लो जी, अब ये भी पढ़ो और बूझो तो जानें
1.चोखेर बाली की पोस्ट
ब्लॉग जगत के बलात्कारी ब्वायज़
कल से कठपिंगल नामक एक नव ब्लॉगर जो कि बडे मठाधीश भी होते हैं बहुत परेशान हैं ! उन्होंने एक साथी बलात्कारी ब्लॉगर की अपराध की दास्तान हम सब को सुनाई और फिर जी भर यहाँ जांचने में तुल गए कि कौन उसपर कितना रिऎक्ट कर रहा है ! यश्वंत के बलात्कारी व्यक्तित्व की निंदा में चोखेरबाली समाज चांय चांय नहीं कर रहा वे इस बात से भी आहत हैं ! अविनाश ने कल बलात्कार की कथा को बहुत दम से बयान किया ! उन्होंने हमेशा की तरह अपनी पत्नी को घर पर ही रखा और ब्लॉग जगत के सबसे सेंसेटिव और ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते सब ब्लॉगरों को उनके नैतिक ड्यूटी के लिए उकसाया ! पर जैसा कि प्रमोद ने कहा यश्वंत पकडा गया क्योंकि वह फिजिकल एब्यूज़ कर बैठा था ! पर यहां के कई थानेदार मठाधीश जो कि समाज के हर मुद्दे पर सबसे तेज और संवेदनशील राय रखते हैं आजाद हैं और तबतक रहेंगे जबतक कि कोई फिजिकल एब्यूज न कर बैंठें !
ब्लॉग जगत के मोहल्ला की चारपाई पर बैठा एक ब्वाय बलात्कार की खबर दे रहा है दूसरा ब्वाय जेल से छूटा ही है ! चारपाई वाले ब्वाय की पत्नी घर के अंदर और बलात्कारी की पत्नी गांव में है ! अब बचीं ब्लॉग जगत की औरतें जिनके लिए मोहल्लापति ने नए संबोधन बनाना ,उनको उनके कर्तव्य बताना , उनके सम्मान और हित में बोलने वाले पुरुषों को पुरुष समाज का विभीषण बताना जैसी कई बातें इस ब्वाय ने बताईं हैं ! इसमें से एक ब्वाय स्त्री विमर्श जैसे कई विमर्शों की रिले रेस चलवाता है और चाहता है कि उसे हिंदी ब्लॉग जगत का सबसे बौद्दिक और समझदार ब्वाय समझा जाए ( क्योंकि वह बलात्कारी भी नहीं है ) जबकि दूसरे ब्वाय के द्वारा बलात्कार की खबर देता हुआ यहाँ चारपाई ब्वाय अपनी एक परिचित ब्लॉगर को " सनसनी गर्ल " दूसरी को छुटे सांड की तरह सींग चलाने वाली माताजी कहकर ही अपनी बात आगे बढा पाता है ! हमारे पास यश्वंत के बलात्कारी रूप के कोई फोटो नहीं हैं ( हो सकता है कोई ब्वाय जारी कर दे आजकल में ..) पर हमारे पास चारपाई ब्वाय का लिखा है
आप कहें गे कहेंगे क्या अनूप तो कह ही रहे हैं कि नीलिमा ने ही उनको उकसाया है तो फिर यहाँ सब तो लाजमी है ! यश्वंत का भी क्या कसूर रहा होगा उस पीडिता ने भी उसको उकसाया होगा !अब चारपाई ब्वाय को उकसाया जाएगा तो वह किसी स्त्री को पहले तो भूखी सांड की तरह हर जगह दौडती ही कहेगा माताजी भी कह लेगा पर इससे ज्यादा मत उकसाओ ....! जाहिर है अपनी हदों को पार करने वाली औरत या आपकी गलती दिखाने वली औरत माताजी ही कलाऎगी क्योंकि वह सुकुमारी वाले काम कहां कर रही है ! विरोध के स्वर में बोलने वाली औरत को बूढी पके बाल वाली माताजी कहने से कितना चिढ सकती है वह ! वह जाकर शीशे में ध्यान से अपने को निहारने पहुंचेगी कि ऎसा मेरे चेहरे में क्या था कि मैं माताजी लगने लगी हूं , छुटी भूखी सांड की तरह लगती हूं .....बस वह उदास हो जाएगी चेहरे पर लेप मलेगी और अपने आप से वादा करेगी कि कल से किसी भी मर्द को ऎसे नहीं कहेगी और उनकी तारीफ के योग्य करम करेगी !
वैसे जब चारपाई ब्वाय एक बलात्कार की खबर देते हुए स्त्री के बारे में इन संबोधनों को कह रहा है तो उसके मन में यही न चल रहा होगा कि छुटी सांड सी दौडती फिरोगी तो यही सुनोगी ! और फिर कुछ भी फिजिकल या लैंग्वेज एब्यूज़ हो सकता है ! माई डियर तैयार रहा करो तुम्हारे साथ आगे कुछ भी हो सकता है ! वह सोचता होगा हमारी वाली को देखो घर में बंधी रहती है मजाल है उसके साथ कोई कुछ कर जाए ...!
ऎसे चारपाई ब्वाय को मसिजीवी पत्नीवादी ,प्रमोद सिंह भी "बदचलन " लगेगा ! दोनों ही अपनी पत्नी को बांधकर नहीं रख सके ! एक की भूखे सांड सी दौडती रहती है दूसरे की भाग जाती है ! हे चारपाई ब्वाय तुम नीलिमा को कठघरे में खडा करने के लिए जितने उतावले हो अगर उतने ही उलावले अपनी काठ की संवेदना को गलाने के लिए होते तो बात थी !
