Friday, February 26, 2010

बजबजाता बजटः तो सुन लो भैया खरी-खरी!


(www.sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम से साभार)

कुछ मत पूछ यार, होली तो हो ली!! दीदी जैसा, दादा का बजट क्यों नहीं? लोकसभा में वित्तमंत्री द्वारा आम बजट पेश किए जाने के दौरान विपक्ष ने वॉकआउट किया तो इसमें बुरा क्या है? जिस तरह देश के अधिकांश लोग मतदान नहीं करते या कर पाते, उसी तरह ज्यादातर लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें मालूम ही नहीं कि आखिर बजट किस पखेरू का नाम है! विपक्ष भले ही राजनीतिक कारणों से सदन का वाक आऊट करे, लेकिन उस बहिष्कार में महंगाई से कुचलते-पिसते आम की कराह की भावना छिपी है, जो लच्छेदार राजनीतिक-संसदीय शब्दावलियों के धुंध से ढंकने की तब से कोशिश की जा रही है, जब से देश को आजादी मिली। वैतनिक आय पर टैक्स घटाने-बढ़ाने को लेकर हर साल आम बजट के दिनों इतनी चिल्लपों मचाई जाती है। पूरे देश का मीडिया इस मसले पर आसमान सिर पर उठा लेता है। असली सवाल ये है कि जिनके पास कोई रोजी-रोजगार ही नहीं, उनके लिए सरकार क्या सोचती है और क्या सोचते हैं वे लोग, इस बजट पर प्रतिक्रिया जताते हुए कह रहे हैं कि अब हर हफ्ते होटल-रेस्तरां घूमने से थोड़ा परहेज करेंगे, क्योंकि महंगाई बहुत बढ़ने जा रही है। दरअसल इन लोगों के दिल में भी उस आदमी के लिए कोई दर्द नहीं, इन्हें सिर्फ अपने पेट और टैक्स की पड़ी है। ये वही वर्ग है, जिसे लोन पर मकान, लोन पर गाड़ी सब कुछ चाहिए। टैक्स कम होगा तो ये वर्ग मजे से होटल-रेस्तरां जाते हुए अपने तरह तरह के लोन भी चुका सकेगा। इसी मुफ्त-भकोसू वर्ग को सबसे ज्यादा बजट की चिंता रहती है। आम आदमी तो न बजट जानता, न टैक्स, न ही उसकी कोई प्रतिक्रिया लेने जाता है। चैनल जिनकी प्रतिक्रियाएं बुद्धू परदे पर परोसते हैं, उसके किचन में झांक आइए, लाखों-करोड़ों से बनी रसोई में हजार किस्म के बर्तन मिल जाएंगे। जबकि देश की ज्यादातर आबादी के घरों में लोटा है तो गिलास नहीं, कटोरी है तो थाली नहीं। सवाल उठता है, उनके बारे में इन मध्यमवर्गीय मुस्टंडों और उनकी चिंता से दुबली हो रही सरकार का क्या सोचना है? हर साल इसी तरह बजबजाता हुआ बजट आता है, जाता है, आम आदमी बिलबिलाकर दम तोड़ता रहता है। पेट्रोल डीजल महंगा होने का मतलब है, सब कुछ महंगा। सही कहा है कि एकै साधे, सब सधै। कहा गया है एक रुपया महंगा, कोई चैनल वाला समझा रहा था कि एक नहीं, जनाब दो रुपये महंगा होगा। बुंदेलखंड के लिए जो 1200 करोड़ का ऐलान किया गया है, उस पर तितरफा (केंद्र-यूपी-एम) सरकारों में पहले से रार चल रही है। दस लाख तक कर्ज पर छूट की घोषणा की गई है। किसानों को कर्ज सस्ता मिलेगा। वाह भाई, क्या बात है! खूब कर्जा मिलेगा। ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत। कर्ज का प्रचार ऐसे किया जाता है, जैसे सरकार खैरात बांट रही हो। चलती-फिरती गृहस्थी चौपट करने का सबसे आसान तरीका है, कर्ज से लाद दो। किसानों की रही-सही भी पूरी होने वाली है, क्योंकि किसानों को 5 फीसदी पर कर्ज मिलेगा। जिस नरेगा के लिए 40 हजार करोड़ रुपये की घोषणा की गई है, वह दबंगों और भ्रष्ट अफसरों की भेंट चढ़ी हुई है। नरेगा मजदूरों के बीमा की बात कही गई है। अब और फर्जीबाड़ा होगा, क्योंकि भैया बीमा भी मिलेगा। वैसे इसके पीछे बड़ी गहरी चाल है। यही हाल ग्रामीण विकास के लिए घोषित 66 हजार करोड़ रुपये का भी होना है। शिक्षा अनुदान में 2000 करोड़ की बढ़ोतरी, स्कूली शिक्षा के लिए 31 लाख 36 हजार करोड़, स्वास्थ्य पर 22 हजार 300 करोड़ खर्च करने की घोषणाएं जरूर गुस्सा थोड़ा ठंडा करती हैं, लेकिन वित्त मंत्री खुद ही कहे जा रहे हैं कि अभी देश को मंहगाई से जूझना पड़ेगा। अभी क्या, जूझ ही रहे हैं लोग। भला कब नहीं जूझ रहे थे! क्योंकि विकास दर बढ़ाना सरकारों की पहली प्राथमिकता है। इस प्राथमिकता का वे लोग क्या करें, जिनके घर में दो जून की रोटी मयस्सर होना और मुश्किल करने का प्रणब दा ने ठोस उपाय कर दिया है। इस आम बजट पर बातें तो इतनी ढेर सारी हैं कि लिखना हो तो कई महाग्रंथ तैयार हो जाएं। फिलहाल इतना ही। सोच-सोच कर माथा भन्ना रहा है कि दीदी जैसा, दादा का बजट क्यों नहीं? उधर, दादा के बजट भाषण के दौरान खूब हगामा भी हुआ। जैसे ही उन्होंने पेट्रोल व डीजल के महंगे होने की घोषणा की, सदन हंगामे से गूंज गया। सभी विपक्षी सांसद अपने स्थान से खड़े हो गए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। इसके बाद वो सदन से वाक ऑउट करके चले गए। विपक्ष का आरोप है कि डीजल के दाम बढ़ने से महंगाई और बढ़ेगी। इस दौरान दादा बस इतना भर कहते रहे कि दाम बढ़ाया जाना जरूरी है। आम बजट पेश करने से पहले भारतीय शेयर बाजार मामूली बढ़त के साथ खुले। खबर लिखे जाने तक बंबई स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स 53.60 अंक बढ़कर 16307.8 के स्तर पर था जबकि राष्ट्रीय शेयर बाजारका निफ्टी 18 अंक की बढ़त पर था।

No comments: