क्यों गए राजनाथ? क्यों आए गडकरी? देश के सबसे बड़े विपक्ष के भीतर की राजनीति हलचल नई सुर्खियां अख्तियार करने लगी है। पार्टी नई उम्मीदों के पंख लगाकर उड़ान भरना चाहती है। सविस्तार पढ़ें ....www.sansadji.com पर.

Tuesday, March 31, 2009

एचटी मीडिया में पहाड़ी लालटेन

किस्सा हिंदुस्तान अखबार की पहाड़ी चौकड़ी का.
मंगलेश डबराल का एक पुराना रचना संग्रह है...पहाड़ पर लालटेन. मिले तो पढ़ लीजिएगा. अच्छी किताब है.
एक अन्य कवि ने लिखा है...
पहाड़ पर कभी बाढ़ नहीं
जहां पहुंचकर
आदमी केंचुल छोड़ता है
और देवता बन जाता है.

....तो देवियों, सज्जनों इसी तरह के देवी-देवता आजकल हिंदुस्तान हिंदी दैनिक के मंदिर में वास कर रहे हैं. सारे के सारे पहाड़ी केंचुल छोड़ कर देवता हो चुकी हैं. शिवानी की महान सुपुत्री मृणाल पांडे के तो कहने ही क्या. बहुत बड़ी विदुषी हैं. सारी विद्वता शोभना भरतिया के पायताने चपराती रहती है.
....प्रमोद जोशी बहुत महान पत्रकार हैं. ऐसा पुरुषवादी दंभी कभी खोजे न मिले. अपने ऑफिस की महिलाओं को धक्का मारता है. उस मंडली के बीच दुःशासन की तरह, जो बड़ी अच्छी-अच्छी कविताएं और लेख लिखती है. लेखन पर लंबी-लंबी डींगे मारती है.
....अरे डूब मरो जी, तुम सब लोग, जो महिलाओं पर मर्दानगी दिखाने वाले ऐसे अराजक तत्व को अपने सिरहाने बिठाए हुए हो. देखते-सोचते क्या हो, धर दौड़ाओ पूंजी के दलाल पत्रकार शिरोमणियों को. ऐसा सबक सिखाओ कि अक्ल ठिकाने आ जाए.....पत्रकार एकता जिंदाबाद!!


...........और ये लो पढ़ो जोज्जोज्जोश्श्शी का कारनामा....हाल ही का है, अभी बसियाया नहीं है-




1...............
दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली के वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी के खिलाफ शैलबाला ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है। शैलबाला ने प्रमोद जोशी पर शारीरिक दुर्व्यवहार करने और साजिश रचने का आरोप लगाया है। दिल्ली के बारह खंभा रोड पुलिस थाने में दर्ज कराई गई शिकायत में शैलबाला ने कहा है कि वे जब कल आफिस पहुंचीं तो प्रमोद जोशी ने उन्हें इस्तीफे के पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा। हस्ताक्षर करने के बाद जब अपना सामान लेने के लिए सीट की तरफ लौटने लगीं तो प्रमोद जोशी ने धक्का देकर और बांह पकड़कर बाहर जाने वाले रास्ते की ओर बढ़ने को कहा। शैलबाला के मुताबिक प्रमोद जोशी को यह कतई अधिकार नहीं है कि वे किसी स्त्री के शरीर को टच करें। उन्हें इसके लिए महिला गार्ड को बुलाना चाहिए था।यह घटना उस संस्थान में हुई जहां प्रमुख संपादक और चेयरपर्सन दोनों महिला हैं। शैलबाला ने कहा है कि इस अशोभनीय घटना के वक्त दर्जनों मीडियाकर्मी मौजूद थे। भड़ास4मीडिया से बातचीत में शैलबाला ने कहा कि वे कल से जब भी इस घटना के बारे में सोच रही हैं, आंख में आंसू आ जा रहे हैं। क्या हम लोगों की यही औकात है? 33 साल तक जिस ग्रुप के साथ जुड़ी रही, वहां से जाते वक्त अपनी सीट से सामान तक नहीं लेने दिया गया और धक्के देकर बाहर निकाला गया। आज के समय में आप अपने नौकर तक से धक्का देकर बात नहीं कर सकते। एक महिला पत्रकार के साथ ऐसी हरकत की तो कल्पना तक नहीं की जा सकती। शैलबाला का कहना है वे आत्मसम्मान की इस लड़ाई से किसी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगी। शैलबाला की तीन पेज की लिखित शिकायत पर पुलिस ने धारा 34, 120, 120बी के तहत मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है।उधर, इस घटना की जानकारी मिलने पर कई पत्रकार संगठन भी सक्रिय हो गए हैं। पीआईबी जर्नलिस्टों के संगठन प्रेस एसोसिएशन के महासचिव राजीव रंजन नाग ने वरिष्ठ महिला पत्रकार के साथ घटी घटना को शर्मनाक बताया और आरोपी स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी के खिलाफ कार्यवाही की मांग की है। राजीव के मुताबिक शैलबाला बेहद निष्ठावान, ईमानदार और मेहनती जर्नलिस्ट रही हैं। उनके साथ प्रमोद जोशी ऐसा करेंगे, यह किसी को उम्मीद न थी। राजीव का कहना है कि लगता है हताशा के चलते प्रमोद जोशी अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं। राजीव ने बताया कि उनका संगठन इस मामले को महिला आयोग, महिला मंत्रालय, पुलिस कमिश्नर, गृह मंत्री आदि तक पहुंचाएगा। साथ ही एचटी ग्रुप की मुखिया शोभना भरतिया के संज्ञान में भी यह मामला लाया जाएगा।भड़ास4मीडिया ने दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली के वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी से संपर्क किया तो उनका कहना था कि सारे आरोप बेबुनियाद और सरासर झूठ हैं। उन्होंने ऐसी किसी घटना में खुद के शामिल होने से इनकार किया।

2......................
शैलबाला द्वारा प्रमोद जोशी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने से पहले ही एचटी प्रबंधन ने बारहखंभा रोड थाने में एक लिखित अर्जी दायर कर प्रबंधन के लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराए जाने की आशंका जाहिर करते हुए पुलिस को आगाह कर दिया था। एचटी के सीनियर एक्जीक्यूटिव (लीगल) शुवन दास द्वारा थाने में दिए गए पत्र की एक प्रति भड़ास4मीडिया के पास भी है, जिसे नीचे हू-ब-हू प्रकाशित किया जा रहा है। पत्र में कहा गया है कि एचटी प्रबंधन प्रशासनिक आधार पर कुछ कर्मचारियों को संस्थान से बाहर कर रहा है। ऐसे कमर्चारियों की तरफ से प्रबंधन के लोगों के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराए जाने की आशंका है। पत्र में शैलबाला के नाम का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इन्होंने प्रबंधन के कई लोगों को मुकदमें में फंसाने की धमकी दी है।पत्र के मुताबिक पुलिस एचटी मीडिया के प्रमोद जोशी, मृणाल पांडे, बासुकी नाथ, कनिका बिंद्रा समेत किसी भी कर्मचारी के खिलाफ झूठी रिपोर्ट न दर्ज करे। अगर पुलिस को किसी कर्मचारी की तरफ से कोई शिकायती पत्र मिलता है तो कोई भी कार्रवाई करने से पहले पुलिस पहले एचटी मीडिया को सूचित करे और दूसरे पक्ष का जवाब ले। 21 जनवरी को बारहखंभा रोड पुलिस थाने में रिसीव कराए गए इस पत्र में जो कुछ कहा गया है, वो इस प्रकार है-
HT Media Limited

Regd. Office : Hindustan Times House

18-20, Kasturba Gandhi Marg

New Delhi- 110001

Tel. : 66561234 Fax : 23704600

www.hindustantimes.com

To,

The Station Head Officer

P.S: Barakhamba Road

CP, New Delhi 110001

Sub: Intimation

Dear Sir,

We have to inform you that, we are termination the services of our few employees on certain administrative ground irrespective of particular gender. While handing over the termination letter to one such employee Ms. Shail Balla, who was associated with our editorial for Hindi Hindustan newspaper, she agitated and threatens to file false/frivolous criminal complaint for molestation and sexual harassment against the management and her immediate supervisor. Therefore as a precautionary measure we are filing this intimation for not registering any false / frivolous complaint against Mr. Pramod Joshi, Ms. Mrinal Pande, Mr. Basuki Nath and Ms. Kanika Bindra and / or against any officer / Employees of HT Media Ltd.
Therefore, if you receive any such complaint, request you to intimate us and take our reply before taking any action on such frivolous complaint.

Thanking Your

For HT Media Ltd.

(Shuvan Das)

