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कैसा जमाना है
कि पेड़ों के बारे में बातचीत भी लगभग जुर्म है
क्योंकि इसमें बहुत सारे कुकृत्यों के बारे में हमारी चुप्पी भी शामिल है।
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हर चीज बदलती है
अपनी हर आखिरी सांस के साथ
तुम एक ताजा शुरुआत कर सकते हो।
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अमरीकी सिपाही ने जब मुझसे कहा
कि खाते-पीते मध्यवर्ग की जर्मन लड़कियां
तंबाकू के बदले और निम्न मध्य वर्ग की
चाकलेट के बदले खरीदी जा सकती हैं।
लेकिन भूख से तड़पते रूसी मजदूर
कभी नहीं खरीदे जा सकते
मुझे गौरव महसूस हुआ।
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सिर्फ पांच सवाल
-रोजाना कितनी औरतें मरती हैं बीमारी से?
-रोजाना कितनी औरतें मरती हैं भूख से?
-रोजना कितनी लड़कियां स्कूल नहीं जाती हैं?
-रोजाना कितनी दहेज हत्याएं दर्ज होती हैं थानों में?
-जिस देश की राष्ट्रपति औरत हो, वहां की ज्यादातर औरतें गरीब क्यों हैं?
Thursday, February 7, 2008
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1 comment:
सोचने की बात है ! जरा कवि परिचय भी दीजिये ।
घुघूती बासूती
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