Sunday, February 24, 2008

सब देख रही है, सब जी रही है औरत


उदास सुबह










रंग-विरंगी दोपहर


सूखी शाम





(एक औरत के जीवन के इन रंगों का कोई क्या करे?)

2 comments:

नीरज गोस्वामी said...

कमाल के चित्र...वाह.
नीरज

रवीन्द्र प्रभात said...

अच्छा लगा ,धन्यवाद।