Senior Executive-Legal

Date: 21/01/2009



3....................
दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली के वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी द्वारा वरिष्ठ पत्रकार शैलबाला से दुर्व्यवहार किए जाने के मामले में नया मोड़ तब आ गया जब एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी ने संयुक्त रूप से दिल्ली हाईकोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया। सूत्रों के अनुसार शैलबाला के अलावा जिन तीन लोगों को कोर्ट में आरोपी बनाया गया है, उनके नाम हैं- यशवंत सिंह (भड़ास4मीडिया), राजीव रंजन नाग (वरिष्ठ पत्रकार) और अनिल तिवारी (पूर्व एचटी कर्मी)। बताया जाता है कि मानहानि के एवज में एचटी ग्रुप और प्रमोद जोशी ने लाखों रुपये की मांग की है। भड़ास4मीडिया प्रतिनिधि ने प्रमोद जोशी से जब मुकदमे के बाबत फोन पर बात की तो उन्होंने शैलबाला, यशवंत, राजीव और अनिल पर मुकदमा किए जाने की बात को कुबूल किया और इसे संस्थान की रूटीन कार्यवाही का हिस्सा करार दिया।
एक संपादक द्वारा छंटनी के शिकार अपने मीडियाकर्मियों पर ही मुकदमा किए जाने के सवाल पर प्रमोद जोशी ने कहा कि अगर कोई खुद को पीड़ित महसूस करता है तो उसे कोर्ट जाने का अधिकार है और उन्होंने इसी अधिकार का उपयोग किया है। प्रमोद जोशी ने यह भी कहा कि वे एचटी ग्रुप के कर्मचारी हैं और ग्रुप ने कोर्ट में जाने का अगर फैसला किया है तो उन्हें इसके लिए सहमत होना ही पड़ेगा। श्री जोशी ने कहा कि उनकी छवि खराब करने के लिए उन्हें तरह-तरह से निशाना बनाया जा रहा है और उनके खिलाफ तमाम तरीकों से दुष्प्रचार किया जा रहा है। इसी के चलते वे बतौर पीड़ित, न्याय पाने के लिए कोर्ट की शरण में गए हैं।
मुकदमा किए जाने की सूचना मिलने पर वरिष्ठ पत्रकार शैलबाला बिफर पड़ीं। उन्होंने कहा कि यह मेरे पर अत्याचार है। एक तो 32 साल की नौकरी करने के बाद धक्के देकर और दुर्व्यवहार करके बाहर निकाला गया। दुर्व्यवहार के खिलाफ न्याय पाने के लिए मैं थाने गई पर ऊंचे पद पर बैठे आरोपियों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। बेरोजगारी की इस स्थिति में मुकदमा होना मेरे साथ एक और अन्याय है। मुकदमा लड़ने के लिए कहां से पैसा लाऊंगी? पीड़ित महिला को न्याय दिलाने के बजाय उल्टे मुकदमों में फंसाकर कोर्ट-कचहरी में घसीटा जा रहा है। नौकरी छीनने और दुर्व्यवहार करने से पेट नहीं भरा तो अब बेरोजगार महिला को मुकदमें के जरिए तंग किया जा रहा है। मैं न्याय की लड़ाई लड़ रही हूं और लड़ती रहूंगी। इन धमकियों से डरने वाली नहीं हूं। अगर कोर्ट में घसीटा ही गया है तो कोर्ट में मैं वो सब बताऊंगी जो मेरे साथ किया गया है। मैंने एचटी ग्रुप में 32 साल तक सात संपादकों के अधीन काम किया है। कोई नहीं कह सकता कि मैंने कभी किसी पर कोई आरोप लगाया हो या किसी के साथ कोई गलत व्यवहार किया हो। जब मैंने दुर्व्यवहार किए जाने की रिपोर्ट थाने में लिखाई तो प्रबंधन के लोगों ने थाने में अप्लीकेशन दे दिया कि उन्हें आशंका है कि शैलबाला आरोप लगा सकती हैं। आखिर उन्हें यह सपना कैसे आया? यह सब पैसे और पद के दुरुपयोग का खेल है। वे एक वरिष्ठ पत्रकार होकर यह सब झेल रही हैं तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा, इसकी कल्पना भर की जा सकती है। सबसे दुखद यह है कि एक महिला के साथ उसी संस्थान के लोग अत्याचार कर रहे हैं जिस संस्थान के वरिष्ठ पदों पर जानी-मानी महिलाएं बैठी हैं।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन नाग का कहना है कि मुकदमें के बारे में मुझे आपसे जानकारी मिल रही है। अगर नोटिस मिलता है तो वे कोर्ट के सामने पक्ष रखेंगे। लीगल फोरम के जरिए इसका सामना करेंगे। अगर दुर्व्यवहार की शिकार एक वरिष्ठ महिला पत्रकार का साथ देना कोई अपराध है तो मैंने ये अपराध किया है। हकीकत का पर्दाफाश अदालत में किया जाएगा। प्रमोद जोशी ने अगर अदालत में जाने का साहस किया है तो उनके इस साहस को मैं सलाम करता हूं। यह एक बड़ी लड़ाई है। प्रतिष्ठान और पद की आड़ में व्यक्तियों को धमकाने की प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए। अगर पीड़ित महिला का पक्ष लेना मानहानि है तो इसका जवाब अदालत में दिया जाएगा। हम अदालत का सम्मान करते हैं और अदालत के फैसले का भी सम्मान करेंगे। पर हम ये जानना चाहते हैं कि इस धर्मनिरपेक्ष देश भारत में पैगंबर मोहम्मद की आकृति प्रकाशित करने वाले अभी जेल के पीछे क्यों नहीं गए? किस तरह मामले को रफा-दफा किया गया? सबको पता है कि इस्लाम में पैगंबर मोहम्मद की आकृति प्रकाशित करने से परहेज करने की बात कही गई है। इंडिया सेकुलर कंट्री है लेकिन ये अखबार धर्म का अपमान कर रहे हैं। जो संपादक गांधी को फासिस्ट बताने वाले लेख उसी अखबार में लिख और छाप चुके हैं जो अखबार कभी गांधी का प्रवक्ता हुआ करता था, उऩकी समझ पर तरस आता है। फ्रीडम आफ एक्सप्रेसन की लड़ाई लड़ने वाले अखबार में बैठे लोग अब न्याय की आवाज उठाने वाले लोगों की आवाज बंद करने पर तुले हुए हैं, यह शर्मनाक है। हम जानना चाहते हैं कि प्रमोद जोशी ने अपने पूरे करियर की मानहानि की कीमत क्या लगाई है?
भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह ने इस प्रकरण पर कहा कि अभी तक कोई नोटिस नहीं मिला है लेकिन प्रमोद जोशी जी ने बातचीत में स्वीकारा है कि मुकदमा कर दिया गया है। प्रमोद जी वरिष्ठ पत्रकार और संपादक हैं। उनसे अपेक्षा नहीं थी कि वे पत्रकारों पर ही मुकदमा कर देंगे। संपादक का दूसरा मतलब सहृदय, सरल और सहज भी होता है। संपादकों पर मुकदमें होते आए हैं, ये तो हम लोगों ने सुना है लेकिन संपादक को अपने पत्रकारों पर ही मुकदमा करना पड़ा, यह पहली बार सुन रहा हूं। प्रमोद जी की यह हरकत उनकी सोच और व्यक्तित्व को दर्शाती है। रही बात शैलबाला प्रकरण की, तो इसको लेकर जितनी भी खबरें भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित की गईं, उस पर एचटी मीडिया की तरफ से जो भी पक्ष आया, उसे हू-ब-हू और ससम्मान प्रकाशित किया गया। बावजूद इसके, मुकदमा करना नीयत में खोट दर्शाता है। कहीं न कहीं यह मामला वेब जर्नलिस्ट सुशील कुमार सिंह के मामले जैसा है जिसमें उन्हें अपनी वेबसाइट पर एचटी ग्रुप के बारे में एक खबर लिखने पर पुलिस का सामना करना पड़ा था और आज तक वे परेशान हैं। सुशील जी के प्रकरण के वक्त देश भर के पत्रकारों ने एकजुट होकर आवाज बुलंद किया था लेकिन लगता है एचटी ग्रुप ने सबक नहीं लिया। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कुछ लोग एचटी ग्रुप की छवि खराब करने पर आमादा हैं। तभी वे बार-बार अपने गलत कार्यों का खुलासा करने वालों को कोर्ट-कचहरी और पुलिस के जरिए परेशान करने में लग जाते हैं। जहां तक भड़ास4मीडिया की बात है तो यह देश के लाखों पत्रकारों की आवाज उठाने वाला पोर्टल है और यह संभावित है कि प्रबंधन के लोग इसे अपना निशाना बनाएंगे। अभी तक निशाना क्यों नहीं बनाया गया, यही आश्चर्य की बात है।
यशवंत सिंह ने आगे कहा कि भड़ास4मीडिया की टीम देश भर के आम पत्रकारों के शारीरिक, आर्थिक और नैतिक सहयोग से कोर्ट में पूरी मजबूती से अपना पक्ष रखेगी। अगर जेल जाने की स्थिति आती है तो हम सहर्ष जेल जाएंगे क्योंकि यह मसला लोकतांत्रिक दायरे में अभिव्यक्ति की आजादी का मामला है। अगर एचटी ग्रुप और प्रमोद जोशी के चलते भड़ास4मीडिया का संचालन बंद कराया जाता है तो यह भारतीय मीडिया के इतिहास में कारपोरेट मीडिया की दबंगई व मनमानी के गहन भयावह दौर का प्रारंभ होगा। न्यू मीडिया माध्यम (ब्लाग, वेबसाइट, मोबाइल आदि) अभी जब अपने पैर पर खड़ा होना सीख रहे हैं, ऐसे में परंपरागत और स्थापित मीडिया माध्यमों में सर्वोच्च पदों पर बैठे स्वनामधन्य लोगों द्वारा इस तरह का दादा जैसा व्यवहार करना, न सिर्फ अनैतिक और गैर-पेशेवराना है बल्कि लोकतंत्र व मीडिया में आस्था रखने वालों को हताश करने वाला भी है। अभी तो मामला सिर्फ मुकदमें तक है। मुझे आशंका है कि ये लोग अपनी श्रेष्ठता और सर्वोच्चता साबित करने के लिए प्रतिक्रियास्वरूप हम न्यू मीडिया माध्यम के संचालकों को शारीरिक रूप से भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन सच कहने की जिद के चलते हम लोग वो सब कुछ झेलने को तैयार हैं जो हर युग में किसी न किसी सच कहने वाले को झेलना पड़ा है। मुझे पूरा विश्वास है कि देश भर के मीडियाकर्मी इस संकट की घड़ी में भड़ास4मीडिया के साथ खड़े होंगे। यह मुकदमा अगर शुरू होता है तो ऐतिहासिक मुकदमा होगा जिसकी अनुगूंज दूर तक सुनाई देगी।


4................
दैनिक हिंदुस्तान के साथ कई दशक से जुड़े वरिष्ठ मीडियाकर्मियों से जबरन इस्तीफा लिए जाने की खबर है। सूत्रों के मुताबिक विनोद वार्ष्णेय (ब्यूरो चीफ, दिल्ली), अरुण कुमार (बिजनेस एडीटर, दिल्ली), राजीव रंजन नाग (स्पेशल करेस्पांडेंट, दिल्ली), विवेक शुक्ला (स्पेशल करेस्पांडेंट, दिल्ली), अनिल वर्मा (स्पेशल करेस्पांडेंट, चंडीगढ़), श्रीपाल जैन (सीनियर असिस्टेंट एडीटर, दिल्ली), बीरेन मेहता (स्पेशल करेस्पांडेंट, दिल्ली), संदीप ठाकुर (सीनियर करेस्पांडेंट, दिल्ली) को संस्थान ने कार्यमुक्त कर दिया है। सूत्रों का कहना है कि दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली की स्पेशल करेस्पांडेंट शैलबाला का भी इस्तीफा तैयार है। शैलबाला को किसी तरह भनक लग गई और वे छुट्टी पर चली गईं हैं। सूत्रों के मुताबिक कुल 18 लोगों को हटाया जाना है।'मिंट' की पोलिटिकल एंड डिप्लोमेटिक एडीटर ज्योति मल्होत्रा कार्यमुक्त इनमें से अभी तक 9 लोगों के नाम पता चल सके हैं। बताया जाता है कि जनरल मैनेजर बासुकी नाथ ने इन सभी को एक एक कर बुलाया और सामने इस्तीफे का पत्र रखकर इस पर दस्तखत करने को कहा। ऐसा न करने पर टर्मिनेट कर दिए जाने की बात कही। इसको लेकर इन सभी वरिष्ठ मीडियाकर्मियों की नोकझोंक भी हुई लेकिन सबने दुखी मन से इस्तीफे पर हस्ताक्षर किया और घर लौट गए। बताया जाता है कि सभी को दो महीने की बेसिक सेलरी का चेक थमाया गया। यह एमाउंट एक महीने की संपूर्ण सेलरी के आधे से भी कम है। नौकरी से कार्यमुक्त किए गए लोगों में विनोद वार्ष्णेय सबसे वरिष्ठ हैं। वे लगभग 37 वर्ष से एचटी ग्रुप की सेवा में थे। विवेक शुक्ला आलराउंडर पत्रकार माने जाते हैं। विवेक ने एचटी और हिंदुस्तान दोनों के लिए हिंदी-अंग्रेजी में हजारों की संख्या में लेख, खबरें और कवर स्टोरी लिखी हैं। वे 23 वर्षों से इस ग्रुप के साथ जुड़े हुए थे।सूत्रों के मुताबिक पहले चर्चा थी कि जिनकी उम्र 55 साल से ज्यादा है, उन लोगों को कार्यमुक्त किया जा सकता है लेकिन इस पैमाने पर विवेक शुक्ला, राजीव रंजन नाग और संदीप ठाकुर फिट नहीं बैठते। बावजूद इसके इन तीनों को कार्यमुक्त किया गया है। बताया जाता है कि आज पूरे दिन एचटी बिल्डिंग में हड़कंप मचा रहा। हिंदुस्तान के दूसरे मीडियाकर्मियों ने निकाले गए अपने वरिष्ठ साथियों के सम्मान में उन्हें विदा करने एचटी बिल्डिंग के बाहर तक आए। बताया जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में कई अन्य लोगों को भी इस्तीफे का पत्र थमाया जा सकता है।एक अन्य खबर के मुताबिक 'मिंट' अखबार की पोलिटिकल एंड डिप्लोमेटिक एडीटर ज्योति मल्होत्रा को कार्यमुक्त कर दिया गया है। ज्योति आईएनएक्स से आईं थीं और वे इंडियन एक्सप्रेस के साथ भी काम कर चुकी हैं।





Saturday, March 7, 2009




कात्यायनी....चाहत

ख़ामोश उदास घंटियों की
बज उठने की सहसा उपजी ललक,
घास की पत्तियों का
मद्धम संगी

रेगिस्तान में गूँजती
हमें खोज लेने वाले की
विस्मित पुकार,
दहकते जंगल में
सुरक्षित बच रहा
कोई नम हरापन ।
यूँ आगमन होता है
आक
स्मिक
प्यार का

शुष्कता के किसी यातना शिविर में भी
और हम चौंकते नहीं
क्योंकि हमने उम्मीदें बचा रखी थीं
और अपने वक़्त की तमाम
सरगर्मियों और जोख़िम के
एकदम बीचोंबीच खड़े थे



अनामिका......अयाचित

मेरे भंडार में
एक बोरा ‘अगला जनम’
‘पिछला जनम’ सात कार्टन
रख गई थी मेरी माँ।

चूहे बहुत चटोरे थे
घुनों को पता ही नहीं था

कुनबा सीमित रखने का नुस्खा

... सो, सबों ने मिल-बाँटकर

मेरा भविष्य तीन चौथाई
और अतीत आधा
मज़े से हज़म कर लिया।

बाक़ी जो बचा
उसे बीन-फटककर मैंने
सब उधार चुकता किया
हारी-बीमारी निकाली
लेन-देन निबटा दिया।
अब मेरे पा
स भला क्या है ?