तुम तो पहुंचे गाल बजाते देखो साला पकडा गया बलात्कार ऎसे नहीं किया जाता साले को कितनी बार समझाया था ! जो करो ऎसे करो कि पकडे न जाओ ! बोधि जी को देखो बोला भी बाद में पलट भी गए बच गए ! मुझे देखो सनसनी गर्ल कहा था तुरंत मिटा दिया साथ ही यह कहने के ऎतराज में आई टिप्पणी भी मिटा दी ! एकदम साफ कोई सबूत नहीं ! पर भूखी सांड सी पीछे पडेगी तो आगे का कुछ नहीं कह सकता ! मैं कहता था न मैं बडा बाप हूं मुझसे सीखो ! स्त्री विमर्श भी करो स्त्री का एब्यूज़ भी करो ! तरीका मुझसे सीखो -मैंने कई बार कहा था ! तुम ठहरे कच्चे खिलाडी और जल्दबाज ..खैर भुगतो !
तो हे चारपाई ब्वाय हिंदी व्लॉग जगत की मुझ सी भूखे सांड सी बेवजह जगह -जगह दौडती औरत जिसमें तुमने अपनी माताजी का रूप देखा , पत्रकार स्मृति दुबे जिनमें तुम्हें सनसनी गर्ल ( कॉल गर्ल ,बार गर्ल ,पिन अप गर्ल ,सिज़्लिंग गर्ल जैसी ही कोई चीज़ .....जो तुम औरतों में देखते होंगे ..) प्रत्यक्षा , सुजाता मनीषा पांडे जैसी तमाम औरतें बस अब तुम्हारी चारपाई की ओर देख रही हैं ! चारपाई पकडे रहना बलात्कारी ब्वाय को तो हम और कानून मिलकर देख ही लेंगे ,साथ की कामना करेंगे कि और कोई बलात्कारी ब्वाय उगने न पाए ! आमीन !
POSTED BY NEELIMA AT 9:22 AM
23 COMMENTS:
दिनेशराय द्विवेदी said...
जवाब शानदार है। बिलकुल मुहँ तोड़। अभी घोषणा आने वाली है कि मुहँ सलामत है।
9:35 AM Neeraj Rohilla said...
आमीन,इससे ज्यादा और क्या कहें, सबको सनमत दे भगवान् ...वैसे हमे भी पता चल चुका है की कठपिंगल कौन है :-)
9:51 AM अरुण said...
अब बेचारे फ़ुरसतिया जी को मत घसीटिये उन्हे सही है कहने की इतनी आदत पड चुकी है कि वो तो कठपिंगल वाली पोस्ट पर "सही है लगे रहो "लिख कर निकल लिये थे :)
10:25 AM सुजाता said...
कठपिंगल उर्फ अविनाश के दिये निर्देशों का पालन करना क्या हमारा परम कर्तव्य है ? चोखेर बालियों ने पहले तो स्कारलेट कीलिंग की डायरी नही छापी और न ही अपने अंतरंग अनुभवों को शेयर किया ..इसलिए अविनाश को पहले तो जनसत्ता तक मे लिखना पड़ा कि सुघड़ औरतें बेकार मे लफ्फाज़ी कर रही हैं , उन्हें अपने नितांत निजी अनुभव कहने चाहिये ।तब भी चोखेर बालियाँ आवारा थीं -वे लिखते हैं - "बल्कि कहा जा सकता है कि कुछ सुघड़ किस्म की स्त्रियां विमर्श के उस मैदान में खड़ी हो गयी हैं - जहां आवारगी की दौड़ और कसरत होती रहती है"http://mohalla.blogspot.com/2008/04/blog-post_13.htmlफिर कल उन्हें अफसोस हो रहा था कि -अफ़सोस तो इस बात का ज़्यादा था कि उस टिप्पणी पर सैंड ऑफ द आई के लेखक-पाठक पूरी तरह ख़ामोश थे, जबकि मसला स्त्री के सम्मान पर हमले से जुड़ा था। http://mohalla.blogspot.com/2008/05/blog-post_25.htmlजिस पोस्ट का ज़िक्र अविनाश ने किया है उसके पाठक उस दिन अविनाश खुद भी थे । उनकी टिप्पणी वहाँ मौजूद है । जब वे सत्यता जानते थे तो क्यों नही अपनी टिप्पणी मे कहा कि कठपिंगल की बात सच है ? एक पोस्ट कैसे बनती ?***अविनाश , विजतशंकर चतुर्वेदी , शेष - यश्वंत को तो पहले ही ब्लॉग जगत खारिज कर चुका है ।चोखेर बालियाँ पुर्ज़ोर विरोध कर चुकी हैं । लेकिन जो उसके दोस्त आज भी हैं वे कल भी रहेंगे । उन्हें यशवंत को खारिज करने के लिए तैयार कीजिये न ! और सही कहा नीलिमा - यश्वंत को तो अब कानून देख ही लेगा ।और यह बात कि यश्वंत एक प्रवृत्ति है तो उसका विरोध तो चोखेर बालियाँ शुरुआत से ही कर रही हैं । आप बस अपने भीतर के यश्वंत को काबू मे रखने मे वक़्त लगाएँ तो चोखेर बालियों की कुछ मदद हो जाए ।
10:53 AM सुजाता said...
