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औरत ब्लागर्स से कुछ जरूरी सवाल
- ब्लागिंग क्या निठल्लागिरी है?
-ब्लागिंग क्या दिमागी फितूरबाजी है?
-ब्लागिंग की दुनिया को औरत ब्लागर्स गंभीरता से क्यों नहीं ले रही हैं?
-छद्मनामा ब्लागर्स क्या यहां भी अपने भीतर के डर से त्रस्त हैं?
-इन सवालों पर चुप्पी, क्या इन सवालों को जायज ठहरायेगी?
8 comments:
आप य एसवाल स्वयं से पूछिये, जवाब जरूर मिलेगा।
सीता जी, लीजिये आपके प्रश्नों के उत्तर !
१ है भी और नहीं भी । तब अवश्य है जब केवल कुछ प्रश्न सामने रख दिये जाएँ और ना कोई उत्तर दिये जाएँ ना खोजे जाएँ ।
२ शायद ! आपको क्या लगता है ? जीवन के दोचार अहम् चीजों को छोड़कर लगभग सबकुछ यही है ।
३ बहुत गंभीरता से ले रही हैं । मुझे तो लगता है कि अब हमें कुछ हास्य व्यंग्य भी लिखना चाहिए ।
४ मैं तो बहुत बुरी तरह से डर से त्रस्त / ग्रस्त हूँ । वैसे यदि मैं आपको अपना असली नाम रुक्मणी शेख पॉलीकॉर्प ब्लॉगवाला बता भी दूँ तो क्या कुछ अन्तर पड़ेगा ?
५ बोलें या चुप रहें, आपके सवाल और यदि कभी कोई जवाब भी आएँ , वे सब जायज होंगे । जिसका भी जन्म हो चाहे वह सवाल ही क्यों ना हो वह जायज है ।
घुघूती बासूती
ghughuti ji se sahamat hoo.
ghughuti ji se shat pratishat sehmat hun
क्या बात है,तो अब आप शीना से सीता खान बन गये है डाक्टर साहेब..? चिट्ठाजगत और नौ दौ ग्यारह से दिल नही भरता जो रोज बुरका तलाशते रहते हो..कैसी कही..
anonymous bhai saab, maaf kariyega, lekin main wo nai hun, jo aap soch rahe hain.... main wahi hun, jo yahaan hun, sita khaan.
बहुत बहुत धन्यवाद घुघूती बासूती जी. धन्यवाद मेरे ब्लाग को इतनी शिद्दत से पढकर उसका जवाब देने के लिए.
सीता खान.
मोहतरमा सीताखान जी या आपको तस्लीमीजी कहूँ.
वही तेवर वही अंदाज़ .
आप के सवाल बुनियादी हैं आप तस्लीमाजी को --पढ़ती ही नहीं जीती भी हैं ऐसा मुझे लग रहा है.
परवीन साकिर का नाम भी इन लोगों के लिए नया ही होगा.कई ग़ज़ल लेखिकायें शिल्प के नाम पर काफिया रदीफ से वाकिफ नहीं उरूज़ तो बहुत दूर की चीज़.हाय मेरे श्याम सखा और उनकी ब्लाग पर तस्वीर राधा दीवानी शेर भी तो कहेंगी तो ऐसे
आँज कर घनश्याम हमने आँख में अब रख लिए,
अब न काजल की न सुरमे की न चाहत रात की.
घनश्याम लोट पोट हैं बहुत तगड़ी उनकी वेयटिंग है.
दीवाने भी वाह वाह कर के फिदा हो रहे है.
कितने पाकिस्तान(कमलेश्वरजी का अपन्यास) की तरह इन्होंने चोखिस्तान बनाया है नारीस्तान के नाम पर और पंसददीदा पुरूषों को दावत आप भी कुछ कहे.जिनका अदब से कोई नाता नहीं उनसे आप कुछ कहें की गुहार लगाना.
राही मासूमरज़ा मंटो धूमिल सब इनके लिये अज़नबी हैं. भाषा की डायबिटीज़,इनको जातीयता का सन्निपात अजब खेल चल रहा है.
दुष्यन्तकुमार का शेर याद आता है.
उनकी ये आरज़ू कि उन्हें हम मदद करे,
चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये.
आपकी आवाज़ कुछ अलग सी है.लेखक लेखक है उसे जातीयता के आधार पर बांटना कहाँ तक उचित है.हर पुरुष में एक नारी और हर नारी में एक पुरूष विद्यमान है दोनों के खंड ही एक दसरे की पुकारते हैं.दोनों का सामंजस्य सेतु का काम करेगा.आमीन.
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