(पसंद से साभार)
मंजुला दो भाइयों की अकेली बहिन थी। छोटे से क़स्बे में पली-बढ़ी मंजुला ने स्नातकोत्तर तक की शिक्षा प्राप्त की और प्रायवेट कंपनी में काम करने लगी। उसने भी जीवन के वही सपने देखे जो हर लड़की देखती है। पिता ने अनेक वर ढूंढ़े पर कोई लड़का पसंद नहीं आया। एक दिन पिता खीज गए और लड़की को ताने देने लगे। लड़की महसूस कर गयी और कह दिया कि अगली बार कोई लड़का ढूंढ़ा जाएगा तो वह कुछ नहीं कहेगी।पिता ने एक बड़े शहर में लड़का ढूंढा। लड़के की शिक्षा असल से ज़्यादा बताई गई, उसका पद और तन्ख्वाह भी असल से ज़्यादा बताए गए। चूँकि रिश्ता रिश्तेदार करवा रहे थे तो ज़्यादा पूंछ्ताछ नहीं की गयी। लड़्की ने तो कुछ न बोलने का प्रोमिस कर ही दिया था सो शादी हो गयी।शादी होकर मंजुला ससुराल आगयी।
एक दिन अचानक ससुर का देहावसान हो गया। घर में मंजुला और उसके पति के अलावा उसकी सास और दो देवर थे। ससुर के मरने पर सास तो उदासीन हो गयी। मंजुला को घर की सारी ज़िम्मेदारी दे दी गयीं। वह चुपचाप सबकुछ करती रही। तभी उसे पता चला कि उसका पति न तो उतना कामाता है और न ही उसकी उतनी शिक्षा है। इतना ही नहीं वह शराब भी जी भरकर पीता है, जिसकारण से घर में पैसा भी नहीं देता है। बहुत निराश हुई मंजुला, फिर भी सोचा कि चलो पति को समझाया जाए शायद कुछ ठीक हो जाए पर कहाँ? वह तो मारपीट और करने लगा। रोज झगड़े होने लगे। सास तो बहु को ही कसूरवार ठहराती। देवर कुछ बीच में ही नहीं पड़ते। इसी बीच मंजुला ने एक पुत्र को जन्म दिया। कुछ समय बाद मंजुला ने पुनः जॉब पर जाने की सोची तभी सास ने बच्चे को रखने से मना कर दिया। अब क्या था निराश-हताश और परेशान मंजुला पैसे-पैसे को तरस गयी। एक दिन पति से अत्यधिक सतायी जाने पर उसने अपने बच्चे के साथ घर छोड़ दिया। अकेले अपनी किसी सहेली की मदद से किराए पर घर ले लिया। बच्चा क्रेचे में छोड़कर नई नौकरी करने लगी। चूंकि वह अकेली रहती थी तो ससुरालवाले जलभुन गए, क्योंकि इसतरह अकेली रहकर उनकी नाक काट रही थी वह। घर-बाहर के कई लोगों को समझाने के लिए भेजा। पर मंजुला अब और न सह सकती थी सो अडिग रही।
धीरे-धीरे मंजुला अपने को सहज बनाने की कोशिश करती रही। वह इतनी व्यस्त रहती कि किसी से बात भी न कर पाती लोगों ने अनेक तुक्के लगाने शुरु कर दिए। उसे अवारा और चरित्रहीन भी कहा जाने लगा। पुरुष उससे हंस-हंसकर बात करने की कोशिश करते और घर जाकर अपनी स्त्रियों से उससे बात करने से मना करते क्योंकि वह अच्छी स्त्री नहीं थी। स्त्रियाँ बिना जाने-बूझे उसे अवारा कहतीं। वह पूरी गली में अच्छी औरत नहीं मानी जाती। आते-जाते उसे अजीब नज़रों से देखा जाता! पर वह किसी बात की परवाह किए बिना अपनी ज़िंदगी जीती रही ऐसा नहीं था कि वह कभी पिघलकर आँसू नहीं बनती थी, पर उसे अपना जीवन-यापन करना आता था।
6 comments:
Kya kahe....... Jab Ek aurat ko hi ek aura pe bharosa na ho to
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I don’t want to love you… but I do....
yathath par tiki hui kahanii . achha laga padh kar
mujhe yah kahani bahut pasand aai. aaj aurat ko isi atmvishwas ki jarurat hai taki wo apna astitwa kayam rakh sake
सच मैं बहुत ही अच्छी कहानी थी. . यह कहानी ,कहानी ना होकर समाज मैं घट रही घटनाओ की कटु सच्चाई है. समाज औरत को अकेले रहने नही. देता यदि वो अपने पुरुष मित्र के साथ रहना चाहे जैसे की लिव इन रीलेशन मैं रहते है उस पर व्यभिचारी होने की तोहमत लगा देता है.लेकिन भूखे को कोई रोटी देने के लिए आगे नही आता. लोग मज़बूरी पर हंस तो सकते है लेकिन सहायता के लिए कोई आगे नही आत.एक भाई साब ने एक लेख लिखा कर्वाचोथ बनाम लिविन उस मैं उन्होने करवा चोथ को बहुत महिमा मंडित किया लेकिन मैं यह जानना चाहता हूँ की इस समाज मैं जब कोई विवाहित औरत दहेज के लिए प्रताड़ित होती है मारी जाती है क्या तब भी करवा चोथ अपनी महिमा पर इतराती है.जब औरत दिन रात एक कर घर के बाहर और घर के अंदर काम मैं ख़टती है तब क्या करवा चोथ लिविन को देख जलती नही है. लोग दूसरे पर एक उंगली उठाने से पहलेये भूल जाते है की बाकी की चार उंगली उनकी तरफ है.
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- प्रेमलता पांडे
प्रेमलता जी की आपत्ति पर ध्यान दिया जाये. लेखक की पूर्वानुमति तो आवश्यक है.
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