" हाँ, रचना जी की अलग-अलग परिधानों में मुझे उनकी तस्वीरें पसंद आयीं. उन्होंने किन्हीं शास्त्री जी का ज़िक्र किया था कि वह उनके समर्थन से ऐसा कह रही हैं************* ------------- यह आज की पोस्ट का हिस्सा है जो मोहल्ला पर छपी है ।हद है !
11:07 AM बाल किशन said...
आपकी बात और इस करारे जवाब दोनों से मैं सहमत हूँ.आपने अभी जो भी लिखा है सही लिखा हैं.यशवंतजी और अविनाशजी जैसे लोगों को मैंने कभी पसंद भी नही किया.आपको बता दूँ की सागर नाहर जी वाले मामले के बाद मैंने कभी अविनाशजी को पढ़ा भी नही. और यशवंत जी के तों क्या कहने वे तों अवतारी पुरूष हैं.लेकिन आपसे सिर्फ़ ये कहना चाहूँगा की " काजल की कोठरी में कैसा भी सयाना जाय कालिख लगेगी ही."फुरसतिया जी के कहने का सिर्फ़ यही मतलब था. उसे आपने दिल पर ले लिया. मैं ये कोई उनकी वकालत नही कर रहा हूँ. जो सच लगा वो कह रहा हूँ.और फ़िर कल मसिजीवी जी की पोस्ट पर अजदक जी की जो पहली टिपण्णी थी वो भी तों उचित नही थी. मुझे उसपर भी आपति है.ग़लत तों हर हाल मे ग़लत है. हम ऐसा नज़रिया क्यों रखते है की मेरा ग़लत सही है और तुम्हारा ग़लत ग़लत है.और अंत मे सिर्फ़ एक बात कहना चाहूँगा की ग़लत को ग़लत नहीं काट सकता.
3:46 PM बाल किशन said...
"यही बात अगर दूसरी जबान मे कोई कहता तों वो कह सकता था की आदमी को अपने गिरेबान मे भी झांकना चहिये."मेरी इस कथन का आपसे कोई सरोकार नहीं हैं मेने सिर्फ़ एक बात कहने की कोशिस की है जो शायद सब तक पंहुच सके.मैं आपकी इस पोस्ट से पुरी तरह सहमत हूँ.
3:52 PM Pratyaksha said...
गलत बात का प्रतिकार किया ... सही किया । चुपचाप सह लेना संयम नहीं कमजोरी की निशानी जब समझी जाय तब बोलना ही उचित है ।
4:21 PM Anonymous said...
ये लिंक देखें, आपलोगों को और मज़ा आएगा :http://kathpingal.blogspot.com/2008/05/blog-post_26.html
5:55 PM कठपिंगल said...
पिछली बार सुजाता, इस बार मसिजीवी-नीलिमा... अरे हो क्या गया है आप फैमिली को। यशवंत ने कोई घूस दिया है क्या - या बलात्कार जैसी चीज़ें आपके लिए एनजॉयमेंट का साधन है। गुस्से को संगठित करने और मवाद की तरह इधर उधर न बहने देने के लिए इंतज़ार कीजिए अपनी बेटियों के बलात्कार होने तक।
6:05 PM आभा said...
गलत ,गलत है ,बोधि ही क्यों न हो ,बोधि की खबर मैं पिछले तीन दिनों से ले रही हूँ ,ये कठपिंगल उर्फ अविनाश को दिमाग के डाँ. के पास ले जाना चाहिए वही पागल खाने मे बाँध कर छोड़ देना चाहिए ......
7:17 PM सुनीता शानू said...
जो सच है कभी छुप नही सकता...बेकार का आपस में झगड़ा छोड़ दें...
8:03 PM खुल के बोल said...
इस कठपिंगल को इतना समझ नही आता कि सुजाता नीलिमा मसिजीवि प्रत्यक्षा आभा सभी यशवंत का विरोध कर रहे हैं पर साथ ही अविनाश और इसके अन्दर छुपे बैठे यश्वंत का भी विरोध कर रहे हैं । यशवंत के विरोध के चक्कर में अविनाश , विजयशंकर चतुर्वेदी और कठपिंगल तीनों ने अपने मन के बलात्कारी को उजागर कर दिया है ।कठपिंगल ने जो टिप्पणी आभा के लिए दी है उससे भद्दा और कुत्सित कुछ् नही हो सकता ।नीलिमा को उसे हटाना नही चाहिये था , पता तो लगता बाकी ब्लॉगरों को कि यशवंत की भर्तसना करने वाला खुद कितना घिनौना है । ब्लॉग जगत का यह माहौल जो औरतों के लिए यशवंत,अविनाश , कठपिंगल ने मिलकर बनाया है उसके चलते भड़ास से भी ज़्यादा गनदगी यहाँ फैल गयी है । किस किस को ब्लॉगवाणी से हाटाओगे ?और अभी तो कठपिंगल ने धमकी भी दी है कि अभी बहुत से राज़ खुलने बाकी हैं ।ऐसा लगता है कि ब्लॉग न हो कोई लड़ाई का मैदान हो ।
9:13 PM Anonymous said...
Yashwant ne Rajput Jati ke kuchh dabang logo se ladki ko phone karaya hai. Wo garib Dalit ladki sahami hai, Pls uski madad ke liye samane aaye. Jyada jankari ke liye 011-22521067 par phone kare.
10:21 PM कठपिंगल said... This post has been removed by a blog administrator. 10:37 PM siddharth said...
हद है भाई! ब्लॉगर समाज इतना खुलकर गाली-गलौज करता है, एक-दूसरे की धोती खोलने पर इतना उतारू है, और अपना बुद्धि कौशल नंगई की भाषा गढ़ने में खर्च कर रहा है; यह सब देखकर तो घबराहट हो रही है। उफ्फ्…
11:08 PM अनूप शुक्ल said...
