Saturday, February 27, 2010

अमर के प्रहार पर मुलायम सिंह खामोश





अभी तक अमर सिंह दिल्ली-लखनऊ की सियासी सरहदों से छिटपुट प्रेस कांफ्रेंसेस अथवा अपने चर्चित ब्लॉग से प्रसारित पोस्टों पर सपा नेताओं के कटु बयानों के प्रतिरोध में जूझ रहे थे, लेकिन अब उनकी दिशा उसी मुखरता के साथ मंचों से सपा को जोर-जोर ललकारने लगी है। हैरत की बात है कि हाल के दिनों तक अमर की छोटी-छोटी कहासुनी पर सपा के ठाकुर मोहन सिंह दनादन शब्दबेधी ताने जा रहे थे, आजकल उनकी कोई तिलमिलाऊ प्रतिक्रिया नहीं रही है। सपा की ओर से इस आकस्मिक चुप्पी के क्या आशय हो सकते हैं? लगता है, सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह अथवा उनके टिप्पणीकारों को कयास हो चला है कि अमर के साथ मुंहबयानी बैठे-ठाले उनकी ही हैसियत में इजाफा करेगी। सो, वे कुछ भी कहें, चुप मार रहिए। सौ बोलता को एक चुप्पा हरा देता है। यह भी साफ है कि इस समय सपा की सरहद में जो भी सिपहसालार हैं, उनमें कोई भी अमर सिंह की तरह वाक्पटु और मुखर नजर नहीं आता। पिछले दिनों के वाक्युद्ध से तो यही साबित हुआ है। सपा अमर की प्रतिक्रिया पर भले खामोशी अख्तियार कर ले, ठाकुर साहब ’’सौ सुनार की, एक लुहार की’’ वाले अंदाज में और अकड़ते ही जा रहे हैं। भला उनसे बेहतर किसे पता होगा कि सपा की किस नस पर कितना दबाव डालने से हुंआ-हुंआ होने लगेगी। सो, उसी नुस्खे में कई और तरह की चासनियां मिलाकर अमर सिंह कोई भी निशाना कत्तई नहीं चूकना चाहते।

sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम से साभार


याद करिए कि दो-तीन दिन पहले उन्होंने उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में, उससे पहले बरेली में, फिर एक दिन पहले आजमगढ़ में भीड़ से रूबरू होना शुरू किया है। वह सपा के जितने बड़े पदाधिकारी थे, उतने ही प्रखर वक्ता भी, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। इस हकीकत को सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह अच्छी तरह जानते थे। इसीलिए वह आखिरी दिनों तक इसी भलमनसाहत में कोई ऐसी टिप्पणी करने से मीडिया के सामने बचते रहे, जो अमर सिंह को बेचैन करती। लेकिन मुलायम की ये नेकदिली उनकी पार्टी के कई बड़े सिपहसालारों को सीख देने में नाकाम रही। आखिरकार हुआ वही, जो आज पार्टी के लिए भावी खतरा बनकर गहराता जा रहा है। सपा से रणनीतिकारों से एक साथ कई चूक हुईं। पहले राज बब्बर, आजम खां आदि तो जा ही चुके थे, हाल के महीनों में कल्याण सिंह, अमर सिंह, जयाप्रदा आदि को दनादन विदा करते समय आगामी विधानसभा चुनाव के प्रति रत्तीभर समझदारी नहीं बरती गई। सपा के इस अंदरूनी तितर-बांट ने उसकी प्रतिद्वद्वी पार्टियों की राह जरूर थोड़ी आसान कर दी। इस मर्म की समझ ने अमर सिंह की सक्रियता में रफ्तार भर दी है। वह जिस तरह से छोटे प्रदेशों के गठन के मुद्दे को अपने लोकमंच का अब तक का सबसे बड़ा एजेंडा बना चुके हैं, उससे एक तीर से कई निशाने सधने जा रहे हैं। मसलन, हरित प्रदेश के लिए दशकों से संघर्षरत राष्ट्रीय लोकदल मुखिया चौधरी अजित सिंह (जो भाजपा में शामिल होकर राष्ट्रीय राजनीति में अपने को हाशिये पर पड़ा महसूस कर रहे हैं और लगभग सन्नाटे में हैं), बुंदेलखंड प्रदेश की महत्वाकांक्षा पाले राज बुंदेला, पिछड़ों की राजनीति के धुरंधर पूर्वमंत्री कल्याण सिंह अनायास उनके सुर में सुर मिलाते सुने जा रहे हैं। पिछले विधान परिषद चुनाव और विधानसभा उप चुनावों ने साबित कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी का लोकसभा चुनावों वाला जादू कुछ शिथिल पड़ा है। भाजपा अपनी बिगड़ी बनाने में लस्त-पस्त हो रही है। बसपा भूमिगत पैंतरे पर यकीन कर चल रही है, ऐसे में लोकमंच के साथ गति पकड़ रहा ताजा ध्रुवीकरण कोई बड़ा गुल खिला जाए तो अचरज नहीं। यानी अब यूपी के भावी सियासी ध्रुवों (बसपा, कांग्रेस, सपा, भाजपा) से अलहदा एक और ताकत आकार लेती जा रही है। यदि इस ताकत का इन चार ध्रुवों में से किसी भी एक के साथ समीकरण बैठ जाता है तो आगामी विधानसभा चुनाव नतीजे त्रिशंकु तमाशों का सबब बन सकते हैं। यद्यपि अभी इस पर कुछ और ज्यादा सोच-कह पाना कोरी अटकलबाजी होगी। कल्याण की साझेदारी के नाते अमर सिंह के लिए सबसे बड़ी अड़चन होगी, मुसलिम रुझान की दशा-दिशा। संभव है, समय रहते वह इसका कोई काट सोच लें, जो फिलहाल दूर-दूर तक नजर नहीं आता है। जहां तक वर्तमान में सावधानी बरतने की बात है, जितना कल्याण सिंह उन पर लट्टू हुए जा रहे हैं, अमर सिंह उनके प्रति ऐसा कोई दोस्ताना बयाना देने से भरसक बच निकल ले रहे हैं। वैसे भी कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश जैसे राज्य भले मुख्यमंत्री रह चुके हो, खुद उनकी राजनीतिक कर्मस्थली आगरा मंडल में ही उनकी ताकत काफी मद्धिम हो चुकी है। फिर और कोई उनसे किसी बड़ी उम्मीद की गलतफहमी क्योंकर पालना चाहेगा। राजनीतिक विशारद मानते हैं कि अमर सिंह को अगर दूर की राजनीति करनी है तो कल्याण सिंह की दोस्ती से उन्हें परहेज करना ही होगा। वैसे राजनीति में ऐसी सीख का कोई मतलब नहीं होता, और इसी तरह की मनमानी की कीमत चुकाते-चुकाते तमाम महारथी खेत रहे हैं। आइए फिलहाल, नजर डालते हैं अमर सिंह के ताजा परिदृश्य पर। पिछले दिनों