Sunday, February 28, 2010

सियासत के सुपर स्टॉर ठाकुर साहब की 'अमर' वाणी

(सांसदजी डॉट कॉम www.sansadji.com से साभार)

इन दिनों उत्तर प्रदेश की राजनीति पर धूमकेतु की तरह मंडरा रहे अमर सिंह की करनी (सधी टिप्पणियों, फंडिंग, अन्य दलों के साथ तालमेल ) ने जहां समाजवादी पार्टी को लगातार सालोंसाल मीडिया की सुर्खियों में बनाए रखा, वही पार्टी से अलग होने के बाद उनसे ज्यादा उनकी कलम हजार तरह के अर्थ उगलती रही है। सिलसिला थमा नहीं है। देश की हिंदी पट्टी में अमर सिंह का लिखा-कहा चाहे जितना बासी-तिवासी हो जाए, उसे पढ़ने का अलग ही अनुभव होता है, साथ ही ऐसे सवालात और कयास लाजिमी हो जाते हैं कि अगर वह उद्यमी और राजनेता नहीं होते, लेखक या पत्रकार होते तो उनकी हैसियत क्या ज्यादा चिरस्थायी होती? ये कतरने कुछ ऐसे ही इशारे करती हैं। आइए, उन्हें पढ़ते-खंगालते हैं और जानते हैं कि उनके कहे के आग-पानी के मायने क्या हैं! इसमें अपना कहा कुछ नहीं, सब शब्दशः उन्हीं का है...............


जनवरी-1.
इस वक़्त मै वाराणसी से वापस दिल्ली के रास्ते हवाई जहाज़ में हूँ, इस्तीफे के बाद मेरी जन्म और कर्म भूमि उत्तर प्रदेश की यह पहली यात्रा थी. इस वक़्त मेरे साथ कोई फिल्म स्टार नहीं बल्कि मेरे सहयोगियों में एक भूमिहार भाई, एक निषाद भाई, एक कुर्मी भाई और मेरे अनुज अरविन्द सिंह है. हवाई अड्डे पर निर्दलीय विधायक श्री अजय राय जी आये थे. मैने पूंछा भाई मेरी पार्टी से क्यूँ नाराज हो? वह कहने लगे, भाई साहब आपकी पार्टी के नेताओ ने लोकसभा चुनावो में खुल कर मुख्तार अंसारी का साथ दिया, उनसे पैसे लिए और खुलेआम कहा कि अजय राय तो अमर सिंह का आदमी है, मुलायम सिंह जी का आदमी थोड़े ही है. मै स्तब्ध रह गया, पिछले कुछ दिनों से मुझमे और नेताजी में बटवारा चल रहा है. परन्तु पिछले लोकसभा चुनावो के दौरान भी यह बटवारा चल रहा था, यह जान कर आश्चर्य हुआ. आज मुझे दधिची की बहुत याद आयी. हमारी पौराणिक कथाओ में हमारे अपने जीवन का दर्शन बखूबी दीख जाता है. स्वर्ग पर जब असुरों का हमला हुआ तो ईश्वरीय आदेश पर स्वर्ग के राजा इन्द्र ने महर्षि दधिची के पास जा कर उनके प्राण मांगे ताकि उनके शरीर की हड्डी के वज्र से असुरों का विनाश हो सके. उत्तर प्रदेश के राज पर जब से मायाजाल फैला है मेरी पार्टी ने भी मुझे दधिची बनाकर तपती दुपहरी में मुझे घुमा-घुमा कर गुर्दाविहीन कर डाला. लेकिन यह समाजवादी दधिची मारा नहीं, बच गया, अपने लिए, अपने परिवार, मित्रों और चाहने वालो के लिए. अब मै समर्पित हूँ क्षत्रीय बन्धुवों और सदियों से तिरस्कृत निषाद, कश्यप, राजभर, नोनिया, विश्वकर्मा, पाल, कुम्हार और तेली इत्यादि जैसे अति पिछड़े समाज के लोगो के बीच वैसी ही एकता कराऊं जैसी कि क्षत्रिय कुलभूषण श्री राम और अति अतिपिछड़ी शबरी, अहिल्या और उस केवट के बीच थी जिसने भगवान को नदी पार्ट कराई थी. आज क्षत्रिय चेतना रथ को हरी झंडी दिखाते हुए कई क्षत्रिय भाइयों की भीड़ में इन अतिपिछडे भाइयो को देख कर बहुत ही सुखद अनुभूति हुई. कहते है कि जब भगवान् बुद्ध के घर पुत्र का जन्म हुआ तो उन्होंने कहा कि एक बंधन कि उत्पति हुई है. जब मुझे मेरे नेता ने इतिहास बता कर पीछे छूटा एक ऐसा साथी बताया, जिसे मुड कर वह वह कभी नहीं देखेंगे तो मुझे लगा कि मुझे मेरी सम्पूर्ण जिम्मेदारियो से मुक्ति मिल गई. गृह जनपद आजमगढ़ एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश की कई पार्टियों के कार्यकर्ता और यादव भाई मुझे गलियां दे रहे है. आदरणीय मुलायम सिंह जी ने जो स्नेह अब तक मुझे दिया है उसे वह जल्दी-जल्दी वापस छीनने में लगे हुए है, आप सभी को धन्यवाद.
जनवरी-2.
आज दोपहर में एकांत में बैठा था, खबर आयी जनेश्वर जी नहीं रहे. मेरे साथ सांसद श्री आर. के. पटेल जी, श्रीमती जया प्रदा जी, पूर्व सांसद श्री अखिलेश सिंह जी और विधायक श्री मदन चौहान जी भी बैठे हुए थे. खबर सुन कर मेरा मन अकुलाहट से छटपटा गया और मुझे उनके साथ की गयी अंतिम मुलाक़ात याद आ गयी. जब उन्होंने कहा था, समाजवादी बनो और गरीब/अतिपिछड़ों के पास जाओ. मैने यह बात आर.के पटेल जी को बताई तो वह कहने लगे, दोनों गुर्दों के बिना, उल्टी करते हुए तपती दोपहर में मेरे चुनाव प्रचार में आप आये थे, हर तरह से मेरी मदद की. मै पिछड़ा हूँ, गरीब हूँ पर आपकी मदद से सांसद बन गया. वह बोले इस समय पार्टी के चुने हुए सांसदों को आपके साथ दिखने में डर होगा परन्तु मुझे कोई डर नहीं है. मुझे तत्काल भाई अरविन्द सिंह गोप जी की याद आ गयी जो पिछले एक दशक से मेरे साथ साये की तरह रहते थे पर आजकल न जाने कहाँ गायब हो गए है? मुझे लगता है कि यदि गरीब और पिछड़े लोगों की मदद करो तो वह कभी नहीं भूलते है. जनेश्वर जी की यह सलाह कितनी सही और सच्ची थी, यह मुझे आर.के. पटेल जी की उपस्थिति से पता चला.