नीलिमाजी,मैंने सबेरे मसिजीवी के ब्लाग पर यह कमेंट किया था-मसिजीवी,१.अविनाश की टिप्पणी अशोभनीय है।२.नीलिमा ने उनके ब्लाग पर उनको आदरणीय सनसनी ब्वाय अविनाश जी लिखकर उनको ऐसा करने के लिये उकसाया। 'सनसनी व्बाय' ने अपने प्रति व्यक्त विश्वास की रक्षा की।३. प्रमोदजी की आपत्ति जायज है। आपको अपने ब्लाग पर कमेंट माडरेटर लगाने के बारे में सोचना चाहिये।१. पहली बात पर तो आपको कोई एतराज नहीं होना चाहिये। अविनाश की टिप्पणी अशोभनीय है। २. दूसरी बात के बारे में कहने के पहले मैं बताना चाहूंगा कि यह टिप्पणी मैंने आपके अविनाश की इस पोस्ट पर किये कमेंट के लिये किया था। आपने अपने कमेंट में लिखा था -आदरणीय सनसनी ब्वाय अविनाश जी ,जिस स्त्री ब्लॉगर को आपने सनसनी गर्ल कहा( बार गर्ल ,कॉल गर्ल आदि की तर्ज पर ..)उनका नाम स्मृति दुबे है !इस पोस्ट से मेरा यह कमेंट आपने मिटा दिया !अच्छा है ! बहुत जल्द आपने अपनी "भूल" सुधार ली ! मेरी टिप्पणी के साथ साथ आपने "सनसनी गर्ल " का जो फतवा जारी किया था स्मृति दुबे के लिए उसे भी वापस ले लिया!आप अविनाश की प्रवृत्ति से अच्छी तरह वाकिफ़ होने की बावजूद यदि अपने कमेंट में उसेसनसनी व्बाय की उपाधि से नवाजती हैं तो आप उसे उसका मनचाहा मौका मुहैया कराती हैं।इसे आप चाहे जो समझें लेकिन मेरा यह पक्का मानना है कि आपने अविनाश की इस पोस्ट यह टिप्पणी करके उसे वह लिखने के लिये मौका सुलभ कराया , उसे बहाना दिया ताकि आपको वह इस अशोभन तरीके से संबोधित करने का बहाना तलाश सके। कोई नयी ब्लागर होतीं तो बात समझी जा सकती थी लेकिन आप अच्छी तरह उसकी हरकतों से परिचित हैं इसके बावजूद अविनाश से यह आशा करना कि आपके इस सनसनी व्बायवाले कमेंट पर कोई आदर सूचक संबोधन से मन को खुश कर देने वाली बात करेगा खाम ख्याली है। इस सीधी बात को आप अपनी मर्जी के अनुसार समझ कर मुझे सामंतवादी, पुरुषवादी और जो समझ हो आपकी उस उपमा से नवाजें तो यह आपकी अपनी समझ है। अपनी समझ के अनुसार अपने मनचाहे तर्क को पुरुषवादी/सामंतवादी बताकर सही साबित कर देना कौन सा वाद है ! इस पर भी कभी आपके मुंहतोड़ जबाब पर शाबासी देने वाली सहेलियां कभी विचार करें।एक बात और , मैं अविनाश की पोस्ट और आपकी सनसनी व्बाय टिप्पणी पर मसिजीवी की ही पोस्ट से पहुंचा। सबेरे वहां जो लिंक लगा था उससे सीधे उस पोस्ट पर पहुंचे थे। अभी उसकी जगह मोहल्ला का लिंक लगा है। संबंधित पोस्ट देखने के लिये मोहल्ले की भूलभुलैया में भटकना पड़ता है। मसिजीवी शायद कहें कि लिंक मैंने नहीं बदला तो यह अनुरोध है कि कृपया सही लिंक तो लगा दें।३. तीसरी बात मैंने मसिजीवी को लिखी थी।प्रमोदजी की आपत्ति जायज है। आपको अपने ब्लाग पर कमेंट माडरेटर लगाने के बारे में सोचना चाहिये। मसिजीवी ने प्रमोदजी के बारें में की गयी बेहूदी टिप्पणी हटा दी।लेकिन तब तक न जाने कितने लोग उसे देख चुके थे। वही बात आपके ब्लाग के लिये कहता हूं। आपने अपने ब्लाग पर कोई माडरेटर नहीं लगाया है। अभी तक आभा जी के बारे में की गयी निहायत घटिया टिप्पणी यहां मौजूद है। जब कभी आप इसे हटाने की सोचेंगी तब तक इसे न जाने कितने लोग पढ़ चुके होंगे। आप बतायें यह कौन सी मानसिकता है? क्या चीजें तभी बुरी लगती हैं आपको जब वे खास कर आपके और आपके परिवार के बारें कहीं जायें। टिप्पणी लम्बी हो गयी। मैं सिर्फ़ यही कहना चाह्ता हूं कि चीजों में फ़र्क करना सीखिये। अपने पूर्वाग्रह के चश्में से इतर चीजें भी देखने का प्रयास कीजिये। ब्लाग जगत में लोग एक दूसरे से मिले-जुले नहीं हैं लेकिन यह फ़र्क करना बहुत मुश्किल नहीं होता कि किसकी सोच-समझ कैसी है।मुझे यह भी पता है कि आप शायद तिलमिलाकर कहें कि यह महिलाऒं को 'कमअक्ल' समझकर अकल देने की पुरुषवादी सोच है। तो ऐसा कुछ नहीं है। यह सलाह है, आप इसे माने तो सही न माने तो बहुत सही। इसके जवाब में एक और मुंहतोड़ पोस्ट लिख दें तो सबसे सही।
11:19 PM masijeevi said...