अगर तुम्हें ऐसा लगता है
कुछ है जो मेरी इन हड्डियों में है अब तक
मसलन कि आग
तो आओ
अपनी लुकाठी सुलगाओ।



अरुणा राय......आंखों के तरल जल का आईना

मेरा यह आईना
शीशे का नहीं

जल का है

यह टूट कर
बिखरता नहीं

बहुत संवेदनशील है यह
तुम्हारे कांपते ही
तुम्हारी छवि को
हजार टुकडों में

बिखेर देगा यह

इसलिए
इसके मुकाबिल होओ
तो थोडा संभलकर

और हां
इसमें अपना अक्श

देखने के लिए
थोडा झुकना पडता है
यह आंखों के तरल

जल का आईना है



रेखा....बेटियां
हैरान हूँ यह सोचकर
कहाँ से आती हैं बार-बार
कविता में बेटियाँ
बाजे बजाकर
देवताओं के साक्ष्य में
सबसे ऊँचे जंगलों
सबसे लम्बी नदियों के पार
छोड़ा था उन्हें

अचरज में हूँ
इस धरती से दूर
दूसरे उपग्रहों पर चलीं गई वे बेटियाँ
किन कक्षाओं में
घूमती रहती है आस-पास
नये-नये भाव वृत्त बनाती
घेरे रहती हैं
कैसे जान
लेती हैं-

लावण्या शाह....मां मुझे फिर जनो
देखो, मँ लौट आया हुँ !
अरब समुद्र के भीतर से,
मेरे भारत को जगाने कर्म के दुर्गम पथ पर सहभागी बनाने,
फिर, दाँडी ~ मार्ग पर चलने फिर एक बार शपथ ले,
नमक , चुटकी भर ही लेकर हाथ मँ,
प्रण ले, भारत पर निछावर होने
मँ, मोहनदास गाँधी,फिर, लौट आया हूँ !

Friday, March 6, 2009

आज अमर उजाला में औरत नामा

कहीं लव ऐपल, कहीं इत्र की होली
* अमरीका में 31 अक्तूबर को सूर्य पूजा की जाती है. इसे होबो कहते हैं. इसे होली की तरह
मनाया जाता है. इस अवसर पर लोग फूहड वेशभूषा धारण करते हैं.
* नार्वे, स्वीडन में सेंट जान का पवित्र दिन होली की तरह मनाया जाता है. शाम को पहाड़ी पर होलिका दहन की तरह लोग आग जलाकर नाचते गाते हैं.
* इंग्लैंड में मार्च के अंतिम दिनों में लोग अपने मित्रों और संबंधियों को रंग भेंट करते हैं ताकि उनके जीवन में रंगों की बहार आए.
* थाईलैंड में तेरह अप्रैल को नव वर्ष 'सौंगक्रान' प्रारंभ होता है. इसमें वृद्धजनों के हाथों इत्र मिश्रित जल डलवाकर आशीर्वाद लिया जाता है.
* लाओस में यह पर्व नववर्ष की खुशी के रूप में मनाया जाता है. लोग एक-दूसरे पर पानी डालते हैं. म्यांमर में इसे जल पर्व के नाम से जाना जाता है.
* जर्मनी में ईस्टर के दिन घास का पुतला बनाकर जलाया जाता है. लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं. हंगरी का ईस्टर होली के अनुरूप ही है.
* अफ्रीका में 'ओमेना वोंगा' मनाया जाता है. इस अन्यायी राजा को लोगों ने ज़िंदा जला डाला था. अब उसका पुतला जलाकर नाच गाने से खुशी व्यक्त करते हैं.
* अफ्रीकी देशों में 16 मार्च को सूर्य का जन्म दिन मनाया जाता है. लोगों का विश्वास है कि सूर्य की सतरंगी किरणों को निहारने से उनकी आयु बढ़ती है.
* पोलैंड में 'आर्सिना' पर लोग रंग और गुलाल मलते हैं. यह रंग फूलों से निर्मित होने के कारण काफ़ी सुगंधित होता है. लोग परस्पर गले मिलते हैं.
* अमरीका में 'मेडफो' नामक पर्व मनाने के लिए लोग नदी के किनारे एकत्र होते हैं और गोबर तथा कीचड़ से बने गोलों से एक दूसरे पर आक्रमण करते हैं.
* चेक, स्लोवाक क्षेत्र में बोलिया कोनेन्से त्योहार पर युवा लड़के-लड़कियाँ एक दूसरे पर पानी एवं इत्र डालते हैं. हालैंड का कार्निवल होली सी मस्ती का पर्व है.
* बेल्जियम की होली भारत सरीखी होती है और लोग इसे मूर्ख दिवस के रूप में मनाते हैं. यहाँ पुराने जूतों की होली जलाई जाती है.
* इटली में रेडिका त्योहार एक सप्ताह तक मनाया जाता है. लकड़ियों के ढेर चौराहों पर जलाए जाते हैं. लोग परिक्रमा, आतिशबाजी करते हैं. गुलाल लगाते हैं.
* रोम में इसे सेंटरनेविया कहते हैं तो यूनान में मेपोल. ग्रीस का लव ऐपल होली भी प्रसिद्ध है. स्पेन में लाखों टन टमाटर एक दूसरे को मार कर होली खेलते हैं.
* जापान में 16 अगस्त की रात को टेमोंजी ओकुरिबी नामक पर्व पर कई स्थानों पर तेज़ आग जला कर यह त्योहार मनाया जाता है.
* चीन में होली की शैली का त्योहार च्वेजे है. यह पंद्रह दिन तक मनता है. लोग आग से खेलते हैं और अच्छे परिधानों में सज धज कर परस्पर गले मिलते हैं.
* साईबेरिया में घास फूस और लकड़ी से होलिका दहन जैसी परंपरा है.

Thursday, March 5, 2009

आज अमर उजाला में औरतनामा



कहीं लव ऐपल, कहीं इत्र की होली
* अमरीका में 31 अक्तूबर को सूर्य पूजा की जाती है. इसे होबो कहते हैं. इसे होली की तरह
मनाया जाता है. इस अवसर पर लोग फूहड वेशभूषा धारण करते हैं.
* नार्वे, स्वीडन में सेंट जान का पवित्र दिन होली की तरह मनाया जाता है. शाम को पहाड़ी पर होलिका दहन की तरह लोग आग जलाकर नाचते गाते हैं.
* इंग्लैंड में मार्च के अंतिम दिनों में लोग अपने मित्रों और संबंधियों को रंग भेंट करते हैं ताकि उनके जीवन में रंगों की बहार आए.
* थाईलैंड में तेरह अप्रैल को नव वर्ष 'सौंगक्रान' प्रारंभ होता है. इसमें वृद्धजनों के हाथों इत्र मिश्रित जल डलवाकर आशीर्वाद लिया जाता है.
* लाओस में यह पर्व नववर्ष की खुशी के रूप में मनाया जाता है. लोग एक-दूसरे पर पानी डालते हैं. म्यांमर में इसे जल पर्व के नाम से जाना जाता है.
* जर्मनी में ईस्टर के दिन घास का पुतला बनाकर जलाया जाता है. लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं. हंगरी का ईस्टर होली के अनुरूप ही है.
* अफ्रीका में 'ओमेना वोंगा' मनाया जाता है. इस अन्यायी राजा को लोगों ने ज़िंदा जला डाला था. अब उसका पुतला जलाकर नाच गाने से खुशी व्यक्त करते हैं.
* अफ्रीकी देशों में 16 मार्च को सूर्य का जन्म दिन मनाया जाता है. लोगों का विश्वास है कि सूर्य की सतरंगी किरणों को निहारने से उनकी आयु बढ़ती है.
* पोलैंड में 'आर्सिना' पर लोग रंग और गुलाल मलते हैं. यह रंग फूलों से निर्मित होने के कारण काफ़ी सुगंधित होता है. लोग परस्पर गले मिलते हैं.
* अमरीका में 'मेडफो' नामक पर्व मनाने के लिए लोग नदी के किनारे एकत्र होते हैं और गोबर तथा कीचड़ से बने गोलों से एक दूसरे पर आक्रमण करते हैं.
* चेक, स्लोवाक क्षेत्र में बोलिया कोनेन्से त्योहार पर युवा लड़के-लड़कियाँ एक दूसरे पर पानी एवं इत्र डालते हैं. हालैंड का कार्निवल होली सी मस्ती का पर्व है.
* बेल्जियम की होली भारत सरीखी होती है और लोग इसे मूर्ख दिवस के रूप में मनाते हैं. यहाँ पुराने जूतों की होली जलाई जाती है.
* इटली में रेडिका त्योहार एक सप्ताह तक मनाया जाता है. लकड़ियों के ढेर चौराहों पर जलाए जाते हैं. लोग परिक्रमा, आतिशबाजी करते हैं. गुलाल लगाते हैं.
* रोम में इसे सेंटरनेविया कहते हैं तो यूनान में मेपोल. ग्रीस का लव ऐपल होली भी प्रसिद्ध है. स्पेन में लाखों टन टमाटर एक दूसरे को मार कर होली खेलते हैं.
* जापान में 16 अगस्त की रात को टेमोंजी ओकुरिबी नामक पर्व पर कई स्थानों पर तेज़ आग जला कर यह त्योहार मनाया जाता है.
* चीन में होली की शैली का त्योहार च्वेजे है. यह पंद्रह दिन तक मनता है. लोग आग से खेलते हैं और अच्छे परिधानों में सज धज कर परस्पर गले मिलते हैं.
* साईबेरिया में घास फूस और लकड़ी से होलिका दहन जैसी परंपरा है.

रागात्मक प्यार और यौन शुचिता


मध्य वर्ग से लेकर कामगार वर्गों तक की कामकाजी स्त्रियों का शारीरिक-मानसिक श्रम सबसे सस्ता है. "जाने कहाँ गए वो दिन….." गाते हुए. रोते-सिसकते हुए, पुराने समय के "रागात्मक प्यार" और सुखद माहौल को याद करते हुए अंतत: करुण क्रंदन कर उठते हैं. महिलाओं के लिए 40 कानून बने हैं. सती प्रथा, दहेज हत्या, भ्रूण हत्या, डायन हत्या, घरेलू हिंसा पर कानून बन चुके हैं. लम्बे से समय से आधी आबादी ने अपने अधिकार के लिए, अपनी स्वतंत्रता के लिए जो आंदोलन घर के बाहर छेड़े, वह घर के अंदर नही छेड़ पाई है. अधिकार और स्वतंत्रता का जो दायरा कल था, वही आज भी है. भले वह ग्राम पंचायतों से संसद तक पहुंच गई हो, अपने परिवारों में वह आज वही होती है. सिर्फ शब्द बदल गये. आधी आबादी को नयी तकनीक के साथ जोड़ दिया गया लेकिन उसका मानसिक और शरीरिक शोषण उसी रफ्तार से चल रहा है. देश के अंदर स्त्री अधिकार के लिए बने कानून के साये में महिलाओं की भूमिका आज भी बुनियादी तौर पर कतई नहीं बदली है.

