sansadji.com (सांसदजी डॉट कॉम से साभार)
रेल मंत्री ममता बनर्जी बुधवार को वर्ष 2010-11 का रेल बजट परोसने जा रही हैं। चर्चाएं ऐसी भी हैं कि लीक हो गया बजट, लीक हो गया? खैर, ऐसी सूचनाओं की जानकारी न भी रखें तो पता चलता है कि रेल बजट पर केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के हस्ताक्षर कराने में इस बार रेलमंत्री ममता बनर्जी भारी मशक्कत झेलनी पड़ी। केंद्र की मिलीजुली सरकार की प्रतिबद्धता में प्रणब दा ने न चाहते हुए भी ममता के 24 रेल प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी। जिनको वे सरकारी खजाने से एक कौड़ी भी देने को राजी नहीं थे। ममता और प्रणब के बीच मची खींचतान खुद प्रधानमंत्री की दखल से खत्म हुआ। दीदी अपने बजट में यात्रियों को कई नई सौगातें दे सकती हैं जिसमें दुरांतो ट्रेन के अलावा कई नई ट्रेनों के शुरू किए जाने की भी उम्मीद है। बजट लोकलुभावन हो सकता है। भले रेलवे बोर्ड के अधिकारी यात्री किराए में बढ़ोतरी के पक्ष में हों, यात्री किराया शायद ही बढ़े! रेल मंत्री यात्री किराया बढ़ाने के खिलाफ हैं। पिछले साल जुलाई में रेल मंत्री की अपनी दूसरी पारी के पहले बजट में ममता ने यात्री किराये और माल भाड़े में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं की थी। रेलवे के साथ दुखद यह है कि इससे पिछले साल रेल मंत्री लालू प्रसाद ने भी चुनावी साल की वजह से किरायों में बढ़ोतरी नहीं की थी। इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले 2 साल से रेलवे के किराये बढ़ोतरी से हासिल होने वाले अडिशनल रेवेन्यू में किसी तरह का इजाफा नहीं हो पाया है। पिछले 2 साल में रेलवे से माल की आवाजाही और पैसेंजर्स ट्रैफिक में काफी बढ़ोतरी हुई है, पर 9 परसेंट की ऊंची महंगाई दर की वजह से इस अतिरिक्त मुनाफे का कुछ खास असर नहीं दिख पाया है। दिलचस्प यह है कि लालू प्रसाद या ममता बनर्जी को किसी ने आम आदमी पर 'मेहरबानी' दिखाने, धड़ल्ले से नई योजनाएं शुरू करने, अपने-अपने चुनावी क्षेत्रों में नई ट्रेनों की संख्या या फ्रीक्वेंसी बढ़ाने से जुड़े कदम उठाने से किसी ने रोका भी नहीं। ऐसे हालत में जाहिर है कि इस बार जब रेल बजट पेश किया जाएगा तो रेल मंत्री को कई तरह की चुनौतियों से दो-चार होना होगा। रेलवे रोजाना 20 लाख टन माल और 1 करोड़ 80 लाख पैसेंजर्स ढोता है। रेलवे के रेवेन्यू का 70 परसेंट हिस्सा माल भाड़े और बाकी 30 परसेंट पैसेंजर्स किराये से आता है। 2009-10 के लिए पैसेंजर किराये से होने वाली आमदनी 25 हजार करोड़ रुपये रहने के आसार हैं, जो 2008-09 में 22 हजार 330 करोड़ रुपये थी। पर मौजूदा चलन को देखते हुए ममता बनर्जी शायद ही पैसेंजर्स किराये में कोई बढ़ोतरी करें। ऐसे में रेलवे का रेवेन्यू बढ़ाने के लिए रेल मंत्री के पास माले भाड़े में थोड़ी बढ़ोतरी करनी होगी। साल 2007-08 में रेलवे ने 794.21 मिलियन टन माल ढोया। उसके अगले साल यानी 2008-09 में इसमें करीब 7 परसेंट की बढ़ोतरी हुई और यह 850 मिलियन टन हो गया। कारोबारी साल 2009-10 में इसके 882 मिलियन टन का टारगेट रखा गया है। 2009-10 के लिए माल भाड़े से होने वाली आमदनी का लक्ष्य 59 हजार 59 करोड़ रुपये रखा गया है, जो 2008-09 में 54 हजार 293 करोड़ रुपये था। पिछले साल (2009-10) इकॉनमी के मंदी की गिरफ्त में होने की वजह से माल भाड़े में बढ़ोतरी नहीं की गई। पर इस बार हालात सुधरे हैं और माल भाड़े में बढ़ोतरी की जानी चाहिए। लौह अयस्क, कोयला और सीमेंट को छोड़कर शेष वस्तुओं के मालभाड़े में 5-10 फीसदी की बढ़ोतरी की जा सकती है। रेल मंत्री अपने राज्य पश्चिम बंगाल में नई ट्रेने बढ़ाने की घोषणा भी कर सकती हैं। बताते हैं कि कुछ नए सुरक्षा उपायों की घोषणा भी हो सकती है। एसी-3 टीयर डिब्बों की संख्या बढ़ाई जा सकती है, क्योंकि पिछले महीने तक यात्री संख्या 21.01 फीसदी बढ़कर 3.68 लाख तक पहुंच चुकी थी। वातानुकूलित श्रेणी वाले यात्रियों से रेलवे को कुल 3.116 करोड़ रूपए की कमाई हुई थी। बुधवार को रेल बजट में नए एनक्वायरी नंबर 138 की घोषणा भी संभावित है। हालांकि ये नंबर टोल फ्री नहीं होगा। देखिए क्या होता है कल दीदी के पिटारे में। रेलवे के लाखों कर्मचारियों के अलावा पूरे देश की टकटकी कल छुकछुक बजट पर होगी।
Tuesday, February 23, 2010
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