अनूपजी,जब आपने कमेंट टाईप करना शुरू किया था तब तक आभाजी को लेकर बदमजा टिप्पणी यहॉं रही होगी...खेद है...आपका कमेंट आने से पहले हटाकर और कमेंट माडरेशन शुरू करने के बाद नीलिमा सोने चली गई हैं (आपका कमेंट मैंने अप किया है) इसलिए टिप्पणी के उन हिस्सों का उत्तर तो अभी नहीं मिल पाएगा जो उनके दृष्टिकोण से जुडा़ है किंतु जिस वजह से आपको यह उकसाने वाला भ्रम हो रहा वह यह है कि आपके पहली बार पढ़ने से पहले ही अविनाश ने अपनी पोस्ट संशोधित कर दी, नीलिमा की मूल टिप्पणी मिटा दी। अपनी मूल पोस्ट में उन्होंने नई ब्लॉगर समृति दुबे को इसलिए बदतमीजी से सनसनी गर्ल कहा था क्योंकि वह चोखेरबाली पर लिख रही थी तथा उसके लेखन अविनाश के मित्र रवीश असहज महसूस कर रहे थे।'सनसनी ब्वाय' उस सनसनी गर्ल के अनुप्रास में ही पढ़ा जाना था पर अविनाश के शौर्य से यह बिना संदर्भ के ही दिख रहा है। आपकी तरह मैं भी मानता हूँ कि अविनाश द्वारा अकारण टिप्पणी मिटाने और आनन फानन में अपनी करतूत को पूरी तरह डिस्ओन करने से ही उसकी मंशा साफ हो रही थी...इसलिए बेहतर होता कि नीलिमा आगे की बात अपने मंचों से कह सकती थीं पर खैर अविनाश अविनाश ही है।अविनाश से असहमति स्वाभाविक रूप से ढेर सारे अनाम दिए गए आशीर्वचनों को आमंत्रण देता रहा है...इस बार तो अविनाश ने सनाम भी दिए।मुझे गर्व है कि नीलिमा बलात्कार की इन प्रवृत्तियों की ओर संकेत करने का जोखिम उठा रही हैं जो इन दुकानदारों में साफ पैठी हैं...वे देखने के लिए तैयार नहीं...वे जानें।लिंक मैंने दोबारा जॉंचे ठीक हैं..ऊपर मोहल्ला का लिंक क्योंकि नीलिमा की टिप्पणी वहीं है..नीलिमा की ये पोस्ट तो आज आई है इसलिए इसका लिंक मेरी कल की पोस्ट पर कैसे हों...नीचे के लिंकबैक में रहा होगा...आज वहॉं मोहल्ला का लिंक है क्योंकि अविनाश ने इपनी पोस्ट में खीज के साथ जोडा़ है।
11:55 PM अनूप शुक्ल said...
लिंक कोई हटायें हों मैंने सारी बातें यहां लिख दी हैं। अब यह आप लोगों पर है कि क्या ऒन करते हैं क्या डिसओन!
1:50 AM अजित वडनेरकर said...
सही है। ये कठपिंगल कौन है ? हमने सबसे पहले अपने ब्लाग से इनकी टिप्पणी हटा दी थी। तब तक हमें कुछ नहीं पता था इस कहानी के बारे में। ब्लाग जगत की ये बातें तो भइया समझ से परे हैं।
2:14 AM Pramod Singh said...
@आभा, पहली बात के लिए धन्यवाद कहने आया हूं. दूसरी के कहे के लिए कहूंगा- हमें अपना धीरज नहीं गंवाना चाहिए.
9:02 AM संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...
मै सुनीताजी व सिद्धार्थ जी से सहमत हू. बुद्धिजीवी व मसिजीवी कहे जाने वाले लोग भी इस तरह से व्यर्थ के वाद-विवाद करेगे तो रचनात्मकता कहा मिलेगी स्रिजन कौन करेगा?नीलिमाजी अन्यथा मत लेना मै सीख देने वाला कौन होता हू किन्तु मेरा निवेदनपूर्ण आग्रह है, इस वाद-विवाद को छोड्कर कुछ अच्छा किया जाय.बलात्कार शब्द इतना अच्छा व आनन्द्पूर्ण व सामाजिक नही हो सकता कि इसको इतना प्रचारित किया जाय.
9:37 AM Anwar Qureshi said...
गाँधी जी के देश में ये किस तरह की भाषा का प्रयोग किया जा रहा है , हमे उन भाषाओँ का उपयोग नहीं करना चाहिए जिन्हें हम अपने माता पिता के सामने न कह सके !!!
Posted by सुजाता
7 comments:
रौशन said...
हाँ अब हम इंतज़ार कर रहे हैं अविनाश जी का . आपने सही ही कहा है कि अविनाश जी का कर्तव्य बनता है जवाब दे.
संदीप शर्मा Sandeep sharma said...
क्यों फोकट की लडाई कर रहे हो सब....ब्लॉग पर आप (ब्लोग्रिये) उल्टा-सीधा इसीलिए लिखते हैं क्योकिं लोगो का ध्यान उधर जाए. आप लोग उसे चर्चा का विषय नहीं बनायेंगी तो, कोई उसे देखेगा भी नहीं. वैसे भी देश में कितनी मगज़िने छपती है. भद्दी-भद्दी. गोबर को देखना बंद कर दे तो चार दिन में अपने-आप ही सुखकर खाद बन जाएगा....