भारत में यौन शुचिता और चरित्र समानार्थी हैं. उपभोक्तावाद अब भारतीय परिवारों के सामंती दरवाजों पर ठोकर मार रहा है. मूल्य दरक रहे हैं और अजीबो-गरीब लगने वाली घटनाएं घट रही हैं. 'सच्चरित्र` हत्यारिन मां या 'दुश्चरित्र` मटुकनाथों की अपवाद लगने वाली घटनाएं इस विध्वंस के आरंभिक संकेत हैं.

ब्यूटी पार्लर, जिम से लेकर बाबा रामदेव जैसों के धंधे इसी कारण फल-फूल रहे हैं. विज्ञापनी दुनिया उन्हें लगातार बताती रहती है कि स्वस्थ शरीर में मंहगे वस्‍त्राभूषण फबते हैं. यौन शुचिता संबंधी दुराग्रहों की समाप्ति की राह भी आने वाले समय में यहां से निकलेगी. अभिजात तबके में उपभोक्तावाद का असर कुछ अलग तरह का है. वहां इसने अभिभावक-संतान के संबंधों को मित्रतापूर्ण बनाया है. कौमार्य के बंधनों को ढीला किया है.

Tuesday, March 3, 2009

सीमा गुप्ता की पांच सुहाने लफ्ज



"मै डरती हूँ "

मै जानती हूँ .........
मेरे खत का उसे इंतजार नही
मेरे दुख से उसे सरोकार नही ,
मेरे मासूम लफ्ज उसे नही बहलाते
मेरी कोई बात भी उसे याद नही.
मेरे ख्वाबों से उसकी नींद नही उचटती
मेरी यादो मे उसके पल बर्बाद नही
मेरा कोई आंसू उसे नही रुलाता
उसे मुझसे जरा भी प्यार नही
कोई आहट उसे नही चौंकाती
क्योंकि उसे मेरा इन्तजार नही
मगर मै डरती हूँ उस पल से
जब वो चेतना में लौटेगा और
पश्चाताप के तूफानी सैलाब से
गुजर नही पायेगा ...जड हो जाएगा
मै डरती हूँ ....बस उस एक पल से.


"एहसास"
हर साँस मे जर्रा जर्रा
पलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.
सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

"इश्क मोहब्बत प्यार सनम"
"प्यार कोई व्योपार नहीं,
किसी की जीत या हार नहीं,
प्यार तो बस प्यार ही है,
रहमो करम का वार नहीं ..."
"तुम हर दुःख हरने आई हो......."
जीवन की सुनी बगिया मे...
असंख्य पुष्प बन तुम लहराई हो,
चंचल तितली, मस्त पवन...
तुम शीतल चंदन बन कर छाई हो,
आस , उम्मीद, हो प्यार मेरा तुम ,
अंधियारे में जुगनू सी जगमगाई हो,
नन्हे नन्हे कोमल स्पर्श तुम्हारे...
तुम हर दुःख हरने आई हो.......
"झील को दर्पण बना"
रात के स्वर्णिम पहर मेंझील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचलधरा भी इतराती तो होगी...
मस्त पवन की अंगडाईदरख्तों के झुरमुट में छिप कर
परिधान बदल बदलमन को गुदगुदाती तो होगी.....
नदिया पुरे वेग मे बहकिनारों से टकरा टकरा
दीवाने दिल के धड़कने कासबब सुनाती तो होगी .....
खामोशी की आगोश मे रात
जब पहरों में ढलती होगीओस की बूँदें दूब के बदन पे
फिसल लजाती तो होगी ......
दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम अनजानी सी
कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
आभार...कोई जब इस तरह दिल को छू जाए तो क्या करें!

Sunday, February 22, 2009

स्त्री अब वंश चलाने की मशीन नहीं

स्त्रियों की दुनिया के बारे में, प्रेम के बारे में, शादी-व्याह के बारे में कई तरह की राय रही हैं. एक पक्ष कहता है कि प्रेम जीवित रहे, उष्मा बनी रहे, ये सब बकवास की बाते हैं. जिस तरह हर संपत्ति-साम्राज्य लूट, ठगी और अपराध की बुनियाद पर टिका होता है, उसी तरह परिवार का ताना- बाना स्त्री की गुलामी और अस्मिता-विहीनता की बुनियाद पर खड़ा है, चाहे परिवार का प्यार मूल्य-मुक्त प्यार होता ही नहीं. पूर्ण समानता और स्वतंत्र अस्मिता की चाहत रखने वाली कोई स्त्री भला क्यो चाहेगी कि बचा रहे इस तरह के परिवार बचे रहें. विवाह प्रथा की स्थापना के साथ ही एक ओर जहाँ मानव सभ्यता के उच्चतर, अधिक वैज्ञानिक नैतिक मूल्यों का जन्म हुआ, वहीं पुरुष द्वारा स्त्री को दास बनाए जाने की शुरुआत भी यहीं से हुई. धीरे-धीरे स्त्री एक सजीव, पारिवारिक संपत्ति में रूपांतरित होती गई. संपत्ति-संचय और क़ानूनी वारिसों को उसका हस्तांतरण परिवार का मुख्य उद्देश्य बन गया. सामंती समाज के पितृसत्तात्मक पारिवारिक ढाँचे में उपर से जो रागात्मकता, स्त्री के प्रति उदार संरक्षण-भाव, यदा-कदा श्रद्धा भाव और उसके सौंदर्य के प्रति सूक्ष्म जागरूकता दिखाई देती है, वह सब ऊपरी चीज़ है और खांटी ‘ पुरुष दृष्टि’ को वह सब कुछ भाता है. स्त्री सामंती समाज में विलासिता और निजी उपभोग की वस्तु मात्र थी और साथ ही वंश चलाने का ज़रूरी साधन. सामंत स्त्रियों के प्रति संरक्षण-भाव रखते थे. पुराने परवारिक ढांचे की सुखद रागात्मकता और काव्यात्मकता टूटने-बिखरने पर आज दुखी आत्माएं विलाप करती हैं. पूंजीवाद ने अपनी जरूरतों से स्त्रियों को चूल्हे-चौके की गुलामी से आंशिक मुक्ति दिलाई और स्त्रियाँ को दोयम दर्जे की नागरिकता देने के साथ ही उसे निकृष्टतम कोटि का उजरती गुलाम बनाकर सडकों पर धकेल दिया. उपभोक्ता संस्कृति में सूचना तंत्र, प्रचार तंत्र और नए मनोरंजन-उद्योग के अंतर्गत स्त्री ख़ुद में एक उपभोक्ता सामग्री बनकर रह गई. मध्ययुगीन प्यार के स्वप्नलोक में विचरण करती दुखी आत्माओं को लगने लगा कि परिवार टूट रहा है, प्रलय आ रहा है. लेकिन यह परिवार का टूटना नहीं बल्कि उसका रूपांतरण है. भारतीय समाज में स्त्रियों की पीड़ा दोहरी है. संयुक्त परिवार के ढांचे के टूटने, नाभिक परिवारों के बढ़ते जाने और आंशिक सामाजिक आजादी के बावजूद मूल्यों-मान्यताओं के धरातल पर वह पितृसत्तात्मक स्वेच्छाचारिता को भी भुगत रही है और उपभोक्ता संस्कृति की नई नग्न निरंकुशता को भी. पति उसे शिक्षित और आधुनिक देखना-दिखाना चाहता है. यह नहीं चाहता कि वह इसकी इच्छाओं की सीमारेखा टूटे. वह भी स्वतन्त्र हो. वह यह तो चाहता है कि घर का बोझ हल्का करने के लिए पत्नी कमाए, पर यह नहीं चाहता कि वह अपने दफ्तर या कारखाने में स्वतन्त्र रिश्ते बनाये. यंत्र मानव की तरह वह बस पैसे कमाये और आज्ञाकारी सुशील पत्नी की तरह समय से घर आ जाए. उच्च से लेकर उच्च मध्यवर्ग तक में, किटी पार्टियाँ, लायंस-रोटरी की पार्टियों में जाने की आजादी है और पत्नियों की अदलाबदली और स्वच्छंद यौनापभोग का खुला-गुप्त चलन भी बढ़ रहा है. मध्य वर्ग से लेकर कामगार वर्गों तक की कामकाजी स्त्रियों का शारीरिक-मानसिक श्रम सबसे सस्ता है. "जाने कहाँ गए वो दिन….." गाते हुए. रोते-सिसकते हुए, पुराने समय के "रागात्मक प्यार" और सुखद माहौल को याद करते हुए अंतत: करुण क्रंदन कर उठते हैं. महिलाओं के लिए 40 कानून बने हैं. सती प्रथा, दहेज हत्या, भ्रूण हत्या, डायन हत्या, घरेलू हिंसा पर कानून बन चुके हैं. लम्बे से समय से आधी आबादी ने अपने अधिकार के लिए, अपनी स्वतंत्रता के लिए जो आंदोलन घर के बाहर छेड़े, वह घर के अंदर नही छेड़ पाई है. अधिकार और स्वतंत्रता का जो दायरा कल था, वही आज भी है. भले वह ग्राम पंचायतों से संसद तक पहुंच गई हो, अपने परिवारों में वह आज वही होती है. सिर्फ शब्द बदल गये. आधी आबादी को नयी तकनीक के साथ जोड़ दिया गया लेकिन उसका मानसिक और शरीरिक शोषण उसी रफ्तार से चल रहा है. देश के अंदर स्त्री अधिकार के लिए बने कानून के साये में महिलाओं की भूमिका आज भी बुनियादी तौर पर कतई नहीं बदली है.
स्त्री संबंधों और हालात के बार में दूसरे पक्ष के तर्क कुछ अलग हैं. इसका कहना है कि भारत में यौन शुचिता और चरित्र समानार्थी हैं. उपभोक्तावाद अब भारतीय परिवारों के सामंती दरवाजों पर ठोकर मार रहा है. मूल्य दरक रहे हैं और अजीबो-गरीब लगने वाली घटनाएं घट रही हैं. 'सच्चरित्र` हत्यारिन मां या 'दुश्चरित्र` मटुकनाथों की अपवाद लगने वाली घटनाएं इस विध्वंस के आरंभिक संकेत हैं. उपभोक्तावाद के नकारात्मक प्रभावों को अपवाद मानकर उपेक्षित कर देना या इतिहास को घटते हुए महज देखते रहना भी बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती. मध्यवर्ग में माता-पिता और संतान के पारंपरिक संबंध त्रासद स्थिति में पहुंचने लगे हैं. तकनीक ने श्रम को बेहद सस्ता कर दिया है. शहरों में भी एक हजार से तीन हजार तक की नौकरी करने वाले युवा हर जगह अंटे पड़े हैं. कंम्प्यूटर आपरेटर, रिसेप्सनिस्ट, नर्सें, सेल्स मैन, कूरियर पहुंचाने वाले, सुपरवाइजर नुमा लोग और अन्य नई सेवाओं में लगे इन युवाओं को भविष्य में भी अच्छा वेतन मिलने की कोई उम्मीद नहीं है. उपभोक्तावाद ने बाहरी चमक-दमक के साथ देह और स्वास्थ्य तक को उपभोग के दायरे में ला दिया है. ब्यूटी पार्लर, जिम से लेकर बाबा रामदेव जैसों के धंधे इसी कारण फल-फूल रहे हैं. विज्ञापनी दुनिया उन्हें लगातार बताती रहती है कि स्वस्थ शरीर में मंहगे वस्‍त्राभूषण फबते हैं. बुढ़ापे का पारंपरिक सहारा मानी जाती रही संतान भी अपने तात्कालिक सुखों में कटौती करने को तैयार नहीं हो पा रही है. भारतीय उत्तराधिकार विधान भी उन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहित करता है कि उनकी पूरी संपत्ति सिर्फ उनके उपभोग के लिए है. भूमंडलीकरण की तरह उपभोक्तावाद भी एक यथार्थ है. इसे किसी धार्मिक नैतिकता या भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर रोका नहीं जा सकता. न इसे अफगानिस्तान, इराक, पाकिस्तान आदि में इस्लामिक तालिबान रोक पाए, न ही भारत के हिन्दू तालिबानों में यह कुव्वत है. अक्सर मुगालते में रहने वाले कम्यूनिस्ट चाहें तो चीन घूम कर आ सकते हैं. वहां के शहरों में महज कुछ वर्ष में यूरोपिय शहरों से कहीं अधिक आलीशान मॉल, शापिंग काम्पलेक्सों ने आकार ले लिया है. वस्तुत: यह कुछ और नहीं परिवार का आंतरिक 'पूंजीवाद` है. यह किसी नैतिकता के रोके नहीं रूकने वाला. इसके जिम्मे एक नया समाज गढ़ने की जिम्मेदारी है. इसने जहां नए मध्यवर्ग में अभिभावक और संतान के संबंधों को कटूतापूर्ण बना दिया है वहीं इस तबके की महिलाओं के लिए आर्थिक मुक्ति के द्वार भी खोले हैं. यौन शुचिता संबंधी दुराग्रहों की समाप्ति की राह भी आने वाले समय में यहां से निकलेगी. अभिजात तबके में उपभोक्तावाद का असर कुछ अलग तरह का है. वहां इसने अभिभावक-संतान के संबंधों को मित्रतापूर्ण बनाया है. कौमार्य के बंधनों को ढीला किया है. अमिताभ-जया और अभिषेक बच्चन के संबंधों तथा सलमान, विवेक ओबराय और ऐश्वर्या राय के त्रिकोणात्मक प्रेम संबधों के बाद अभिषेक बच्चन से उसकी शादी को समझा जा सकता है. पूंजीपति परिवारों के बदलावों को पेज थ्री पार्टियों का निरंतर अध्ययन करते हुए भी देखा जा सकता है. वे अब तोंदियल सेठ-सेठानियां नहीं रहे हैं. अंधानुकरण की नकारात्मक प्रवृति पर पलने वाला उपभोक्तावाद भूल वश ही सही, अनेक सकारात्मक प्रवृतियों को भी मध्यमवर्ग तक पहुंचा रहा है.