खबर मिलने के बाद हम लोगो ने तुरंत इलाहाबाद जाने का फैसला लिया. कुछ लोगो ने बताया की भाई आज़म खान साहब का बयान आ रहा है, मैने कहा कि बीमारी में और राज्यसभा में निर्वाचन के दौरान मेरे द्वारा की गयी मदद और सेवा का मेरी ब्लॉग में मैने मात्र जिक्र ही तो किया था. फिर “बंद मुट्ठी खुली जुबान” तो जनेश्वर जी जैसे समाजवादी पुरोद्धा का पुराना नारा है और भाई आज़म खान के बारे जनेश्वर जी की क्या सोच थी, मै सार्वजनिक नहीं करना चाहता हूँ क्यूंकि जनेश्वर जी अब नहीं रहे लेकिन नेता जी को यह भलीभाती पता है. Zee TV-U.P में एक सस्ती राजनीति से प्रेरित खबर आयी है, “यह वही जनेश्वर है जिनके एक फोन पर मुलायम सिंह ने अमर सिंह को पार्टी से निकाल दिया”. बिलकुल नहीं यह वह जनेश्वर है जो जन आन्दोलन में जेल में पड़े रहे और अपनी पत्नी की मृत्यु पर घर भी नहीं जा पाए. यह वो जनेश्वर है जो तत्कालीन प्रधानमंत्री पं नेहरू की बहन श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित से चुनाव लड़ रहे थे परन्तु किसी आन्दोलन के मसले में जेल चले गए थे. श्रीमती पंडित ने कहा, जब तक जनेश्वर छोड़े नहीं जायेंगे मै चुनाव नहीं लडूंगी. श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी और श्री चंद्रशेखर जी जैसे राजनैतिक पुरोद्धाओ के खिलाफ भी वह चुनाव लड़े थे और वी पी सिंह जी को तो उन्होंने हराया भी था और उनकी कैबिनेट में मंत्री भी रह कर साथ साथ काम भी किया था. जब वी.पी. सिंह जी की सरकार को गिरा कर कांग्रेस की मदद से चंद्रशेखर जी की सरकार बनाने की कवायत चल रही थी तो जनेश्वर जी इसके सख्त खिलाफ थे. परन्तु पार्टी और नेतृत्व के प्रति समर्पण का यह हाल था कि मुलायम सिंह जी के आदेश को सर-माथे पर लगाया. मोरार जी भाई की सरकार को गिरा कर जब चरण सिंह जी की सरकार बनाने की कवायत शुरू हुई तो उस समय जनेश्वर जी बीमारी की हालत में AIIMS के ICU में भर्ती थे. उनसे पूंछे बिना लोकबन्धु राजनरायण जी ने मंत्री-परिषद् से जनेश्वर जी के इस्तीफे की घोषणा कर दी. चंद्रशेखर जी जनेश्वर जी के पास गए और उनसे पूंछा कि क्या उनके त्यागपत्र की घोषणा उनकी सहमति से की गयी है? जनेश्वर जी ने कहा, बिलकुल नहीं मै तो यहाँ बीमार पड़ा हूँ, चंद्रशेखर जी ने कहा तब आप इसका खंडन कर दीजिये. जनेश्वर जी का उत्तर था, त्यागपत्र का खंडन तो मै कर दूँ पर अपने नेता राजनरायण जी के विशवास का खंडन कैसे कर दूँ. ऐसे बड़े लोग राजनीति में न अब है और न ही होंगे.
राज्यसभा में जनेश्वर जी मेरे नेता रहे, बीमारी के कारण सदन में बिल्कुल से नहीं आ पाते थे परन्तु महत्वपूर्ण मुद्दों पर बोलने से बिल्कुल नहीं चूकते थे. बहुत ही सहजता पूर्वक वह अपने विरोधियों को अपनी मारक क्षमता दिखलाते थे. वह शब्दों के प्रयोग में व्यंजना में माहिर थे. वह जब भी बोलते थे, मै उनके भाषण का श्रवण करने को उपस्थित रहता था. पार्टी के संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में मेरी अंतिम बैठक में अंगरेजी और कम्पूटर के मुद्दे पर मेरी उनसे बहस हो गयी थी, मैने इसका बुरा भी माना. पर जब मै गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए सिंगापूर जा रहा था तो यकायक उनका फोन आया और कहने लगे, प्यारे गुस्सा क्यूँ हो गए, मेरी बहस का बुरा मत बनाओ. वह बोले, तुम बिल्कुल मत घबराना, इच्छा शक्ति रखना , मै कह रहा हूँ, जीवित लौट कर आओगे. अंतिम मुलाक़ात में उन्होंने दो बाते कही थी, समाजवादी बनो और सेहत का ख्याल रखो, इतनी गंभीर बीमारी के बाद न तो कोई इतना भागता है और न ही इतने तनाव में रहता है. मै उनकी दोनों सलाहों को आत्मसात कर चुका हूँ, सेहत को प्राथमिकता देते हुए दल के सभी पदों से इस्तीफा दे चुका हूँ और समाजवादी बनने के अभियान में श्री रघु ठाकुर, श्री मधुकर दीघे, श्री शत रूद्र जी से संपर्क साध चूका हूँ और श्री रवि रे जी और जार्ज जी से जल्दी ही मिलूंगा. रूद्र जी के अलावा यह सभी अपने जीवन की अंतिम संध्या में है. मेरे पिता की मृत्यु पर दिल्ली में हुई शोकसभा में सलाइन की बोतल लिए हुए जार्ज साहब का आना मुझे अभी तक नही भूला है. इसीलिये छोटे-मोटे समाजवादी साथियो की तुल्क टिप्पड़ियां मुझे आहत तो करती है पर तोड़ती नहीं है.
