इन छबियों में ये कैसी अंगड़ाई है.
लरज-लरज कर छलक रही अमराई है.
टूट-टूट कर धड़क रहे हैं दिल सबके
अपने दिल पर सोनजुही उग आई है.
पूरब से जब सुबह-सवेरे
सूरज आंखें खोले
हवा समुद्री पश्चिम से आ
डोले हौले-हौले
जैसे बासंती बुर्जों पर फिर सरसों अलसाई है.
पिहिक कमलिनी
कुहुक रागिनी छेड़ रही
चिहुक-चिहुक कर
तितली रंग उड़ेल रही
गेंदे की पंखुड़ियों पर क्यों भौंरा भरे जम्हाई है.
7 comments:
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
पिहिक कमलिनी
कुहुक रागिनी छेड़ रही
चिहुक-चिहुक कर
तितली रंग उड़ेल रही
गेंदे की पंखुड़ियों पर क्यों भौंरा भरे जम्हाई है.
bahut sunder bhaaw hain
फागुनी बसंती बयार सी मनभावन रचना है .बहुत सुंदर
वाकई बहुत ही मनभावन रचना है..
behad khubsurat,sonjuhi si.
बहुत बढिया रचना.. और इस फूल को सोनजूही कहते हैं.. ये भी जाना हमारी मैथिली में इसे गुलेंच कहा जाता है। और पकौड़े भी बनाए जाते हैं बेसन में तलके..। लेकिन वो सोनजूही सफेद होता है। इसकी खुशबू भी बेहतरीन होती है।
मनभावन रचना है..
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