Anonymous said...
गोबर को देखना बंद कर दे तो चार दिन में अपने-आप ही सुखकर खाद बन जाएगा....chintan ka star kafi uncha hai.
Anonymous said...
क्या सचमुच एक झूठ से सब कुछ ख़त्म हो जाता है?मुझ पर जो अशोभनीय लांछन लगे हैं, ये उनका जवाब नहीं है। इसलिए नहीं है, क्योंकि कोई जवाब चाह ही नहीं रहा है। दुख की कुछ क़तरने हैं, जिन्हें मैं अपने कुछ दोस्तों की सलाह पर आपके सामने रख रहा हूं - बस।मैं दुखी हूं। दुख का रिश्ता उन फफोलों से है, जो आपके मन में चाहे-अनचाहे उग आते हैं। इस वक्त सिर्फ मैं ये कह सकता हूं कि मैं निर्दोष हूं या सिर्फ वो लड़की, जिसने मुझ पर इतने संगीन आरोप लगाये। कठघरे में मैं हूं, इसलिए मेरे लिए ये कहना ज्यादा आसान होगा कि आरोप लगाने वाली लड़की के बारे में जितनी तफसील हमारे सामने है - वह उसे मोहरा साबित करते हैं और पारंपरिक शब्दावली में चरित्रहीन भी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं और अभी भी पीड़िता की मन:स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हूं।मैं दोषी हूं, तो मुझे सलाखों के पीछे होना चाहिए। पीट पीट कर मुझसे सच उगलवाया जाना चाहिए। या लड़की के आरोपों से मिलान करते हुए मुझसे क्रॉस क्वेश्चन किये जाने चाहिए। या फिर मेरी दलील के आधार पर उसके आरोपों की सच्चाई परखनी चाहिए। लेकिन अब किसी को कुछ नहीं चाहिए। पीड़िता को बस इतने भर से इंसाफ़ मिल गया कि डीबी स्टार का संपादन मेरे हाथों से निकल जाए।दुख इस बात का है कि अभी तक इस मामले में मुझे किसी ने भी तलब नहीं किया। न मुझसे कुछ भी पूछने की जरूरत समझी गयी। एक आरोप, जो हवा में उड़ रहा था और जिसकी चर्चा मेरे आस-पड़ोस के माहौल में घुली हुई थी - जिसकी भनक मिलने पर मैंने अपने प्रबंधन से इस बारे में बात करनी चाही। मैंने समय मांगा और जब मैंने अपनी बात रखी, वे मेरी मदद करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे थे। बल्कि ऐसी मन:स्थिति में मेरे काम पर असर पड़ने की बात छेड़ने पर मुझे छुट्टी पर जाने के लिए कह दिया गया।ख़ैर, इस पूरे मामले में जिस कथित कमेटी और उसकी जांच रिपोर्ट की चर्चा आ रही है, उस कमेटी तक ने मुझसे मिलने की ज़हमत नहीं उठायी।मैं बेचैन हूं। आरोप इतना बड़ा है कि इस वक्त मन में हजारों किस्म के बवंडर उमड़ रहे हैं। लेकिन मेरे साथ मुझको जानने वाले जिस तरह से खड़े हैं, वे मुझे किसी भी आत्मघाती कदम से अब तक रोके हुए हैं। एक ब्लॉग पर विष्णु बैरागी ने लिखा, ‘इस किस्से के पीछे ‘पैसा और पावर’ हो तो कोई ताज्जुब नहीं...’, और इसी किस्म के ढाढ़स बंधाने वाले फोन कॉल्स मेरा संबल, मेरी ताक़त बने हुए हैं।मैं जानता हूं, इस एक आरोप ने मेरा सब कुछ छीन लिया है - मुझसे मेरा सारा आत्मविश्वास। साथ ही कपटपूर्ण वातावरण और हर मुश्किल में अब तक बचायी हुई वो निश्छलता भी, जिसकी वजह से बिना कुछ सोचे हुए एक बीमार लड़की को छोड़ने मैं उसके घर तक चला गया।मैं शून्य की सतह पर खड़ा हूं और मुझे सब कुछ अब ज़ीरो से शुरू करना होगा। मेरी परीक्षा अब इसी में है कि अब तक के सफ़र और कथित क़ामयाबी से इकट्ठा हुए अहंकार को उतार कर मैं कैसे अपना नया सफ़र शुरू करूं। जिसको आरोपों का एक झोंका तिनके की तरह उड़ा दे, उसकी औक़ात कुछ भी नहीं। कुछ नहीं होने के इस एहसास से सफ़र की शुरुआत ज़्यादा आसान समझी जाती है। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरा नया सफ़र कितना कठिन होगा।एक नारीवादी होने के नाते इस प्रकरण में मेरी सहानुभूति स्त्री पक्ष के साथ है - इस वक्त मैं यही कह सकता हूं।
Anonymous said...
अविनाश को लेकर ब्लॉग से लेकर मीडिया के गलियारे तक में चर्चाएं गरम हैं। कुछ मजे ले रहे हैं तो कुछ अविनाश के लिए चिंतित हैं। मै भी चिंतित हूं। चिंता अविनाश और उसके परिवार को लेकर है। चिंता उस मानसिकता को लेकर है कि एक लड़की आरोप लगाती है और हम यकीन कर लेते हैं। यकीन ही नहीं अविनाश को दोषी भी बना देते हैं। यदि अविनाश ने ऐसा कुछ किया है तो उसे सजा मिलनी चाहिए। लेकिन यह तकलीफदायक है कि एक आरोप को आधार बनाकर उसे न सिर्फ नौकरी से निकाल दिया जाता है बल्कि अपराधी की तरह सलूक भी किया जा रहा है। आरोपी लड़की को जो लोग जानते हैं, वे इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि इस लड़की का चरित्र कैसा है। यूनिवर्सिटी के छात्र के अलावा उसके शिक्षक भी आपको यह बता देंगे। इसके अलावा आरोप लगाने वाली लड़की अनुजा बिहार में जहां रही है उसके पड़ोसियों लेकर दिल्ली तक में इसके किस्से सुने जा सकते हैं। यकीन मानिए उसे जानने वाले उसे गालियों से विभूषित करते हैं । मर्यादा का ध्यान रखते हुए अनुजा के बारें में मैं कुछ नहीं कहूंगा लेकिन उसके चरित्र के बारें में भी लोगों को पता होना चाहिए। यकीन नहीं हो तो मेडिकल जांच करवा लेनी चाहिए उसकी। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
Anonymous said...
जब भी कभी ऐसी कोई बात होती हैं तो उस स्त्री को जिस ने शिकायत दर्ज करायी होती हैं या तो चरित्र हीन या मानसिक रूप से कमजोर का तमगा दिया जाता हैं . अगर किसी का चरित्र ख़राब हैं और सब जानते हैं तो उसका साथ ??? और जो मानसिक रूप से कमजोर हो उसका भी पता चल ही जाता हैं . अफ़सोस हैं
अविनाश के मोहल्ले से
मुझ पर जो अशोभनीय लांछन लगे हैं, ये उनका जवाब नहीं है। इसलिए नहीं है, क्योंकि कोई जवाब चाह ही नहीं रहा है। दुख की कुछ क़तरने हैं, जिन्हें मैं अपने कुछ दोस्तों की सलाह पर आपके सामने रख रहा हूं - बस।
मैं दुखी हूं। दुख का रिश्ता उन फफोलों से है, जो आपके मन में चाहे-अनचाहे उग आते हैं। इस वक्त सिर्फ मैं ये कह सकता हूं कि मैं निर्दोष हूं या सिर्फ वो लड़की, जिसने मुझ पर इतने संगीन आरोप लगाये। कठघरे में मैं हूं, इसलिए मेरे लिए ये कहना ज्यादा आसान होगा कि आरोप लगाने वाली लड़की के बारे में जितनी तफसील हमारे सामने है - वह उसे मोहरा साबित करते हैं और पारंपरिक शब्दावली में चरित्रहीन भी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं और अभी भी कथित पीड़िता की मन:स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हूं।मैं दोषी हूं, तो मुझे सलाखों के पीछे होना चाहिए। पीट पीट कर मुझसे सच उगलवाया जाना चाहिए। या लड़की के आरोपों से मिलान करते हुए मुझसे क्रॉस क्वेश्चन किये जाने चाहिए। या फिर मेरी दलील के आधार पर उसके आरोपों की सच्चाई परखनी चाहिए। लेकिन अब किसी को कुछ नहीं चाहिए। कथित पीड़िता को बस इतने भर से इंसाफ़ मिल गया कि डीबी स्टार का संपादन मेरे हाथों से निकल जाए।दुख इस बात का है कि अभी तक इस मामले में मुझे किसी ने भी तलब नहीं किया। न मुझसे कुछ भी पूछने की जरूरत समझी गयी। एक आरोप, जो हवा में उड़ रहा था और जिसकी चर्चा मेरे आस-पड़ोस के माहौल में घुली हुई थी - जिसकी भनक मिलने पर मैंने अपने प्रबंधन से इस बारे में बात करनी चाही। मैंने समय मांगा और जब मैंने अपनी बात रखी, वे मेरी मदद करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे थे। बल्कि ऐसी मन:स्थिति में मेरे काम पर असर पड़ने की बात छेड़ने पर मुझे छुट्टी पर जाने के लिए कह दिया गया।ख़ैर, इस पूरे मामले में जिस कथित कमेटी और उसकी जांच रिपोर्ट की चर्चा आ रही है, उस कमेटी तक ने मुझसे मिलने की ज़हमत नहीं उठायी।मैं बेचैन हूं। आरोप इतना बड़ा है कि इस वक्त मन में हजारों किस्म के बवंडर उमड़ रहे हैं। लेकिन मेरे साथ मुझको जानने वाले जिस तरह से खड़े हैं, वे मुझे किसी भी आत्मघाती कदम से अब तक रोके हुए हैं। एक ब्लॉग पर विष्णु बैरागी ने लिखा, ‘इस किस्से के पीछे ‘पैसा और पावर’ हो तो कोई ताज्जुब नहीं...’, और इसी किस्म के ढाढ़स बंधाने वाले फोन कॉल्स मेरा संबल, मेरी ताक़त बने हुए हैं।मैं जानता हूं, इस एक आरोप ने मेरा सब कुछ छीन लिया है - मुझसे मेरा सारा आत्मविश्वास। साथ ही कपटपूर्ण वातावरण और हर मुश्किल में अब तक बचायी हुई वो निश्छलता भी, जिसकी वजह से बिना कुछ सोचे हुए एक बीमार लड़की को छोड़ने मैं उसके घर तक चला गया।मैं शून्य की सतह पर खड़ा हूं और मुझे सब कुछ अब ज़ीरो से शुरू करना होगा। मेरी परीक्षा अब इसी में है कि अब तक के सफ़र और कथित क़ामयाबी से इकट्ठा हुए अहंकार को उतार कर मैं कैसे अपना नया सफ़र शुरू करूं। जिसको आरोपों का एक झोंका तिनके की तरह उड़ा दे, उसकी औक़ात कुछ भी नहीं। कुछ नहीं होने के इस एहसास से सफ़र की शुरुआत ज़्यादा आसान समझी जाती है। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरा नया सफ़र कितना कठिन होगा।एक नारीवादी होने के नाते इस प्रकरण में मेरी सहानुभूति स्त्री पक्ष के साथ है - इस वक्त मैं यही कह सकता हूं। Posted by avinash