अब मै न तो दल का नेता हूँ और न ही सहयोगी, बकौल भाई रामगोपाल जी की समाजवादी पार्टी के लाखों-करोड़ों अदना कार्यकर्ताओं में एक हूँ. मुझे इस बात का संतोष है कि यह अदना कार्यकर्ता, सभी बड़े नेताओ से पहले अपने नेता को अंतिम श्रद्धांजली देने पहुंचा पाया. मेरे साथ सांसद जया जी, आर.के. पटेल पूर्व सांसद अखिलेश जी और विधायक मदन चौहान जी भी बहुत संतुष्ट दिख रहे है. बहुत कम लोगों को पता है कि पिछले लोकसभा चुनावो में अंतिम समय तक जनेश्वर जी ने अमरमणि त्रिपाठी के परिवार की तुलना में कुंवर अखिलेश सिंह जी को महाराजगंज चुनाव लडवाना चाहते थे. यह बात अलग है कि उनकी एक न चली थी.
२७ जनवरी को मेरा जन्म दिन है, जनेश्वर जी के निधन की वजह से मै इस बार अपना जन्म दिन नहीं मनाऊंगा. मेरे सम्मान में मेरे जो समर्थक इस अवसर पर समारोहों का आयोजन करते है उनसे मेरा अनुरोध है कि कृपया मेरी भावनाओ का सम्मान करते हुए इस बार कोई आयोजन न करे. समाजवाद के इस पुरोद्धा, जिन्हें लोग छोटे लोहिया के नाम से जानते थे, उनकी स्मृति को मेरा सत-सत नमन और प्रणाम.
जनवरी-3.
मीडिया में अक्सर मेरे और शाहरुख खान के संबंधो को लेकर उत्सुकता बनी रहती है. शाहरुख़ ने “डान-2″ और “के.बी.सी-२” दोनों में काम किया और इस नाते स्वाभाविक तौर पर उनकी और मेरे बड़े भाई अमिताभ बच्चन की तुलना मीडिया करती रहती है. मजे की बात है, जिस समय अमित जी और शाहरुख “भूतनाथ” में एक साथ काम कर रहे थे, मीडिया ने मुझे अमित जी का सेनानी बना कर शाहरुख से लड़वा दिया. “जी टी.वी. के दुबई के एक कार्यक्रम में सीटों के आबंटन के विवाद पर शोभा डे से महेश भट्ट तक ने अपनी अवधारणाए इस घटनाक्रम को आधारित कर बड़े-बड़े लेख लिख डाले. अंगरेजी के एक बड़े अखबार की वह लीड खबर बनी जो मेरे और शाहरुख के बीच कभी थी ही नहीं. हाँ यह सच है कि फिल्मफेयर के एक कार्यक्रम में जहाँ जयाजी को पुरष्कृत किया गया, वहां शाहरुख ने सार्वजनिक रूप से मुझे देखते हुए टिपण्णी की कि मेरी आँखों में उन्हें दरिन्दगी दिखती है. मुंबई के मेरे कुछ अतिउत्साही प्रशंसकों ने शाहरुख के घर पर भी धावा बोल दिया. यहाँ बात बिगड़ी, शाहरुख के बच्चो को बुरा लगा और खान भी कुछ कह बैठे. मेरी बेटियों दृष्टी और दिशा ने भी भोलेपन से पूंछा, पाप्सू शाहरुख अंकल तो लक्ष्मी मित्तल अंकल की बोट पर गोवा में हमसे मिलाने आये थे तो कब से वह आपके एंटी हो गए? उधर मेरी बहूरानी एश्वारिया से कारण जौहर ने कहा कि घर पर हुए अमर सिंह जी के समर्थकों के प्रदर्शन से शाहरुख और उसके बच्चे बहुत आहात है. हमारी बहू ने जवाब में कहा कि बच्चे सबके एक जैसे है. अमर सिंह जी की बेटियां दृष्टि और दिशा भी शाहरुख की टिप्पणी से आहत है.
शाहरुख़ के दिल्ली के एक पुराने दोस्त संजय पासी मेरी पत्नी और मेरे बच्चो के काफी मुरीद है. गाहे-बगाहे उन्हें होटलों में शाहरुख़ और कुछ नामी-गिरामी हस्तियों के साथ भी मैने देखा है. पासी जी ने एक दिन फोन पर मेरी शाहरुख से बात करवा दी. बात-चीत का सन्दर्भ शाहरुख/सलमान विवाद का सार था. कुछ ही दिनों पूर्व निर्माता निर्देशक सुभाष घई ने मेरी बात सलमान से करवाई थी. मै कहाँ पड़ता इस “स्टार वार” के चक्कर में, बात आयी-गयी हो गयी. सिंगापुर में किडनी प्रत्यारोपण सर्जरी की दौरान मैने खबर देखी कि पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब की हिन्दुस्तान की सरजमी में तलाशी आयी गयी बात हो गयी जबकि अमेरिका में शाहरुख़ की तलाशी पर गृह मंत्री, विदेशमंत्री और सूचना प्रसारण मंत्री के तीखे बयान आये. मैने सिर्फ इतना कहा कि हल्ला करना है तो कलाम साहब के लिए करो, वह शाहरुख से ओहदे में काफी बड़े है. प्रेस की बल्ले-बल्ले हो गयी. सिंगापुर में बीमारी के दौरान अमित जी ४ महीनो तक लगातार मेरे साथ रहे. मीडिया ने उछाला, बोला बच्चन साहब का तोता. शाहरुख और हम फिर कहीं मिले, मीडिया के चक्कर में न आने संकल्प लिया और ख़ुलूस के साथ मिल कर आगे बढ़ गए. शाहरुख ने कहा कि अगली बार दिल्ली आया तो घर आउंगा.
सुबह, दोपहर और शाम ईजिप्ट से भाई संजय दत्त मेरे स्वास्थ की निगारानी में है. कल अनिल कपूर मिले थे, संजू की तारीफों के पुल बाँध रहे थे, सुन कर अच्छा लगा. एक मलयालम फिल्म में संगीतकार की भूमिका के लिए हाँ कर दी है. निर्देशक ने कहा कि एक अदद खूबसूरत बीवी के किरदार की भी आवश्यकता है. तत्काल डिम्पल कपाडिया जी से बात की और हंसते हुए मैने उनसे कहा कि किशोरावस्था में “बाबी” देख-देख कर आपकी कल्पना करता रहता था. कोई बात नहीं ५४ साल आयु में ही सही, सही जिन्दागे में न सही, कम से कम पर्दे पर मेरी शरीके हयात बन कर मेरी हसरत पूरी करें. डिम्पल जी हंस पडी, कहने लगी ओके सर, योर विश इज ग्रांटेड. मेरे रकीब मुझे न जाने क्या-क्या कहें कि नेता है, अभिनेता है, उद्यमी है, लड़ाका है, यह है कौन? उनको सिर्फ यह कहना है.
