Friday, March 5, 2010

संसद से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहां?



सोनिया गांधी ने दी व्हिप की चेतावनी। आइंदा सदन सेगायब हुए तो खबरदार!! संसद की कार्यवाही से गैरहाजिर रहने वाले कांग्रेस सांसदों को चेतावनी देते हुए पार्टी सुप्रीमो सोनिया गांधी ने गुरुवार को खबरदार कर दिया कि अगर वे अपनी विधायी जिम्मेदारियों को निभाने के प्रति गंभीर नहीं होंगे तो पार्टी नेतृत्व को व्हिप जारी करना पड़ेगा। यहां कांग्रेस संसदीय दल की बैठक को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने संसद में पार्टी सदस्यों की कम उपस्थिति पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि अपने लगभग सभी संबोधनों में मैंने एक और मामले का बार-बार जिक्र किया है और वह है उपस्थिति का मामला। नियमित उपस्थिति हमारे मूल दायित्व और कर्तव्य का हिस्सा है। सदन में बैठना और संसदीय कार्यवाही को सुनना भी अपने-आप में एक शिक्षा है। समय गया है कि कम उपस्थिति के मसले को सदस्य गंभीरता से लें। संसद के पिछले अधिवेशन में सदन से सांसदों की गैरहाजिरी के कारण प्रश्न काल में बाधा आई थी। गैरहाजिर सांसदों में कांग्रेस के सदस्य भी शामिल थे। सोनिया गांधी संसदीय दल की पिछली कई बैठकों में इस मामले को उठा चुकी हैं। पूर्व में कांग्रेस अध्यक्ष ने सदन से गैरहाजिर रहने वाले 34 पार्टी सांसदों की सूची तलब कर ली थी। सांसदों के गायब रहने के चलते प्रश्नकाल स्थगित करना पड़ा था। संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत है। संसद के दोनों सदनों में सरकार से प्रश्न पूछने की एक निर्धारित प्रक्रिया है। प्रायः तीन सप्ताह पहले सांसद अपना प्रश्न संसद की टेबल ऑफिस में देते हैं। उसके बाद लॉटरी निकलती है। जिस सांसद के प्रश्न का मंत्री मौखिक जवाब देते हैं उसेतारांकित प्रश्नकहते हैं। लोकसभा और राज्यसभा में अवकाशप्राप्त कर्मचारी घूमते रहते हैं और नए सांसदों को बताते रहते हैं कि तारांकित और अतारांकित प्रश्न कैसे पूछे जाएँ। उनकी सलाह पर ये सांसद प्रश्न पूछ लेते हैं। सांसद को विषय का तो सामान्यतः पता होता नहीं है। एक प्रश्न का जवाब तैयार करने में लाखों रुपया सरकार का खर्च होता है। यदि सांसद सदन में आए ही नहीं तो यह गरीब जनता के पैसों से खिलवाड़ है। जनहित से जुड़े अन्य तमाम महत्वपूर्ण विषय पर भी जब सदन में चर्चा होती है तो अधिकतर सांसद गायब रहते हैं। कभी-कभी अपने दूसरे कामों में व्यस्तता के कारण वे समय पर संसद में पहुँच नहीं पाते हैं। संसद में कोई भी सांसद दिनभर में एक बार आकर केवल हाजिरी की बही में दस्तखत करके वापस चले जाएँ और सदन के अंदर नहीं भी जाएँ तो भी उन्हें उस दिन का भत्ता मिल जाता है जो काफी तगड़ा होता है। अतः प्रश्नकाल में समय देने में उनकी कोई रुचि नहीं होती है। कुछ तो सेंट्रल हॉल में बैठकर चाय-काफी पीते रहते हैं और बार-बार बुलाए जाने की घंटी को सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। कई बार तो कोरम के अभाव में बहस संसद में नहीं हो पाती है। संसद में उठने वाले सवाल देश के भविष्य से जुड़े होते हैं। इसके बावजूद सांसदों का गायब रहना उनकी बढ़ती लापरवाही को ही दर्शाता है। संसद की कार्यवाही चलाने के लिए देश की जनता से टैक्स के रूप में वसूला गया पैसा खर्च होता है। सदन से गायब रहने की आदत कोई नई बात नहीं। पिछले कुछ सालों से यह देखा जा रहा है कि कई विधेयक बगैर किसी बहस के ही पारित कर दिए जा रहे हैं। इसकी मूल वजह यह है कि सदन की कार्यवाही में सांसदों की दिलचस्पी घटती जा रही है।

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