रामपुर की सभा के अगले दिन वह पूर्वांचल के कमिश्नरी मुख्यालय आजमगढ़ जा धमके, वह भी पूरे दमखम के साथ। सिने तारिका एवं सांसदद्वय जया बच्चन, जयाप्रदा तथा भोजपुरी के स्थापित अभिनेता मनोज तिवारी ने भी उनके साथ सपा के गढ़ में जोरदार दस्तक दी। इससे पहले बरेली में क्षत्रिय महासभा के मंच से ललकार। आजमगढ़ के पूर्वाचल स्वाभिमान सम्मेलन में ठाकुर अमर सिंह कहते हैं कि सपा जिस तरह से उनके ऊपर आरोप पर आरोप लगा रही है, वह अब चुप नहीं रहने वाले। वह चेतावनी देते हैं कि अगर मुलायम सिंह के सिपहसालारों ने अब और बयानबाजी की वह सारी पोल-पट्टी खोलकर रख देंगे। और इस क्रम में वह तरकस का पहला तीर छोड़ते हैं कि सुप्रीम कोर्ट को तथ्यों समेत बता दिया जाएगा कि सपा सुप्रीमो के पास आय से अधिक कितनी सम्पत्ति है। साथ ही अमर सिंह यह भी कहने से नहीं चूकते कि सपा प्रवक्ता मोहन सिंह, राम गोपाल यादव आदि मुलायम सिंह को जनता और अदालत के कटघरे में खड़ा करने की साजिश रच रहे हैं। वह मुलायम सिंह को तिलमिलाने वाली इतनी बात जरूर कह देते हैं कि उन्होंने सपा में रहते हुए जब भी परिवारवाद का विरोध किया, मुलायम सिंह को बुरा लगा। अब मुलायम सिंह यादव ने उन्हें गाली दिलाने के लिए एक ठाकुर खोज लिया है। उस ठाकुर (मोहन सिंह) की अनाप-शनाप बयानबाजी उनको महंगी पड़ सकती है। आजमगढ़ की भीड़ भरी सभा से उत्साहित अमर सिंह मंच से एक-एक कर और कई तीर छोड़ते हैं। मसलन, समाजवाद के जनक डाक्टर राम मनोहर लोहिया, मधुलिमये, नरेन्द्र देव ने हमेशा कमजोर तबके के लोगों को सम्मान और ऊंची कुर्सी दी, मुलायम के समाजवाद में बडे पद या तो उनके परिवार को मिले या फिर किसी यादव को, मुलायम अंग्रेजी और कम्प्यूटर दोनों के विरोधी हैं, अपने बच्चों को विदेश पढ़ने भेजते हैं, आदि-आदि। उनकी हर बात के आगामी समय में कितने गहरे निहितार्थ हो सकते हैं, मुलायम सिंह ही नहीं, उनके धुर प्रतिद्वंद्वियों को भी अच्छी तरह मालूम है। आजमगढ़ की इस विशाल कही जाने वाली जनसभा से पहले अमर सिंह रामपुर की सभा में कहते हैं कि समाजवादी पार्टी में फिट टाइम बम जब फटेगा, तब पता चल जाएगा। मुलायम के आजू-बाजू यादव ही यादव हैं। अधिकतर जिलों में सपा की बागडोर यादवों के हाथ में है। सपा के तालाब का पानी रामगोपाल यादव ने सुखा दिया है। जया बच्चन भी सांसद हैं और हमारे साथ हैं लेकिन उन्हें सपा से नहीं निकाला गया। मैं पूछना चाहता हूं मुझसे पहले राजबब्बर को कौन लाया था? 14 साल मेरा और मुलायम का साथ रहा है। अगर मैं दोषी हूं तो मुलायम सिंह भी दोषी हैं, उनका निष्कासन कौन करेगा? मुलायम सिंह धृतराष्ट्र की तरह हैं। उनके भाई हमें गाली देते हैं, और वह भाई के खिलाफ कुछ करने के बजाय 14 साल के साथी को सजा देते हैं। साक्षी महाराज को पार्टी में लाने का आजम खां ने विरोध किया था लेकिन मुलायम सिंह ने उन्हें पार्टी से निकालने की धमकी दी थी। तब मैंने ही कहा था मुलायम जी आजम खां आपके पुराने साथी हैं। आजम खां को बड़ा भाई बताते हुए अमर सिंह ने कहा कि उनसे मेरी कोई रंजिश नहीं है कोई झगड़ा नहीं है। जौहर यूनिवर्सिटी तरक्की का सबब है। भले ही इसकी शुरूआत आजम भाई ने कराई लेकिन मैं इस यूनिवर्सिटी के लिए तन-मन-धन से सहयोग करने को तैयार हूं। इस मंच से सांसद एवं अभिनेत्री जया बच्चन, रामपुर की सांसद जयाप्रदा, भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी आदि भी सपा को सधे शब्दों से निशाने पर लेते हैं। इन दिनों अमर सिंह अपनी भविष्य की राजनीति को लेकर कितने एक्टिव हो चले हैं, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि संसद के बजट सत्र उन्हें सुस्ताने की भी फुर्सत नहीं रही।

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