जनवरी-4.
मेरे कल कल के गाजीपुर दौरे में नए अन्जान मित्रों की भारी भीड़, पुराने जाने-माने चेहरों की अनुपस्थिति, साउंड बाईट, साथ में जया बच्चन जी और भोजपुरी गायक मनोज तिवारी जी थे. आजकल काफी तनाव में रहता हूँ. किडनी प्रत्यारोपण के बाद निर्धारित ब्लड टेस्ट की प्रतिक्षा आशंकित तनाव दे रही है कि कहीं फिर से पुरानी हालत में न जा पहुंचू. एकाएक उन पुराने साथियों की याद आयी जो साथ जीने-मरने की कसम खाते थे, अब गायब है. फिर भी भाग्यशाली हूँ कि पार्टी के कई सांसद, विधायक और ढेर सारे कार्यकर्ता मेरे साथ है. गाजीपुर की सभा में भारी भीड़ आई, पत्रकारों ने पूछा कि क्या मैने मायावती की तारीफ़ की है, मैने जवाब दिया बिल्कुल नहीं. साथी भाई अखिलेश जो राजनीति में मेरे वरिष्ठ है, ने बतियाते हुए कहा कि यह पुरानी समाजवादी संस्कृति है कि साथ रहो तो अच्छे और ज़रा हटे तो गेस्ट हाउस के बंदी जैसे मायावती जी या “निपट बेशर्म” जैसे कि मैं अमर सिंह. मुह से सहज निकला कि पुरुष होकर राजनैतिक निष्ठुरता मुझे इतना पीड़ित करती है तो महिला मायावती जी को गेस्ट हाउस काण्ड कितना कष्टदायी रहा होगा.
राजनीति में न सह पाना कितना कठिन है. जया बच्चन जी ने सलाह दी कि चुप रह कर सह-सह कर आप शालीनता के साथ चलते रहिये. मेरे दिल ने पूछा और याद किया कि मेरे दोस्तों कहाँ हो तुम, तब-तक मुझे बेशर्म कहलाने वाले मेरे नेता का टीवी सन्देश मेरे स्वास्थ की चिंता पर आ गया. बड़ी कृपा, बड़ी मेहरबानी. लेकिन अब मै मन की सुनूंगा, सच की बात कहूंगा कीमत चाहे जितनी चुकानी पड़े. चाहे महिला आरक्षण का समर्थन हो, या फिर पूर्वांचल विकास यात्रा की घोषणा या फिर हरित प्रदेश और बुंदेलखंड का निर्माण, निष्पक्षता और ईमानदारी से जो करूँगा, कहूंगा सच ही होगा. अच्छा होगा यदि प्रमुख विरोधी दल अगला मुख्यमंत्री पढ़ा-लिखा मुसलमान या अति-पिछड़ा वर्ग का बनाने का ऐलान कर दें. संगठन में प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व ढकोसला है. यादव भाइयों के मुकाबले कितने कुशवाहा, शाक्य, निषाद और चौहान भाइयो को २०१२ के विधान सभा चुनावों में टिकट मिलता है, यह देखना है. मै जातिवादी, परिवारवादी और निरंकुश राजनैतिक व्यक्ति नहीं पर उत्तर प्रदेश की अब तक की सरकारों ने समाज के कुछ वर्गों का ही पोषण और बाकियों का शोषण किया है. अतः समाज के दूसरे छूटे तबकों की बात करना और उठाना मजबूरी है. यह बेचारे बिखरे एवं असंगठित बिना जुबान के दबे कुचले लोग है. कौन सा दल मेरा होगा, मै कहाँ होऊंगा, पता नहीं पर इतना तय है कि मुझे पद या प्रतिष्ठा मिले या न मिले पर मुझे इन तबकों की जुबान बनने से कोई नहीं रोक सकता, चाहे वह मेरा अपना दल हो या मेरे अपने नेता या फिर मेरे अपने स्वजातीय प्रवक्ता ही क्यूँ न हों. अगर मुझसे कोई गलती हुई हो तो इतना ही कहना है,
“वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा, चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों.”
जनवरी-5.
कल २७ जनुअरी को मेरा ५४वां जन्म दिन था. मेरा यह जन्म दिन और जन्मदिनों से बिल्कुल अलग था. आम क्रोधित कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ और स्वर्गीय जनेश्वर जी के म्रत्युशोक के कारण जन्मदिन न मनाने की औपचारिक घोषणा के बावजूद मीडिया और समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के हुजूम ने मेरे मन को उदास नहीं होने दिया. मुलायम सिंह जी ने बधाई दी, अच्छा लगा. दूसरा तोहफा पार्टी के प्रवक्ता की मांग का इस रूप में आना कि पार्टी छोडो. अरे भाई, यह सत्य है कि समाजवादी पार्टी का इतिहास हूँ, मै अब आपकी पार्टी का वर्तमान और भविष्य भी नहीं बनाना चाहता. बेशर्म मै हूँ या आप जो भूल गए कि लोकसभा चुनावो तक हर प्रचार की तस्वीर में मै श्री मुलायम सिंह जी का बगलगीर रहा. राज्यसभा सदस्यता मेरी कमाई है आपकी भीख में दी हुयी सौगात नहीं. बल्लो बाई का राज है क्या? फिर भी ज्यादा खुजली है तो बदायूं या कन्नौज खाली करवा दें, राज्य सभा छोड़ दूंगा. जिससे मन हो मुझे लडवा दे, रामपुर की तरह यह सीट भी जीत कर दिखा दूंगा.