Wednesday, February 18, 2009

ब्लॉगिंग और बलात्कारी






लो जी, अब ये भी पढ़ो और बूझो तो जानें

1.चोखेर बाली की पोस्ट

ब्लॉग जगत के बलात्कारी ब्वायज़
कल से कठपिंगल नामक एक नव ब्लॉगर जो कि बडे मठाधीश भी होते हैं बहुत परेशान हैं ! उन्होंने एक साथी बलात्कारी ब्लॉगर की अपराध की दास्तान हम सब को सुनाई और फिर जी भर यहाँ जांचने में तुल गए कि कौन उसपर कितना रिऎक्ट कर रहा है ! यश्वंत के बलात्कारी व्यक्तित्व की निंदा में चोखेरबाली समाज चांय चांय नहीं कर रहा वे इस बात से भी आहत हैं ! अविनाश ने कल बलात्कार की कथा को बहुत दम से बयान किया ! उन्होंने हमेशा की तरह अपनी पत्नी को घर पर ही रखा और ब्लॉग जगत के सबसे सेंसेटिव और ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते सब ब्लॉगरों को उनके नैतिक ड्यूटी के लिए उकसाया ! पर जैसा कि प्रमोद ने कहा यश्वंत पकडा गया क्योंकि वह फिजिकल एब्यूज़ कर बैठा था ! पर यहां के कई थानेदार मठाधीश जो कि समाज के हर मुद्दे पर सबसे तेज और संवेदनशील राय रखते हैं आजाद हैं और तबतक रहेंगे जबतक कि कोई फिजिकल एब्यूज न कर बैंठें !
ब्लॉग जगत के मोहल्ला की चारपाई पर बैठा एक ब्वाय बलात्कार की खबर दे रहा है दूसरा ब्वाय जेल से छूटा ही है ! चारपाई वाले ब्वाय की पत्नी घर के अंदर और बलात्कारी की पत्नी गांव में है ! अब बचीं ब्लॉग जगत की औरतें जिनके लिए मोहल्लापति ने नए संबोधन बनाना ,उनको उनके कर्तव्य बताना , उनके सम्मान और हित में बोलने वाले पुरुषों को पुरुष समाज का विभीषण बताना जैसी कई बातें इस ब्वाय ने बताईं हैं ! इसमें से एक ब्वाय स्त्री विमर्श जैसे कई विमर्शों की रिले रेस चलवाता है और चाहता है कि उसे हिंदी ब्लॉग जगत का सबसे बौद्दिक और समझदार ब्वाय समझा जाए ( क्योंकि वह बलात्कारी भी नहीं है ) जबकि दूसरे ब्वाय के द्वारा बलात्कार की खबर देता हुआ यहाँ चारपाई ब्वाय अपनी एक परिचित ब्लॉगर को " सनसनी गर्ल " दूसरी को छुटे सांड की तरह सींग चलाने वाली माताजी कहकर ही अपनी बात आगे बढा पाता है ! हमारे पास यश्वंत के बलात्कारी रूप के कोई फोटो नहीं हैं ( हो सकता है कोई ब्वाय जारी कर दे आजकल में ..) पर हमारे पास चारपाई ब्वाय का लिखा है