य़शवंत के भड़ास से
भोपाल से एक बड़ी खबर। भास्कर ग्रुप के हिंदी टैबलायड अखबार डीबी स्टार के संपादक अविनाश दास को प्रबंधन द्वारा कार्यमुक्त किए जाने की सूचना है। सूत्रों के अनुसार अविनाश पर भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने छेड़छाड़ और शारीरिक दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है। अविनाश अतिथि शिक्षक के रूप में इस विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए जाते थे। छात्रा ने अविनाश के खिलाफ लिखित शिकायत विश्वविद्यालय और भास्कर प्रबंधन से की है।
भड़ास4मीडिया से बातचीत में माखनलाल के जनसंचार विभाग की हेड दविन्दर कौर उप्पल ने स्वीकार किया उनके विभाग की एक छात्रा ने अविनाश दास की लिखित कंप्लेन की है और उन्होंने इस कंप्लेन को विश्वविद्यालय के वाइच चांसलर के पास फारवर्ड कर दिया है। उप्पल ने इस मामले पर इससे ज्यादा कुछ भी बताने से इनकार किया। वहीं विश्वविद्यालय से जुड़े एक उच्च पदस्थ सूत्र का कहना है कि कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने छात्रा की शिकायत की जांच के लिए एक कमेटी के गठन का आदेश दिया। कमेटी ने पूरे मामले की छानबीन की और जांच रिपोर्ट सौंप दी। इस जांच रिपोर्ट के तथ्यों से भास्कर प्रबंधन को भी अवगत करा दिया गया है। विश्वविद्यालय के छात्रों का एक दल पीड़ित छात्रा को न्याय दिलाने के लिए भास्कर प्रबंधन का दरवाजा पहले ही खटखटा चुका था। प्रबंधन ने इस मामले को तूल पकड़ता देख अपने ब्रांड और कंपनी के नाम को बदनाम न होने देने के लिए अविनाश दास को संस्थान से बाहर करने का फैसला ले लिया।
सूत्रों का कहना है कि सोमवार की शाम अविनाश को भास्कर प्रबंधन के फैसले का पत्र थमा दिया गया जिसमें उन्हें तत्काल प्रभाव से बर्खास्त किए जाने की बात कही गई है। इस मामले पर भड़ास4मीडिया से अविनाश दास ने कहा कि उन्हें साजिशन फंसाया गया है। पत्रकारिता में किसी तरह के दबाव को बर्दाश्त न करने के अपने स्वभाव के चलते अंदर-बाहर के कई बड़े लोग उनसे खार खाए बैठे हैं। इन्ही लोगों ने एक साजिश के तहत सारा कुछ नाटक रचा है। अविनाश ने बताया कि वे बेहद डिप्रेशन में हैं और इस मुद्दे पर फिलहाल ज्यादा कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं।
ज्ञात हो कि अविनाश दास डीबी स्टार, भोपाल से पहले एनडीटीवी, नई दिल्ली में थे। एक चर्चित हिंदी ब्लाग के माडरेटर के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले अविनाश ने पत्रकारिता की शुरुआत प्रभात खबर के साथ की और इस अखबार के लिए पटना, रांची और देवघर में लंबे समय तक काम किया। एनडीटीवी, दिल्ली से भी अविनाश को किन्हीं अप्रिय स्थितियों के चलते जाना पड़ा था।
3 comments:
हम तो मौज ले रहे थे , हमे खामखा फ़साया जा रहा है
हम तो सब देख रहे हैं, सुन रहे हैं, पढ़ रहे हैं… वाह-वाह क्या खूब भाषा का स्तर है, क्या विद्वत्तापूर्ण टि्प्पणियाँ हो रही हैं… हमने बड़े ही शिष्ट ढंग से गुलाबी चड्डी के विरोध में बहस चलाई… इतना नीचे तो हम कभी नहीं उतरे… सारी "विदुषी"(?) महिलाओं के वार झेलने के बावजूद… कैसे-कैसे पत्रकार घुस आये हैं ब्लॉग जगत में
बड़ी ही शर्मनाक स्थिति है कि आजकल अध्यापन के क्षेत्र में कदम रखने वाले इस तरह की हरकत कर इस पेशे को बदनाम करने पर तुले हैं . ..
एक बात और कहना चाहूगा कि जरा साहित्य पर दया कीजिये और मोहल्ला, भड़ास जैसे ब्लोग्स को बंद कर दीजिये ...
आशा करता हू .. सुझाव पसंद आयेगा ..
आप सभी मुझसे काफी बड़े और योग्य हैं .. लेकिन ये होते हुए मैं नही देख सकता कि मीडिया माध्यमो को बेहूदगी का अड्डा बना दिया जाए ... नाम मैं किसी के नही लूगा पर आप सभी समझदार हैं ....
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