मेरी चुप शालीनता को मेरी कमजोरी न माने. छेड़ोगे तो छोडूंगा नहीं. “सितम करोगे सितम करेंगे, करम करोगे करम करेंगे, जो तुम करोगे वो हम करेंगे”. अभी-अभी रघु ठाकुर जी से लम्बी वार्ता हुई. हमारे राष्ट्रीय प्रवक्ता की तरह श्री रघुठाकुर जी मिलावटी और दलबदलू नहीं बल्कि खांटी समाजवादी है. उन्होंने मुझे मिलावटी, निरंकुश, परिवारवादी और जातिवादी समाजवाद की पोल खोलने का पूर्ण आश्वासन देते हुए एक गंभीर बात बतायी. उन्होंने कहा कि नवनिर्वाचित राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री ब्रजभूषण ने उनसे यह कहा था कि मेरी बीमारी में श्री मुलायम सिंह मुझे देखने नहीं अपितु अपनी अवैध अकूत अर्जित संपत्ति का हिसाब किताब करने सिंगापुर पहुंचे और वहीं मेरा और उनका विवाद हो गया.यह एक निष्चल, सीधे, ग्रामीण परिवेश के जमीनी नेता का चरित्र हनन है, इसका लेखा-जोखा पार्टी को ब्रजभूषण जी से करना चाहिए. मेरा मन और ईमान दोनों सच्चे है और मुलायम सिंह जी से मेरा कोई देना पावना नहीं है. सामने सिसियाते, मिमियाते है और पीछे जहर उगलते है. “क्या मिलिए ऐसे लोगो से जिनकी फितरत छुपी रहे, नकली चेहरा सामने आये असली चेहरा छुपा रहे”.
आज के लिए इतना काफी है. हद में रह कर राजनीति तहजीब तमीज के सलीके से बात हो तो बेहतर है. वरना मै बोलूँगा तो आप सब कहेंगे कि भाई बहुत बोलता है. पिछले दो दिनों में अपने करीबी मित्रो और परिवार के साथ बिताए क्षणों ने इन कटु प्रहारों पर मलहम का काम किया है.
जनवरी-6.
बनारस और गोरखपुर पिछले दो दिनों में बड़ा ही अनूठा रहा . बनारस में अति पिछड़ों का सम्मलेन, कुशवाहा भाइयों के साथ रात्रि भोज और प्रातः बाबा विश्वनाथ की विधिवत पूजा के बाद सड़क के रास्ते बनारस-गोरखपुर यात्रा अदभुत रही. कल तक मुझको छूने की होड़ में धक्का-मुक्की करने वाले समाजवादी पार्टी के छोटे-बड़े नेताओं की भीड़ गुम थी. नवजवानों की नयी टोलियाँ, बूढों की तरसती आंखे और कौतुहल से मेरी ओर देखती माएं और बहनों के स्नेहसिक्त परिवार के प्रेम ने दलीय समर्थकों की नदारत टोली की कमी को पूरा कर डाला और मेरा त्यागपत्र और उसकी स्वीकृति कितनी सामयिक है, इस तथ्य का बोध भी मुझे भली-भांति हो गया.
२५ जून १९७५ को चंद्रशेखर जी ने लोकनायक जयप्रकाश के लिए दिल्ली में अपने साऊथ एवेन्यू स्थित घर पर चाय का आयोजन किया, जिसमे काफी सांसद और मंत्री आये थे. एकाध दिन में इसी चाय पार्टी से उद्देलित हो कर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी और चंद्रशेखर जी की गेस्ट लिस्ट के तमाम साथियों में मात्र रामधन, कृष्णकांत और मोहन धारिया रह गए. कुछ जगजीवन राम जैसे लोग चुप रह कर फटने की प्रतीक्षा करते रहे. आज मेरे साथ खुल कर सगड़ी के विधायक सर्वेश आये. कई गुपचुप मिले कहने लगे हम आधुनिक युग के जगजीवन बाबू है, नाम न खोलिए, सही वक्त पर फटेंगे. मुझे लगता है कि प्रदेश की जनता अधीर है. परिवारवाद, जातिवाद और तानाशाही से बेजार है, चाहे वह किसी नेता की हो या फिर किसी दल की. बनारस की भीड़ और गोरखपुर में कड़कडाती सर्दी में विभिन्न दलों और मतों का समन्वय स्वान्तः सुखाय मुझ जैसे कनिष्ट व्यक्ति को तन्मयता एवं एकाग्रता के साथ श्रवण कर रहा है, यह मेरी उपलब्धि नहीं, बल्कि स्थापित दलों एवं उनके नेताओं से जनता की भारी निराशा का परिणाम है. सत्ता और कुर्सी के निराले खेल में उपयोगी और प्रासंगिक व्यक्ति महत्वपूर्ण और जो नहीं वह भूतपूर्व. मुझसे मेरे पिता कहते थे कि “जरदार मर्द नाहर चाहे घर रहे चाहे बाहर, बेजार मर्द बिल्ली चाहे घर रहे चाहे दिल्ली”.
आजकल माननीय कल्याण सिंह जी को मुझसे चस्पा करने की बड़ी कोशिश चल रही है. अरे भाई, दुल्हे से ही पूंछ लो कि समाजवादी पार्टी में उसे कौन लाया था. मै जब इलाज के लिए सिंगापुर में था तो आगरा अधिवेशन में आमंत्रित कर किसने कल्याण सिंह जी को लाल टोपी पहना कर उनके नाम का खुद जयजयकारा किया. मेरे दल के पश्चिम के तीन विधायक जान कर अनजान है, कहते है, कल्याण फैक्टर के जिम्मेदार अमर सिंह है. भाई, साजिश न करो, नेता से हुकुम करा दो यह इल्जाम भी सरे तस्लीम ख़म है. वैसे आजकल मेरा हाल कुछ यूँ है कि-
“जिल्लेइलाही मेरे खिलाफ,
मुंसिफ मेरे खिलाफ,
गवाह मेरे खिलाफ”
बाहर धुंध है पर मेरे जीवन की धुंध छट गयी है, मेरा इस्तीफ़ा जो मंजूर हो गया है.
जनवरी-7.
भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है जिसमे सभी तरह की राजनैतिक विचारधाराओ को फलने-फूलने के समान अवसर मिलते है. हमारे देश जैसा इन्द्रधनुसीय राजनैतिक पटल शायद ही दुनिया के किसी और देश का होगा. एक ओर केंद्र में सत्ताधारी दल कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजपा लगभग एक दर्ज़न राज्यों में सत्ता में काबिज है दूसरी तरफ वाम पंथी दल 3 राज्यों और बाकी राज्यों में शक्तिशाली क्षेत्रीय दल सत्ता में है. कभी ”सेकुलरिस्म” और “कम्युनलिस्म” के नाम पर बंटी हमारी राष्ट्रिय राजनीति में वामपंथी दलों ने वर्षो से अपनी एक अलग पहचान बना कर रखी है. वैसे तो वामपंथी दल वर्षो से सक्रिय रहे है परन्तु अलग अलग पंथो में बटे रहने के कारण उनकी राजनैतिक प्रासंगिकता तब तक नहीं बन सकी जब तक कि वह सब एक साथ एक मंच में नहीं आ गए, इन अलग-अलग वाम पंथो को एक मंच में ला कर देश को एक शक्तिशाली राजनैतिक विकल्प देने में ज्योति बाबू की एक बहुत ही बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
आज ज्योति दा के निधन से हमारे देश की राजनीति में एक बहुत ही बड़ा शून्य पैदा हो गया है. वैसे तो उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास काफी समय पहले ले लिया था परन्तु फिर भी वह वाम दलों के कर्ता-धर्ताओं के लिए प्रेरणाश्रोत और मार्गदर्शक अभी भी थे. उनके राजनीति से संन्यास लेने के बावजूद समय-समय पर हम सुनते रहते थे कि न सिर्फ वाम दलों के नेता बल्कि बाकी पार्टियों के नेता भी उनसे विचार-विमर्श करने अक्सर जाते रहते थे, जो की उनकी राजनैतिक समझ और उनके प्रति लोगो के सम्मान का धोतक है. मुझे याद है कि १९९६ में जब तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने का उपक्रम चल रहा था और ज्योति बाबू का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय सा था, उनके दल और खुद उन्होंने इतना बड़ा पद ठुकरा दिया. स्वतंत्र भारत में इतने बड़े राजनैतिक बलिदान की दूसरी मिसाल सिर्फ सोनिया गाँधी है जब उन्होंने २००४ में प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया.
ज्योति दा ने अपनी विधि की शिक्षा लन्दन के मिडिल टेम्पल से पूरी की और वही से उनकी सोच को मार्क्सिस्ट दिशा इंगलैंड के मार्क्सिस्ट नेताओ हैरी पोलिट, रजनी पाल्मे दत्त और बेन ब्राडले इत्यादि की सांगत में मिली. लन्दन से लौट कर वह बैरिस्टर बन के शान और ऐश्वर्य की जिन्दगी जी सकते थे परन्तु उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो कर ट्रेड यूनियन और दूसरी मजदूर संसथाओ से जुड़ कर संघर्ष का रास्ता चुना. १९५२ में पहली बार विधायक बनने के बाद १९९६ बात लगातार पश्चिम बंगाल की विधायिका के सदस्य रहे, १९५७ से १९६७ तक नेता प्रतिपक्ष, १९६७ से १९६९ तक उप-मुख्यमंत्री और १९७७ से २००० तक मुख्यमंत्री; इतना लम्बा और गौरवशाली राजनैतिक जीवन किसी और का नहीं रहा है. लगभग ५० सालो तक शक्तिशाली पदों में रहने के बावजूद ज्योति बाबू ने सादगी का रास्ता नहीं छोड़ा और वामपंथी मर्यादाओ का मरते दम तक पालन किया.
मेरा लालन-पालन और शिक्षा कोलकोता में हुई थी, बचपन में अपने चितरंजन एवेन्यू के फ्लैट में जब मुझे सायरन की आवाज सुनाई देती थी तो पता लगता की ज्योति दा का काफिला निकल रहा है और मै उनकी एक झलक पाने के लिए बहार भाग कर आता था. १९९६ में जब तीसरा मोर्चा बना तो ज्योति दा उसके चेयरमैन, नेताजी संयोजक, और मेरे साथ सीताराम यचूरी, देवे गोड़ा इत्यादी सदस्य बने. इस अवसर में मुझे ज्योति दा के साथ नजदीकी से काम करने के मौका मिला. मै मुलायम सिंह जी का धन्यवाद देना चाहूँगा की उनके सानिध्य में मुझे ज्योति दा जैसी बड़ी हस्ती के साथ काम करने का मौका मिला.
अभी कुछ दिन पहले अपनी एक पोस्ट “enemy or rival” में मैने उस युग का जिक्र किया था जिसमे राजनैतिक प्रतिद्वंदी को दुश्मन न समझ के सम्मान से देखा जाता था. इस कड़ी में मैने पं गोविन्द वल्लभ पन्त द्वारा वामनेता डांगे जी और श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा चरण सिंह जी और बुपेश गुप्ता के खिलाफ अपने सहयोगियों की सलाह के बावजूद कोई कार्यवाई न करने के बात कही थी. इसी कड़ी में मै ज्योति दा को भी जोड़ना चाहूँगा, उन्होंने समस्त जीवन अपने प्रतिद्वंदियों के साथ अच्छे सम्बन्ध रखे और उन्हें यथोचित सम्मान भी दिया. मुझे याद है ज्योति दा श्रीमती इंदिरा गाँधी को प्यार से इन्दू कह कर बुलाते थे और वह श्री फिरोज गाँधी के बहुत अच्छे मित्र भी थे. १९७७ में जब कांग्रेस बुरी तरह से पराजित हुई तो ज्योति दा ने मर्यादा का पालन करते हुए श्रीमती गाँधी को दार्जिलिंग में आराम करने के लिए निमंत्रित किया था और इंदिरा जी ने उनके इस आमंत्रण को स्वीकार भी किया था. आज जब राजनैतिक मर्यादा धरातल में चली गयी है, हम सब राजनैतिक लोगो को शपथ लेनी चाहिए कि हम ज्योति बाबू द्वारा स्थापित राजनैतिक मूल्यों को पालन करेंगे, शायद हमारी तरफ से उनके लिए यही सबसे बड़ी श्रद्धांजली होगी.
ऐसी महान हस्ती को मेरा सत-सत प्रणाम, भगवान् इस दिवंगत आत्मा को शांती प्रदान करे.
जनवरी-8.
प्रिय मित्रो, कल मै विदेश से सीधे मुंबई पुत्रवत फरहान आज़मी का चुनाव प्रचार करने पहुँच रहा हूँ, शायद कल मैने आपसे यही बात कही थी. मेरे लिए फरहान और अखिलेश में उसी तरह से कोई अंतर नहीं है जिस तरह से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र मेरे लिए एक सामान है. जिस तरह से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की प्रगति से सारे देश की प्रगति होती है उसी तरह से अखिलेश और फरहान जैसे युवा नेताओ के आगे बढ़ने से राजनीति आगे बढती है.
