Wednesday, January 30, 2008

ब्लॉगर सहेलियों से कुछ जरूरी सवालः एक

1.क्या हिंदू-ला के नाम से प्रचलित ऐसे सभी धर्मग्रंथों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ना जरूरी है, जो मनुष्य के प्राकृतिक अधिकारों का अपहरण करने का निर्देश देते हैं?
2.जिस दिन स्त्री अपनी उन्नति में पुरुष को बाधक मानने लगेगी, क्या उसी दिन, उसीक्षण वह भी बराबरी की उन्नति की भागीदार बन जाएगी?
3.मनुस्मृति के पांचवें अध्याय में पति को स्त्री का स्वामी और स्त्री को पति का दासी कहा गया है, और दुर्गुणों से भरे पति को भी देवता तुल्य मनना नारी का धर्म बताया गया है, यह कितना उचित है?
4.मनुष्यता की रक्षा के लिए क्या महिलाओं को पुरुष वर्चस्व के खिलाफ एकजुट होकर हर स्तर पर संघर्षरत नहीं होना चाहिए?
5.सदा-सदा के लिए पुरुष वर्चस्व समाप्त करने के लिए क्या यह आंदोलन पहले देश के स्तर पर फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर तेज नहीं किया जाना चाहिए?
6.क्या हिंदू, मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी, अमीर-गरीब सभी औरतें एक ही तरह से उत्पीड़ित नहीं की जा रही हैं?
7.क्या पुरुष जाति को शत्रु मानकर ही स्त्रियां स्वतंत्र हो सकती हैं?
8.नारी स्वतंत्रता के लिए इस सदी की नारी को किस सीमा तक पुरुष जाति को शत्रु मानना चाहिए?
9.रामचरित मानस और वाल्मीकि रामायण में सीता के प्राकृतिक माता-पिता के बारे में कोई सूचना क्यों नहीं मिलती?
10.क्या सीता ने कभी अपनी दासियों की वेदनाओं पर भी विचार किया था, नहीं तो क्यों?
11.भारतीय स्त्रियों को पहले संबंधों से मुक्ति चाहिए या उन परिस्थितियों से, जो उनकी ऊर्जा निचोड़ लेती हैं, जिससे उन्हें 18-18 घंटे घर-बाहर काम करते हुए देश-दुनिया के बारे में और कुछ सोचने करने का मौका ही नहीं मिलता?
12.क्या मौजूदा सामाजिक हालात स्त्री के शरीर को इतना नहीं निचोड़ लेते कि वह और कुछ करने लायक ही न रह जाएं?
13.स्त्री-स्त्री की बराबरी का मुद्दा ज्यादा बड़ा है या स्त्री-पुरुष की बराबरी का मुद्दा?
14.विकास की तमाम लफ्फाजियों के बीच क्या आज भी भारतीय जाति व्यवस्था में जो स्थान दलित वर्ग का है, वही घर-परिवार और समाज में स्त्री का नहीं?
15.अपने शरीर और कोख पर सिर्फ स्त्री का अधिकार हो, क्या इसे आंदोलन के एजेंडे का सबसे बड़ा सवाल नहीं होना चाहिए?

फिलहाल आज इन 15 सवालों को प्रस्तुत करते हुए संध्या गुप्ता की एक कविता के साथ अपनी बात समाप्त करती हूं-

मैं बंधी हूं पवित्र रिश्तों की डोर से
घिरी हूं शालीन सीमाओं में
मेरे चारों तरफ सुंदर शब्दों की रोशनी है
लेकिन यहां जो हवा है, उसमें रिश्तों की मिलावट है
और पानी में अशालीन तरलता
रोखनी की परछांई में असुंदर शब्दों की कालिख है
और हवा, पानी और रोशनी
जीवन की अनिवार्य शर्तें हैं।

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सवालों का सिलसिला जारी रहेगा, जारी रहेगा, चलता रहेगा!

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप को तमाम सवालों के लिए साधुवाद? पर ये सवाल सभी ब्लॉगरों के लिए क्यों नहीं?

पारुल "पुखराज" said...

A-3...yadi swaami aur daasi ka bhaav hai ..to pati -patni kaisey huey? meri samajh se parey hai,,

A-2...stri aur purush me baraabri ki baat hoti hi kyu hai?..ye ek duusrey ke puurak hain....ek key bina dusraa adhuura hai...baraabri nahi ..dono me ek duusrey ke prati summan ki bhaavnaa honi chahiye.

A-11..ishvar ne stri ke svabhaav key lacheeleypan ko hi uski taaqqat bhi banaayaa hai.. aur isi ke chaltey paristhitiyaan lagaataar badal rahi hain..aaj betiyaan office jati hain to betey bhi ghar kaa kaam karney me peechey nahi....ye badlaav hi to hai....

kul;milaa kar zaruurat hai ek padhey likhey ,sanskaari samaaj ki jahaan baraabri ke daavon ki apekshaa ek duusrey ke prati aadar bhaav ho....PROBLEM SOLVE

aur agar fir bhi sangharsh hi karna hai..ek duusrey ko unchaa neecha dikhaana hai to fir muddon ki kami nahi.....

mamta said...

हमारे ख़्याल से समाज मे स्त्री-पुरुष एक -दूसरे के पूरक होने चाहिऐ।