आप कहें गे कहेंगे क्या अनूप तो कह ही रहे हैं कि नीलिमा ने ही उनको उकसाया है तो फिर यहाँ सब तो लाजमी है ! यश्वंत का भी क्या कसूर रहा होगा उस पीडिता ने भी उसको उकसाया होगा !अब चारपाई ब्वाय को उकसाया जाएगा तो वह किसी स्त्री को पहले तो भूखी सांड की तरह हर जगह दौडती ही कहेगा माताजी भी कह लेगा पर इससे ज्यादा मत उकसाओ ....! जाहिर है अपनी हदों को पार करने वाली औरत या आपकी गलती दिखाने वली औरत माताजी ही कलाऎगी क्योंकि वह सुकुमारी वाले काम कहां कर रही है ! विरोध के स्वर में बोलने वाली औरत को बूढी पके बाल वाली माताजी कहने से कितना चिढ सकती है वह ! वह जाकर शीशे में ध्यान से अपने को निहारने पहुंचेगी कि ऎसा मेरे चेहरे में क्या था कि मैं माताजी लगने लगी हूं , छुटी भूखी सांड की तरह लगती हूं .....बस वह उदास हो जाएगी चेहरे पर लेप मलेगी और अपने आप से वादा करेगी कि कल से किसी भी मर्द को ऎसे नहीं कहेगी और उनकी तारीफ के योग्य करम करेगी !
वैसे जब चारपाई ब्वाय एक बलात्कार की खबर देते हुए स्त्री के बारे में इन संबोधनों को कह रहा है तो उसके मन में यही न चल रहा होगा कि छुटी सांड सी दौडती फिरोगी तो यही सुनोगी ! और फिर कुछ भी फिजिकल या लैंग्वेज एब्यूज़ हो सकता है ! माई डियर तैयार रहा करो तुम्हारे साथ आगे कुछ भी हो सकता है ! वह सोचता होगा हमारी वाली को देखो घर में बंधी रहती है मजाल है उसके साथ कोई कुछ कर जाए ...!
ऎसे चारपाई ब्वाय को मसिजीवी पत्नीवादी ,प्रमोद सिंह भी "बदचलन " लगेगा ! दोनों ही अपनी पत्नी को बांधकर नहीं रख सके ! एक की भूखे सांड सी दौडती रहती है दूसरे की भाग जाती है ! हे चारपाई ब्वाय तुम नीलिमा को कठघरे में खडा करने के लिए जितने उतावले हो अगर उतने ही उलावले अपनी काठ की संवेदना को गलाने के लिए होते तो बात थी !
तुम तो पहुंचे गाल बजाते देखो साला पकडा गया बलात्कार ऎसे नहीं किया जाता साले को कितनी बार समझाया था ! जो करो ऎसे करो कि पकडे न जाओ ! बोधि जी को देखो बोला भी बाद में पलट भी गए बच गए ! मुझे देखो सनसनी गर्ल कहा था तुरंत मिटा दिया साथ ही यह कहने के ऎतराज में आई टिप्पणी भी मिटा दी ! एकदम साफ कोई सबूत नहीं ! पर भूखी सांड सी पीछे पडेगी तो आगे का कुछ नहीं कह सकता ! मैं कहता था न मैं बडा बाप हूं मुझसे सीखो ! स्त्री विमर्श भी करो स्त्री का एब्यूज़ भी करो ! तरीका मुझसे सीखो -मैंने कई बार कहा था ! तुम ठहरे कच्चे खिलाडी और जल्दबाज ..खैर भुगतो !
तो हे चारपाई ब्वाय हिंदी व्लॉग जगत की मुझ सी भूखे सांड सी बेवजह जगह -जगह दौडती औरत जिसमें तुमने अपनी माताजी का रूप देखा , पत्रकार स्‍मृति दुबे जिनमें तुम्हें सनसनी गर्ल ( कॉल गर्ल ,बार गर्ल ,पिन अप गर्ल ,सिज़्लिंग गर्ल जैसी ही कोई चीज़ .....जो तुम औरतों में देखते होंगे ..) प्रत्यक्षा , सुजाता मनीषा पांडे जैसी तमाम औरतें बस अब तुम्हारी चारपाई की ओर देख रही हैं ! चारपाई पकडे रहना बलात्कारी ब्वाय को तो हम और कानून मिलकर देख ही लेंगे ,साथ की कामना करेंगे कि और कोई बलात्कारी ब्वाय उगने न पाए ! आमीन !
POSTED BY NEELIMA AT 9:22 AM
23 COMMENTS:
दिनेशराय द्विवेदी said...
जवाब शानदार है। बिलकुल मुहँ तोड़। अभी घोषणा आने वाली है कि मुहँ सलामत है।
9:35 AM Neeraj Rohilla said...
आमीन,इससे ज्यादा और क्या कहें, सबको सनमत दे भगवान् ...वैसे हमे भी पता चल चुका है की कठपिंगल कौन है :-)
9:51 AM अरुण said...
अब बेचारे फ़ुरसतिया जी को मत घसीटिये उन्हे सही है कहने की इतनी आदत पड चुकी है कि वो तो कठपिंगल वाली पोस्ट पर "सही है लगे रहो "लिख कर निकल लिये थे :)
10:25 AM सुजाता said...
कठपिंगल उर्फ अविनाश के दिये निर्देशों का पालन करना क्या हमारा परम कर्तव्य है ? चोखेर बालियों ने पहले तो स्कारलेट कीलिंग की डायरी नही छापी और न ही अपने अंतरंग अनुभवों को शेयर किया ..इसलिए अविनाश को पहले तो जनसत्ता तक मे लिखना पड़ा कि सुघड़ औरतें बेकार मे लफ्फाज़ी कर रही हैं , उन्हें अपने नितांत निजी अनुभव कहने चाहिये ।तब भी चोखेर बालियाँ आवारा थीं -वे लिखते हैं - "बल्कि कहा जा सकता है कि कुछ सुघड़ किस्‍म की स्त्रियां विमर्श के उस मैदान में खड़ी हो गयी हैं - जहां आवारगी की दौड़ और कसरत होती रहती है"http://mohalla.blogspot.com/2008/04/blog-post_13.htmlफिर कल उन्हें अफसोस हो रहा था कि -अफ़सोस तो इस बात का ज़्यादा था कि उस टिप्‍पणी पर सैंड ऑफ द आई के लेखक-पाठक पूरी तरह ख़ामोश थे, जबकि मसला स्‍त्री के सम्‍मान पर हमले से जुड़ा था। http://mohalla.blogspot.com/2008/05/blog-post_25.htmlजिस पोस्ट का ज़िक्र अविनाश ने किया है उसके पाठक उस दिन अविनाश खुद भी थे । उनकी टिप्पणी वहाँ मौजूद है । जब वे सत्यता जानते थे तो क्यों नही अपनी टिप्पणी मे कहा कि कठपिंगल की बात सच है ? एक पोस्ट कैसे बनती ?***अविनाश , विजतशंकर चतुर्वेदी , शेष - यश्वंत को तो पहले ही ब्लॉग जगत खारिज कर चुका है ।चोखेर बालियाँ पुर्ज़ोर विरोध कर चुकी हैं । लेकिन जो उसके दोस्त आज भी हैं वे कल भी रहेंगे । उन्हें यशवंत को खारिज करने के लिए तैयार कीजिये न ! और सही कहा नीलिमा - यश्वंत को तो अब कानून देख ही लेगा ।और यह बात कि यश्वंत एक प्रवृत्ति है तो उसका विरोध तो चोखेर बालियाँ शुरुआत से ही कर रही हैं । आप बस अपने भीतर के यश्वंत को काबू मे रखने मे वक़्त लगाएँ तो चोखेर बालियों की कुछ मदद हो जाए ।
10:53 AM सुजाता said...
" हाँ, रचना जी की अलग-अलग परिधानों में मुझे उनकी तस्वीरें पसंद आयीं. उन्होंने किन्हीं शास्त्री जी का ज़िक्र किया था कि वह उनके समर्थन से ऐसा कह रही हैं************* ------------- यह आज की पोस्ट का हिस्सा है जो मोहल्ला पर छपी है ।हद है !
11:07 AM बाल किशन said...
आपकी बात और इस करारे जवाब दोनों से मैं सहमत हूँ.आपने अभी जो भी लिखा है सही लिखा हैं.यशवंतजी और अविनाशजी जैसे लोगों को मैंने कभी पसंद भी नही किया.आपको बता दूँ की सागर नाहर जी वाले मामले के बाद मैंने कभी अविनाशजी को पढ़ा भी नही. और यशवंत जी के तों क्या कहने वे तों अवतारी पुरूष हैं.लेकिन आपसे सिर्फ़ ये कहना चाहूँगा की " काजल की कोठरी में कैसा भी सयाना जाय कालिख लगेगी ही."फुरसतिया जी के कहने का सिर्फ़ यही मतलब था. उसे आपने दिल पर ले लिया. मैं ये कोई उनकी वकालत नही कर रहा हूँ. जो सच लगा वो कह रहा हूँ.और फ़िर कल मसिजीवी जी की पोस्ट पर अजदक जी की जो पहली टिपण्णी थी वो भी तों उचित नही थी. मुझे उसपर भी आपति है.ग़लत तों हर हाल मे ग़लत है. हम ऐसा नज़रिया क्यों रखते है की मेरा ग़लत सही है और तुम्हारा ग़लत ग़लत है.और अंत मे सिर्फ़ एक बात कहना चाहूँगा की ग़लत को ग़लत नहीं काट सकता.
3:46 PM बाल किशन said...
"यही बात अगर दूसरी जबान मे कोई कहता तों वो कह सकता था की आदमी को अपने गिरेबान मे भी झांकना चहिये."मेरी इस कथन का आपसे कोई सरोकार नहीं हैं मेने सिर्फ़ एक बात कहने की कोशिस की है जो शायद सब तक पंहुच सके.मैं आपकी इस पोस्ट से पुरी तरह सहमत हूँ.
3:52 PM Pratyaksha said...
गलत बात का प्रतिकार किया ... सही किया । चुपचाप सह लेना संयम नहीं कमजोरी की निशानी जब समझी जाय तब बोलना ही उचित है ।
4:21 PM Anonymous said...
ये लिंक देखें, आपलोगों को और मज़ा आएगा :http://kathpingal.blogspot.com/2008/05/blog-post_26.html
5:55 PM कठपिंगल said...
पिछली बार सुजाता, इस बार मसिजीवी-नीलिमा... अरे हो क्‍या गया है आप फैमिली को। यशवंत ने कोई घूस दिया है क्‍या - या बलात्‍कार जैसी चीज़ें आपके लिए एनजॉयमेंट का साधन है। गुस्‍से को संगठित करने और मवाद की तरह इधर उधर न बहने देने के लिए इंतज़ार कीजिए अपनी बेटियों के बलात्‍कार होने तक।
6:05 PM आभा said...
गलत ,गलत है ,बोधि ही क्यों न हो ,बोधि की खबर मैं पिछले तीन दिनों से ले रही हूँ ,ये कठपिंगल उर्फ अविनाश को दिमाग के डाँ. के पास ले जाना चाहिए वही पागल खाने मे बाँध कर छोड़ देना चाहिए ......
7:17 PM सुनीता शानू said...
जो सच है कभी छुप नही सकता...बेकार का आपस में झगड़ा छोड़ दें...
8:03 PM खुल के बोल said...
इस कठपिंगल को इतना समझ नही आता कि सुजाता नीलिमा मसिजीवि प्रत्यक्षा आभा सभी यशवंत का विरोध कर रहे हैं पर साथ ही अविनाश और इसके अन्दर छुपे बैठे यश्वंत का भी विरोध कर रहे हैं । यशवंत के विरोध के चक्कर में अविनाश , विजयशंकर चतुर्वेदी और कठपिंगल तीनों ने अपने मन के बलात्कारी को उजागर कर दिया है ।कठपिंगल ने जो टिप्पणी आभा के लिए दी है उससे भद्दा और कुत्सित कुछ् नही हो सकता ।नीलिमा को उसे हटाना नही चाहिये था , पता तो लगता बाकी ब्लॉगरों को कि यशवंत की भर्तसना करने वाला खुद कितना घिनौना है । ब्लॉग जगत का यह माहौल जो औरतों के लिए यशवंत,अविनाश , कठपिंगल ने मिलकर बनाया है उसके चलते भड़ास से भी ज़्यादा गनदगी यहाँ फैल गयी है । किस किस को ब्लॉगवाणी से हाटाओगे ?और अभी तो कठपिंगल ने धमकी भी दी है कि अभी बहुत से राज़ खुलने बाकी हैं ।ऐसा लगता है कि ब्लॉग न हो कोई लड़ाई का मैदान हो ।
9:13 PM Anonymous said...
Yashwant ne Rajput Jati ke kuchh dabang logo se ladki ko phone karaya hai. Wo garib Dalit ladki sahami hai, Pls uski madad ke liye samane aaye. Jyada jankari ke liye 011-22521067 par phone kare.
10:21 PM कठपिंगल said... This post has been removed by a blog administrator. 10:37 PM siddharth said...
हद है भाई! ब्लॉगर समाज इतना खुलकर गाली-गलौज करता है, एक-दूसरे की धोती खोलने पर इतना उतारू है, और अपना बुद्धि कौशल नंगई की भाषा गढ़ने में खर्च कर रहा है; यह सब देखकर तो घबराहट हो रही है। उफ्फ्…
11:08 PM अनूप शुक्ल said...
नीलिमाजी,मैंने सबेरे मसिजीवी के ब्लाग पर यह कमेंट किया था-मसिजीवी,१.अविनाश की टिप्पणी अशोभनीय है।२.नीलिमा ने उनके ब्लाग पर उनको आदरणीय सनसनी ब्वाय अविनाश जी लिखकर उनको ऐसा करने के लिये उकसाया। 'सनसनी व्बाय' ने अपने प्रति व्यक्त विश्वास की रक्षा की।३. प्रमोदजी की आपत्ति जायज है। आपको अपने ब्लाग पर कमेंट माडरेटर लगाने के बारे में सोचना चाहिये।१. पहली बात पर तो आपको कोई एतराज नहीं होना चाहिये। अविनाश की टिप्पणी अशोभनीय है। २. दूसरी बात के बारे में कहने के पहले मैं बताना चाहूंगा कि यह टिप्पणी मैंने आपके अविनाश की इस पोस्ट पर किये कमेंट के लिये किया था। आपने अपने कमेंट में लिखा था -आदरणीय सनसनी ब्वाय अविनाश जी ,जिस स्त्री ब्लॉगर को आपने सनसनी गर्ल कहा( बार गर्ल ,कॉल गर्ल आदि की तर्ज पर ..)उनका नाम स्मृति दुबे है !इस पोस्ट से मेरा यह कमेंट आपने मिटा दिया !अच्छा है ! बहुत जल्द आपने अपनी "भूल" सुधार ली ! मेरी टिप्पणी के साथ साथ आपने "सनसनी गर्ल " का जो फतवा जारी किया था स्मृति दुबे के लिए उसे भी वापस ले लिया!आप अविनाश की प्रवृत्ति से अच्छी तरह वाकिफ़ होने की बावजूद यदि अपने कमेंट में उसेसनसनी व्बाय की उपाधि से नवाजती हैं तो आप उसे उसका मनचाहा मौका मुहैया कराती हैं।इसे आप चाहे जो समझें लेकिन मेरा यह पक्का मानना है कि आपने अविनाश की इस पोस्ट यह टिप्पणी करके उसे वह लिखने के लिये मौका सुलभ कराया , उसे बहाना दिया ताकि आपको वह इस अशोभन तरीके से संबोधित करने का बहाना तलाश सके। कोई नयी ब्लागर होतीं तो बात समझी जा सकती थी लेकिन आप अच्छी तरह उसकी हरकतों से परिचित हैं इसके बावजूद अविनाश से यह आशा करना कि आपके इस सनसनी व्बायवाले कमेंट पर कोई आदर सूचक संबोधन से मन को खुश कर देने वाली बात करेगा खाम ख्याली है। इस सीधी बात को आप अपनी मर्जी के अनुसार समझ कर मुझे सामंतवादी, पुरुषवादी और जो समझ हो आपकी उस उपमा से नवाजें तो यह आपकी अपनी समझ है। अपनी समझ के अनुसार अपने मनचाहे तर्क को पुरुषवादी/सामंतवादी बताकर सही साबित कर देना कौन सा वाद है ! इस पर भी कभी आपके मुंहतोड़ जबाब पर शाबासी देने वाली सहेलियां कभी विचार करें।एक बात और , मैं अविनाश की पोस्ट और आपकी सनसनी व्बाय टिप्पणी पर मसिजीवी की ही पोस्ट से पहुंचा। सबेरे वहां जो लिंक लगा था उससे सीधे उस पोस्ट पर पहुंचे थे। अभी उसकी जगह मोहल्ला का लिंक लगा है। संबंधित पोस्ट देखने के लिये मोहल्ले की भूलभुलैया में भटकना पड़ता है। मसिजीवी शायद कहें कि लिंक मैंने नहीं बदला तो यह अनुरोध है कि कृपया सही लिंक तो लगा दें।३. तीसरी बात मैंने मसिजीवी को लिखी थी।प्रमोदजी की आपत्ति जायज है। आपको अपने ब्लाग पर कमेंट माडरेटर लगाने के बारे में सोचना चाहिये। मसिजीवी ने प्रमोदजी के बारें में की गयी बेहूदी टिप्पणी हटा दी।लेकिन तब तक न जाने कितने लोग उसे देख चुके थे। वही बात आपके ब्लाग के लिये कहता हूं। आपने अपने ब्लाग पर कोई माडरेटर नहीं लगाया है। अभी तक आभा जी के बारे में की गयी निहायत घटिया टिप्पणी यहां मौजूद है। जब कभी आप इसे हटाने की सोचेंगी तब तक इसे न जाने कितने लोग पढ़ चुके होंगे। आप बतायें यह कौन सी मानसिकता है? क्या चीजें तभी बुरी लगती हैं आपको जब वे खास कर आपके और आपके परिवार के बारें कहीं जायें। टिप्पणी लम्बी हो गयी। मैं सिर्फ़ यही कहना चाह्ता हूं कि चीजों में फ़र्क करना सीखिये। अपने पूर्वाग्रह के चश्में से इतर चीजें भी देखने का प्रयास कीजिये। ब्लाग जगत में लोग एक दूसरे से मिले-जुले नहीं हैं लेकिन यह फ़र्क करना बहुत मुश्किल नहीं होता कि किसकी सोच-समझ कैसी है।मुझे यह भी पता है कि आप शायद तिलमिलाकर कहें कि यह महिलाऒं को 'कमअक्ल' समझकर अकल देने की पुरुषवादी सोच है। तो ऐसा कुछ नहीं है। यह सलाह है, आप इसे माने तो सही न माने तो बहुत सही। इसके जवाब में एक और मुंहतोड़ पोस्ट लिख दें तो सबसे सही।
11:19 PM masijeevi said...
अनूपजी,जब आपने कमेंट टाईप करना शुरू किया था तब तक आभाजी को लेकर बदमजा टिप्‍पणी यहॉं रही होगी...खेद है...आपका कमेंट आने से पहले हटाकर और कमेंट माडरेशन शुरू करने के बाद न‍ीलिमा सोने चली गई हैं (आपका कमेंट मैंने अप किया है) इसलिए टिप्‍पणी के उन हिस्‍सों का उत्‍तर तो अभी नहीं मिल पाएगा जो उनके दृष्टिकोण से जुडा़ है किंतु जिस वजह से आपको यह उकसाने वाला भ्रम हो रहा वह यह है कि आपके पहली बार पढ़ने से पहले ही अविनाश ने अपनी पोस्‍ट संशोधित कर दी, नीलिमा की मूल टिप्‍पणी मिटा दी। अपनी मूल पोस्‍ट में उन्‍होंने नई ब्‍लॉगर समृति दुबे को इसलिए बदतमीजी से सनसनी गर्ल कहा था क्‍योंकि वह चोखेरबाली पर लिख रही थी तथा उसके लेखन अविनाश के मित्र रवीश असहज महसूस कर रहे थे।'सनसनी ब्‍वाय' उस सनसनी गर्ल के अनुप्रास में ही पढ़ा जाना था पर अविनाश के शौर्य से यह बिना संदर्भ के ही दिख रहा है। आपकी तरह मैं भी मानता हूँ कि अविनाश द्वारा अकारण टिप्‍पणी मिटाने और आनन फानन में अपनी करतूत को पूरी तरह डिस्‍ओन करने से ही उसकी मंशा साफ हो रही थी...इसलिए बेहतर होता कि नीलिमा आगे की बात अपने मंचों से कह सकती थीं पर खैर अविनाश अविनाश ही है।अविनाश से असहमति स्‍वाभाविक रूप से ढेर सारे अनाम दिए गए आशीर्वचनों को आमंत्रण देता रहा है...इस बार तो अविनाश ने सनाम भी दिए।मुझे गर्व है कि नीलिमा बलात्‍कार की इन प्रवृत्तियों की ओर संकेत करने का जोखिम उठा रही हैं जो इन दुकानदारों में साफ पैठी हैं...वे देखने के लिए तैयार नहीं...वे जानें।लिंक मैंने दोबारा जॉंचे ठीक हैं..ऊपर मोहल्‍ला का लिंक क्‍योंकि नीलिमा की टिप्‍पणी वहीं है..नीलिमा की ये पोस्‍ट तो आज आई है इसलिए इसका लिंक मेरी कल की पोस्‍ट पर कैसे हों...नीचे के लिंकबैक में रहा होगा...आज वहॉं मोहल्‍ला का लिंक है क्‍योंकि अविनाश ने इपनी पोस्‍ट में खीज के साथ जोडा़ है।
11:55 PM अनूप शुक्ल said...
लिंक कोई हटायें हों मैंने सारी बातें यहां लिख दी हैं। अब यह आप लोगों पर है कि क्या ऒन करते हैं क्या डिसओन!
1:50 AM अजित वडनेरकर said...
सही है। ये कठपिंगल कौन है ? हमने सबसे पहले अपने ब्लाग से इनकी टिप्पणी हटा दी थी। तब तक हमें कुछ नहीं पता था इस कहानी के बारे में। ब्लाग जगत की ये बातें तो भइया समझ से परे हैं।
2:14 AM Pramod Singh said...
@आभा, पहली बात के लिए धन्‍यवाद कहने आया हूं. दूसरी के कहे के लिए कहूंगा- हमें अपना धीरज नहीं गंवाना चाहिए.
9:02 AM संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...
मै सुनीताजी व सिद्धार्थ जी से सहमत हू. बुद्धिजीवी व मसिजीवी कहे जाने वाले लोग भी इस तरह से व्यर्थ के वाद-विवाद करेगे तो रचनात्मकता कहा मिलेगी स्रिजन कौन करेगा?नीलिमाजी अन्यथा मत लेना मै सीख देने वाला कौन होता हू किन्तु मेरा निवेदनपूर्ण आग्रह है, इस वाद-विवाद को छोड्कर कुछ अच्छा किया जाय.बलात्कार शब्द इतना अच्छा व आनन्द्पूर्ण व सामाजिक नही हो सकता कि इसको इतना प्रचारित किया जाय.
9:37 AM Anwar Qureshi said...
गाँधी जी के देश में ये किस तरह की भाषा का प्रयोग किया जा रहा है , हमे उन भाषाओँ का उपयोग नहीं करना चाहिए जिन्हें हम अपने माता पिता के सामने न कह सके !!!