पिछली कुछ पोस्ट्स में मैने अपनी पार्टी की कुछ कार्य शैलियों की आलोचना की थी. मै उन मुद्दों पर आज भी कायम हूँ. परन्तु यह सभी वैचारिक मुद्दे है और मै समझता हूँ कि समय के साथ मेरे नेताओ को भी मेरी बात समझ में आयेगी और पार्टी में कुछ वांच्छित परिवर्तन किये जाएँगे. समय बदल रहा है आज हम २१वी सदी के पहले दशक के अंत में है, जो काम जिस तरह से १९९० के दशक में होता था वह अब वैसे नहीं हो सकता है. अब शायद सेल फ़ोन की जगह फिक्स लाइन फ़ोन का इस्तेमाल करने से हमारे जीवन के तार ही टूट जाए, ई-मेल की जगह डाकिये से चिठ्ठी जाने पर शायद शादी के बाद निमंत्रण पहुचे, हवाई जहाज़ की जगह ट्रेन से हार्ट के मरीज को ले जाने से शायद वह इलाज होने के पहले ही मर जाये. इसलिए, नए ज़माने में जीने के लिए नए तरीको को अपनाना अनिवार्य है नहीं तो हम बहुत पीछे छूट जाएँगे. महान राम मनोहर लोहिया जी अगर आज की तारीख में सप्तक्रान्ति लिखते तो उसका स्वरुप कुछ और होता, शायद उनकी समाजवाद की परिभाषा भी कुछ अलग ही होती. इसलिए मेरी अपनी पार्टी के समाजवादी पुरोद्धाओ से हाथ जोड़ कर विनती है की वह नए ज़माने की जरूरतों को समझे और समाजवाद के बहुमूल्य दर्शन को उसी तरह से परिभाषित करे अन्यथा हम अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों से बहुत पीछे छूट जाएँगे.
जान कर के काफी निराशा हुयी कि हमारी पार्टी का प्रदर्शन विधान परिषद् चुनावो में बहुत ही निराशाजनक रहा. इन परिणामो से मुझे काफी आश्चर्य हुआ क्यूंकि मुझे लग रहा था कि शायद मेरे इन चुनावो से दूर रहने से ९८% पार्टी के कार्यकर्ता, जो कि तथाकथित रूप से मेरे इस्तीफे से काफी खुश है, तन, मन, धन के साथ मेहनत करके कम से कम बलिया, देवरिया और इटावा में तो पार्टी को विजयी बना देते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो इससे मै क्या निष्कर्ष निकालू, जवाब मै आप पर छोड़ता हूँ. इन परिषद् चुनावो मे पार्टी के सिर्फ एक मात्र सफल उम्मीदवार श्री अक्षय प्रताप सिंह है जो कि मेरे काफी नजदीक समझे जाते है और वह शायद उन २% सपा कार्यकर्ताओ मे है जो मेरे समर्थक है. मेरी समझ से आप लोग मेरी इस बात से सहमत होगे कि उपचुनाव और परिषद् चुनावो में जिस तरह से सत्ताधारी दल ने विजय प्राप्त की है वह किसी भी रूप में प्रदेश की वास्तिविक जनभावना का परिचारक नहीं है. आज सारा उत्तर प्रदेश जल रहा और जनभावना पूर्ण रूप से बसपा सरकार के खिलाफ है परन्तु सिर्फ अपनी कमियों की वजह से हमारा दल इसका राजनैतिक लाभ नहीं ले पा रहा है. मुझे उम्मीद है कि इन परिणामो से मेरे दल के कर्ता-धर्ता कुछ सीख लेगे और आने वाले समय में वांछित परिवर्तन करके पार्टी को सही दिशा में ले जायेंगे.
मीडिया में शायद कही कहा गया कि मैने नेताजी और उनके परिवार की आलोचना की है, यह बात सरासर झूठ और बिना सर-पैर की है. राजनीति से अलग हट कर, नेता जी, शिवपाल भाई, बेटे सामान अखिलेश, और रामगोपाल भाई के साथ मेरे वर्षो पुराने व्यक्तिगत सम्बन्ध रहे है. इन संबंधो ने हर तरह के मौसमों की मार झेली है, यह सम्बन्ध सारी दुनिया और राजनीति से अलग हट करके है. मै सपा की राजनीति करू या किसी और दल की, मै सपने में भी इस परिवार के खिलाफ कुछ नहीं बोल सकता हूँ. मैं क्षत्रीय धर्म का पालन कर रहा हूँ और वचन के मुताबिक नेताजी के परिवार के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलूँगा, ”रघुकुल रीति सदा चलि आयी प्राण जाएँ पर वचन न जाई”. हां मेरे बड़े भाई कुछ दिनों से मीडिया में कुछ ऐसी बाते जरूर कर रहे है जिससे मेरा दिल रो पड़ा. लेकिन मैने फिर भी उनके बारे में कुछ भी गलत नहीं बोला और मर्यादा में रह कर सिर्फ अपने दुःख का इज़हार किया. हां मेरी पार्टी में कुछ पुराने समाजवादी जरूर है जो मुझे अपनी आँख की किरकिरी समझते है और मुझ पर प्रहार करने का कोई भी मौका नहीं चूकते है. ऐसे ही मेरे एक मित्र ने मेरे इस्तीफे के बाद न जाने क्या क्या कह डाला, मैने अपनी ब्लॉग में उनके बारे में जो कुछ भी कहा मै उस पर अभी भी कायम हूँ. पैसे के लेन-देन की बात ब्लाग मे लिखने पर कुछ लोगो ने मेरी आलोचना भी की. मै यहाँ पर स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मेरे द्वारा इस बात को कहने के काफी पूर्व ही मोहन सिंह जी ने बनारस की एक गोष्ठी में मेरे से पैसे लेने की बात कह कर अफसोस जाहिर करते हुए मेरी वजह से समाजवाद पर पूंजीवाद के हावी होने की बात कही थी, इसलिए कृपया इस वाक् युद्ध के लिए मुझे दोषी न ठहराइये.
