Thursday, May 6, 2010

राष्ट्रगान में सदियों तक गूंजते रहेंगे टैगोर



कल सात मई को है रवींद्रनाथ टैगोर के जन्मदिवस।
नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य, शिक्षा, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अनूठी प्रतिभा का परिचय दिया तथा आलोचकों की दृष्टि में अपने मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण वह सही मायनों में विश्वकवि थे।
टैगोर दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्र गान बनाया। बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रवींद्रनाथ ने देश और विदेशी साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि को अपने अंदर समाहित कर लिया था और वह मानवता को विशेष महत्व देते थे। इसकी झलक उनकी रचनाओं में भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती है।
साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अपूर्व योगदान दिया और उनकी रचना ै गीतांजलि ै के लिए उन्हें साहित्य के नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष सुनील गंगोपाध्याय ने भाषा को बताया कि गुरुदेव सही मायनों में विश्वकवि होने की पूरी योग्यता रखते हैं। उनके काव्य के मानवतावाद ने उन्हें दुनिया भर में पहचान दिलायी। दुनिया की तमाम भाषाओं में आज भी टैगोर की रचनाओं को पसंद किया जाता है। गंगोपाध्याय ने कहा कि टैगोर की रचनाएं बांग्ला साहित्य में एक नयी बहार लेकर आयी। उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। इन रचनाओं में चोखेर बाली, घरे बाहिरे, गोरा आदि शामिल हैं। उनके उपन्यासों में मध्यम वर्गीय समाज विशेष रूप से उभर कर सामने आया है।

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