Posted by सुजाता

7 comments:
रौशन said...
हाँ अब हम इंतज़ार कर रहे हैं अविनाश जी का . आपने सही ही कहा है कि अविनाश जी का कर्तव्य बनता है जवाब दे.
संदीप शर्मा Sandeep sharma said...
क्यों फोकट की लडाई कर रहे हो सब....ब्लॉग पर आप (ब्लोग्रिये) उल्टा-सीधा इसीलिए लिखते हैं क्योकिं लोगो का ध्यान उधर जाए. आप लोग उसे चर्चा का विषय नहीं बनायेंगी तो, कोई उसे देखेगा भी नहीं. वैसे भी देश में कितनी मगज़िने छपती है. भद्दी-भद्दी. गोबर को देखना बंद कर दे तो चार दिन में अपने-आप ही सुखकर खाद बन जाएगा....
Anonymous said...
गोबर को देखना बंद कर दे तो चार दिन में अपने-आप ही सुखकर खाद बन जाएगा....chintan ka star kafi uncha hai.

Anonymous said...
क्‍या सचमुच एक झूठ से सब कुछ ख़त्‍म हो जाता है?मुझ पर जो अशोभनीय लांछन लगे हैं, ये उनका जवाब नहीं है। इसलिए नहीं है, क्‍योंकि कोई जवाब चाह ही नहीं रहा है। दुख की कुछ क़तरने हैं, जिन्‍हें मैं अपने कुछ दोस्‍तों की सलाह पर आपके सामने रख रहा हूं - बस।मैं दुखी हूं। दुख का रिश्‍ता उन फफोलों से है, जो आपके मन में चाहे-अनचाहे उग आते हैं। इस वक्‍त सिर्फ मैं ये कह सकता हूं कि मैं निर्दोष हूं या सिर्फ वो लड़की, जिसने मुझ पर इतने संगीन आरोप लगाये। कठघरे में मैं हूं, इसलिए मेरे लिए ये कहना ज्‍यादा आसान होगा कि आरोप लगाने वाली लड़की के बारे में जितनी तफसील हमारे सामने है - वह उसे मोहरा साबित करते हैं और पारंपरिक शब्‍दावली में चरित्रहीन भी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं और अभी भी पीड़‍िता की मन:स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हूं।मैं दोषी हूं, तो मुझे सलाखों के पीछे होना चाहिए। पीट पीट कर मुझसे सच उगलवाया जाना चाहिए। या लड़की के आरोपों से मिलान करते हुए मुझसे क्रॉस क्‍वेश्‍चन किये जाने चाहिए। या फिर मेरी दलील के आधार पर उसके आरोपों की सच्‍चाई परखनी चाहिए। लेकिन अब किसी को कुछ नहीं चाहिए। पी‍ड़‍िता को बस इतने भर से इंसाफ़ मिल गया कि डीबी स्‍टार का संपादन मेरे हाथों से निकल जाए।दुख इस बात का है कि अभी तक इस मामले में मुझे किसी ने भी तलब नहीं किया। न मुझसे कुछ भी पूछने की जरूरत समझी गयी। एक आरोप, जो हवा में उड़ रहा था और जिसकी चर्चा मेरे आस-पड़ोस के माहौल में घुली हुई थी - जिसकी भनक मिलने पर मैंने अपने प्रबंधन से इस बारे में बात करनी चाही। मैंने समय मांगा और जब मैंने अपनी बात रखी, वे मेरी मदद करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे थे। बल्कि ऐसी मन:स्थिति में मेरे काम पर असर पड़ने की बात छेड़ने पर मुझे छुट्टी पर जाने के लिए कह दिया गया।ख़ैर, इस पूरे मामले में जिस कथित क‍मेटी और उसकी जांच रिपोर्ट की चर्चा आ रही है, उस कमेटी तक ने मुझसे मिलने की ज़हमत नहीं उठायी।मैं बेचैन हूं। आरोप इतना बड़ा है कि इस वक्‍त मन में हजारों किस्‍म के बवंडर उमड़ रहे हैं। लेकिन मेरे साथ मुझको जानने वाले जिस तरह से खड़े हैं, वे मुझे किसी भी आत्‍मघाती कदम से अब तक रोके हुए हैं। एक ब्‍लॉग पर विष्‍णु बैरागी ने लिखा, ‘इस कि‍स्‍से के पीछे ‘पैसा और पावर’ हो तो कोई ताज्‍जुब नहीं...’, और इसी किस्‍म के ढाढ़स बंधाने वाले फोन कॉल्‍स मेरा संबल, मेरी ताक़त बने हुए हैं।मैं जानता हूं, इस एक आरोप ने मेरा सब कुछ छीन लिया है - मुझसे मेरा सारा आत्‍मविश्‍वास। साथ ही कपटपूर्ण वातावरण और हर मुश्किल में अब तक बचायी हुई वो निश्‍छलता भी, जिसकी वजह से बिना कुछ सोचे हुए एक बीमार लड़की को छोड़ने मैं उसके घर तक चला गया।मैं शून्‍य की सतह पर खड़ा हूं और मुझे सब कुछ अब ज़ीरो से शुरू करना होगा। मेरी परीक्षा अब इसी में है कि अब तक के सफ़र और कथित क़ामयाबी से इकट्ठा हुए अहंकार को उतार कर मैं कैसे अपना नया सफ़र शुरू करूं। जिसको आरोपों का एक झोंका तिनके की तरह उड़ा दे, उसकी औक़ात कुछ भी नहीं। कुछ नहीं होने के इस एहसास से सफ़र की शुरुआत ज़्यादा आसान समझी जाती है। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरा नया सफ़र कितना कठिन होगा।एक नारीवादी होने के नाते इस प्रकरण में मेरी सहानुभूति स्‍त्री पक्ष के साथ है - इस वक्‍त मैं यही कह सकता हूं।
Anonymous said...
अविनाश को लेकर ब्लॉग से लेकर मीडिया के गलियारे तक में चर्चाएं गरम हैं। कुछ मजे ले रहे हैं तो कुछ अविनाश के लिए चिंतित हैं। मै भी चिंतित हूं। चिंता अविनाश और उसके परिवार को लेकर है। चिंता उस मानसिकता को लेकर है कि एक लड़की आरोप लगाती है और हम यकीन कर लेते हैं। यकीन ही नहीं अविनाश को दोषी भी बना देते हैं। यदि अविनाश ने ऐसा कुछ किया है तो उसे सजा मिलनी चाहिए। लेकिन यह तकलीफदायक है कि एक आरोप को आधार बनाकर उसे न सिर्फ नौकरी से निकाल दिया जाता है बल्कि अपराधी की तरह सलूक भी किया जा रहा है। आरोपी लड़की को जो लोग जानते हैं, वे इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि इस लड़की का चरित्र कैसा है। यूनिवर्सिटी के छात्र के अलावा उसके शिक्षक भी आपको यह बता देंगे। इसके अलावा आरोप लगाने वाली लड़की अनुजा बिहार में जहां रही है उसके पड़ोसियों लेकर दिल्ली तक में इसके किस्से सुने जा सकते हैं। यकीन मानिए उसे जानने वाले उसे गालियों से विभूषित करते हैं । मर्यादा का ध्यान रखते हुए अनुजा के बारें में मैं कुछ नहीं कहूंगा लेकिन उसके चरित्र के बारें में भी लोगों को पता होना चाहिए। यकीन नहीं हो तो मेडिकल जांच करवा लेनी चाहिए उसकी। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
Anonymous said...
जब भी कभी ऐसी कोई बात होती हैं तो उस स्त्री को जिस ने शिकायत दर्ज करायी होती हैं या तो चरित्र हीन या मानसिक रूप से कमजोर का तमगा दिया जाता हैं . अगर किसी का चरित्र ख़राब हैं और सब जानते हैं तो उसका साथ ??? और जो मानसिक रूप से कमजोर हो उसका भी पता चल ही जाता हैं . अफ़सोस हैं



