अलसाई सी सोनजुही बौराई सी
महुआ की ओस.
चिर पलाश की मादकता
या मुक्त तबस्सुम लाखों कोस.
छिपी उनींदी किरण पूस की
सप्तक की झन्क्रित उदघोष
शरद रत्रि की नीरवता
या रति की सुन्दरता का कोष .
जेठ दुपहरी की बदली
तुम निर्झर की छींटों का तोष
विधि ने हंस कर ही की हो
उस एक शरारत भर का दोष .
मेघों से जो रूठ के बरसी
हो ऐसी बरखा का रोष
बाहों में जो टूट के तरसी
भूली बिसरी खोई होश.
4 comments:
bahut badhiya rachana badhai.
बहुत अच्छी कविता है
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चाँद, बादल और शाम
बहुत अच्छी रचना है।बधाई। ऊपर का चित्र बहुत जोरदार बनाया है।
bahut hi bhavbhini rachna hai
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