अविनाश के मोहल्ले से

मुझ पर जो अशोभनीय लांछन लगे हैं, ये उनका जवाब नहीं है। इसलिए नहीं है, क्‍योंकि कोई जवाब चाह ही नहीं रहा है। दुख की कुछ क़तरने हैं, जिन्‍हें मैं अपने कुछ दोस्‍तों की सलाह पर आपके सामने रख रहा हूं - बस।
मैं दुखी हूं। दुख का रिश्‍ता उन फफोलों से है, जो आपके मन में चाहे-अनचाहे उग आते हैं। इस वक्‍त सिर्फ मैं ये कह सकता हूं कि मैं निर्दोष हूं या सिर्फ वो लड़की, जिसने मुझ पर इतने संगीन आरोप लगाये। कठघरे में मैं हूं, इसलिए मेरे लिए ये कहना ज्‍यादा आसान होगा कि आरोप लगाने वाली लड़की के बारे में जितनी तफसील हमारे सामने है - वह उसे मोहरा साबित करते हैं और पारंपरिक शब्‍दावली में चरित्रहीन भी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं और अभी भी कथित पीड़‍िता की मन:स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हूं।मैं दोषी हूं, तो मुझे सलाखों के पीछे होना चाहिए। पीट पीट कर मुझसे सच उगलवाया जाना चाहिए। या लड़की के आरोपों से मिलान करते हुए मुझसे क्रॉस क्‍वेश्‍चन किये जाने चाहिए। या फिर मेरी दलील के आधार पर उसके आरोपों की सच्‍चाई परखनी चाहिए। लेकिन अब किसी को कुछ नहीं चाहिए। कथित पी‍ड़‍िता को बस इतने भर से इंसाफ़ मिल गया कि डीबी स्‍टार का संपादन मेरे हाथों से निकल जाए।दुख इस बात का है कि अभी तक इस मामले में मुझे किसी ने भी तलब नहीं किया। न मुझसे कुछ भी पूछने की जरूरत समझी गयी। एक आरोप, जो हवा में उड़ रहा था और जिसकी चर्चा मेरे आस-पड़ोस के माहौल में घुली हुई थी - जिसकी भनक मिलने पर मैंने अपने प्रबंधन से इस बारे में बात करनी चाही। मैंने समय मांगा और जब मैंने अपनी बात रखी, वे मेरी मदद करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे थे। बल्कि ऐसी मन:स्थिति में मेरे काम पर असर पड़ने की बात छेड़ने पर मुझे छुट्टी पर जाने के लिए कह दिया गया।ख़ैर, इस पूरे मामले में जिस कथित क‍मेटी और उसकी जांच रिपोर्ट की चर्चा आ रही है, उस कमेटी तक ने मुझसे मिलने की ज़हमत नहीं उठायी।मैं बेचैन हूं। आरोप इतना बड़ा है कि इस वक्‍त मन में हजारों किस्‍म के बवंडर उमड़ रहे हैं। लेकिन मेरे साथ मुझको जानने वाले जिस तरह से खड़े हैं, वे मुझे किसी भी आत्‍मघाती कदम से अब तक रोके हुए हैं। एक ब्‍लॉग पर विष्‍णु बैरागी ने लिखा, ‘इस कि‍स्‍से के पीछे ‘पैसा और पावर’ हो तो कोई ताज्‍जुब नहीं...’, और इसी किस्‍म के ढाढ़स बंधाने वाले फोन कॉल्‍स मेरा संबल, मेरी ताक़त बने हुए हैं।मैं जानता हूं, इस एक आरोप ने मेरा सब कुछ छीन लिया है - मुझसे मेरा सारा आत्‍मविश्‍वास। साथ ही कपटपूर्ण वातावरण और हर मुश्किल में अब तक बचायी हुई वो निश्‍छलता भी, जिसकी वजह से बिना कुछ सोचे हुए एक बीमार लड़की को छोड़ने मैं उसके घर तक चला गया।मैं शून्‍य की सतह पर खड़ा हूं और मुझे सब कुछ अब ज़ीरो से शुरू करना होगा। मेरी परीक्षा अब इसी में है कि अब तक के सफ़र और कथित क़ामयाबी से इकट्ठा हुए अहंकार को उतार कर मैं कैसे अपना नया सफ़र शुरू करूं। जिसको आरोपों का एक झोंका तिनके की तरह उड़ा दे, उसकी औक़ात कुछ भी नहीं। कुछ नहीं होने के इस एहसास से सफ़र की शुरुआत ज़्यादा आसान समझी जाती है। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरा नया सफ़र कितना कठिन होगा।एक नारीवादी होने के नाते इस प्रकरण में मेरी सहानुभूति स्‍त्री पक्ष के साथ है - इस वक्‍त मैं यही कह सकता हूं। Posted by avinash

य़शवंत के भड़ास से

भोपाल से एक बड़ी खबर। भास्कर ग्रुप के हिंदी टैबलायड अखबार डीबी स्टार के संपादक अविनाश दास को प्रबंधन द्वारा कार्यमुक्त किए जाने की सूचना है। सूत्रों के अनुसार अविनाश पर भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने छेड़छाड़ और शारीरिक दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है। अविनाश अतिथि शिक्षक के रूप में इस विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए जाते थे। छात्रा ने अविनाश के खिलाफ लिखित शिकायत विश्वविद्यालय और भास्कर प्रबंधन से की है।
भड़ास4मीडिया से बातचीत में माखनलाल के जनसंचार विभाग की हेड दविन्दर कौर उप्पल ने स्वीकार किया उनके विभाग की एक छात्रा ने अविनाश दास की लिखित कंप्लेन की है और उन्होंने इस कंप्लेन को विश्वविद्यालय के वाइच चांसलर के पास फारवर्ड कर दिया है। उप्पल ने इस मामले पर इससे ज्यादा कुछ भी बताने से इनकार किया। वहीं विश्वविद्यालय से जुड़े एक उच्च पदस्थ सूत्र का कहना है कि कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने छात्रा की शिकायत की जांच के लिए एक कमेटी के गठन का आदेश दिया। कमेटी ने पूरे मामले की छानबीन की और जांच रिपोर्ट सौंप दी। इस जांच रिपोर्ट के तथ्यों से भास्कर प्रबंधन को भी अवगत करा दिया गया है। विश्वविद्यालय के छात्रों का एक दल पीड़ित छात्रा को न्याय दिलाने के लिए भास्कर प्रबंधन का दरवाजा पहले ही खटखटा चुका था। प्रबंधन ने इस मामले को तूल पकड़ता देख अपने ब्रांड और कंपनी के नाम को बदनाम न होने देने के लिए अविनाश दास को संस्थान से बाहर करने का फैसला ले लिया।
सूत्रों का कहना है कि सोमवार की शाम अविनाश को भास्कर प्रबंधन के फैसले का पत्र थमा दिया गया जिसमें उन्हें तत्काल प्रभाव से बर्खास्त किए जाने की बात कही गई है। इस मामले पर भड़ास4मीडिया से अविनाश दास ने कहा कि उन्हें साजिशन फंसाया गया है। पत्रकारिता में किसी तरह के दबाव को बर्दाश्त न करने के अपने स्वभाव के चलते अंदर-बाहर के कई बड़े लोग उनसे खार खाए बैठे हैं। इन्ही लोगों ने एक साजिश के तहत सारा कुछ नाटक रचा है। अविनाश ने बताया कि वे बेहद डिप्रेशन में हैं और इस मुद्दे पर फिलहाल ज्यादा कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं।
ज्ञात हो कि अविनाश दास डीबी स्टार, भोपाल से पहले एनडीटीवी, नई दिल्ली में थे। एक चर्चित हिंदी ब्लाग के माडरेटर के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले अविनाश ने पत्रकारिता की शुरुआत प्रभात खबर के साथ की और इस अखबार के लिए पटना, रांची और देवघर में लंबे समय तक काम किया। एनडीटीवी, दिल्ली से भी अविनाश को किन्हीं अप्रिय स्थितियों के चलते जाना पड़ा था।

Tuesday, February 17, 2009

दिल पर सोनजुही उग आई

इन छबियों में ये कैसी अंगड़ाई है.
लरज-लरज कर छलक रही अमराई है.
टूट-टूट कर धड़क रहे हैं दिल सबके
अपने दिल पर सोनजुही उग आई है.
पूरब से जब सुबह-सवेरे
सूरज आंखें खोले
हवा समुद्री पश्चिम से आ

डोले हौले-हौले
जैसे बासंती बुर्जों पर फिर सरसों अलसाई है.

पिहिक कमलिनी
कुहुक रागिनी छेड़ रही
चिहुक-चिहुक कर
तितली रंग उड़ेल रही
गेंदे की पंखुड़ियों पर क्यों भौंरा भरे जम्हाई है.

Wednesday, February 11, 2009

बाहों में जो टूट के तरसी


अलसाई सी सोनजुही बौराई सी
महुआ की ओस.
चिर पलाश की मादकता
या मुक्त तबस्सुम लाखों कोस.
छिपी उनींदी किरण पूस की
सप्तक की झन्क्रित उदघोष
शरद रत्रि की नीरवता
या रति की सुन्दरता का कोष .
जेठ दुपहरी की बदली
तुम निर्झर की छींटों का तोष
विधि ने हंस कर ही की हो
उस एक शरारत भर का दोष .
मेघों से जो रूठ के बरसी
हो ऐसी बरखा का रोष
बाहों में जो टूट के तरसी
भूली बिसरी खोई होश.