नेता जी कहते है कि चुप रहना सोना होता है और बोलना चांदी, मैने उनसे सीख ले कर सोना बनने की पूरी कोशिश की पर शायद उनका कोई नज़दीकी ही उनके इस कथन के दर्शन को नहीं समझ सका. यहाँ पर मै पुत्रवत अखिलेश की तारीफ़ करना चाहूँगा. इस प्रकरण के दौरान हमारी पार्टी के एक सांसद श्री राधेमोहन सिंह, जो कि तथाकथित रूप से मेरे काफी नजदीक समझे जाते है, ने जब अखिलेश के पास जा करके कहा कि वह उनके साथ है तो अखिलेश ने उनको दोटूक जवाब देते हुए कहा कि न आप मेरे साथ रहे न ही अंकल के साथ, आप कृपया पार्टी के साथ रहे. अखिलेश बहुत ही सरल स्वाभाव के मालिक है और ३ बार सांसद बनने के बावजूद राजनीति की कुटिलता से अभी भी कोसो दूर है. उनमे अपने और पराए में अंतर करने कि छमता कूट-कूट कर भरी है, मुझे लगता है कि बड़ा होने के बावजूद शायद परिवार के कुछ लोगो को उनसे सीख लेने की ज़रुरत है. मुझे उम्मीद है अखिलेश अपने व्यक्तित्व के इस पहलू को बचा कर रखेंगे. मै जहा भी जिस हाल में रहू हमेशा कमना करूँगा कि उनका भविष्य उज्वल हो और वह फूले फले.
मै पार्टी के अपने समर्थको का तहे दिल से धन्यवाद देना चाहता हूँ कि वह इस मुश्किल समय में मजबूती के साथ मेरे साथ खड़े रहे. जिस तरह से मैने इस प्रकरण में मर्यादा का पूरी तरह से पालन किया उसी तरह से मेरे समर्थको ने भी मेरा अपमान होने पर विद्रोह के स्वर तो जरूर उठाए पर किसी मर्यादा का उन्लन्घन नहीं किया. मेरे बड़े भाई और उनके कुछ समर्थको ने तो कोई कसर नहीं छोडी, मुझे जी भर के कोसा और हर तरह से अपमानित भी किया पर मै गर्व पूर्वक कह सकता हूँ कि मेरे समर्थको ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला.
आज मेरी नेताजी के परिवार के साथ फोन पर बात हुयी, इस वार्तालाप के दौरान न सिर्फ उनकी आँखों में आंसू आ गए बल्कि मेरी आँखे भी नम हो गयी. वह शायद पार्टी के लिए खून जलाने और गुर्दा ख़राब करने वाले इस अदना कार्यकर्ता का दर्द समझते है. उनसे बात करने के बाद लगा कि शायद मुझे गीता के उस ज्ञान का आत्मसात करना पड़ेगा जिसमे कि कर्तव्य पथ पर निर्मोही हो कर आगे बढ़ने की बात कही गयी है.
जैसा मैने वादा किया था मै पुत्रवत फरहान के प्रचार के लिए मुंबई जा रहा हूँ, उसके बाद मेरे व्यक्तिगत और राजनैतिक जीवन का अगला पड़ाव कहा होगा मुझे खुद पता नहीं है…..
जनवरी-9.
आदरणीय नेताजी, आपसे और अखिलेश से मैने संपर्क करने की बहुत कोशिश की पर किन्ही कारणों से हमारी बात फ़ोन पर नहीं हो पायी इसलिए मजबूरन मुझे यह सन्देश आप तक ब्लाग के जरिये पहुँचाना पड़ रहा है. मुझे पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम को देख कर अहसास हो रहा है कि यदि कोई भी अच्छा काम होता है तो उसका सारा श्रेय औरो को दे दिया जाता है परन्तु कुछ खराब होने पर सारा का सारा इल्जाम मेरे सर पर आ जाता है. पार्टी के कुछ नेताओ ने मुझ पर इल्जाम लगाया है कि पार्टी में फ़िल्मी सितारों और उद्योगपतियों की चकाचौंध मेरी वजह से आयी है और समाजवाद के मूल्यों के पतन का जिम्मेदार भी मै ही हूँ. इस सारे प्रकरण में जिस बात को मुद्दा बनाया जा रहा है वह बात मैने की ही नहीं है. आपसे बेहतर कौन जनता है कि मेरा इस्तीफ़ा कोई राजनैतिक नहीं बल्कि सिर्फ एक व्यक्तिगत फैसला है. कुछ पत्रकारों ने मुझसे पूछा कि क्या नेताजी का भी कोई राज मेरे पास है तो मैने उत्तर दिया कि हम दोनों ने एक दूसरे के साथ कई चीजो में विशवास की हिस्सेदारी की है, इस विषय में न वह कुछ बोलेंगे और ना ही मै कुछ कहूँगा. आप विशवास कीजिये की यह सब मेरे सीने मेरी अंतिम सांस तक दफन रहेगा. मुझे पता लगा है कि मेरे इस कथन को भी भाई राम गोपाल ने मुद्दा बना दिया है. वह मुझे मानसिक रूप से वह मुझे बीमार मानने लगे है, मै मानसिक रूप से तो नहीं पर शारीरिक रूप से अवश्य बीमार हूँ और उसी वजह से मैने छुट्टी मांगने का अपराध किया है. उसकी जो सजा चाहे आप लोग मुझे देदे. लगातार हो रहे इस सार्वजानिक अपमान के बाद मेरा ”सैफई महोत्सव” में आना उचित नहीं होगा. आपका आदेश न मान पाने के लिए मे दुखी और क्षमाप्रार्थी हूँ.
आपका पुराना कृपाकांछी सेवक
अमर सिंह
जनवरी-10.
मेरे प्रिय ब्लागर साथियों, पिछले कुछ दिनों से आप लोगो से मुझे जो प्यार मिला है उसके लिए मै आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया करता हूँ. शुरू-शुरू में मुझे लगा की शायद एक राजनैतिक आदमी होने की वजह से मुझे इस खुले मंच में काफी आलोचनाओ का सामना करना पड़ेगा क्यूंकि हमारे देश में राजनीति और उससे जुड़े लोगो की बहुत अच्छी साख नहीं होती है. परन्तु यदा-कदा आलोचनाओ के अलावा आप लोगो ने मुझे बहुत अधिक उत्साहित किया है. मैने हमेशा से कोशिश की है जिन-जिन लोगो ने मेरी आलोचना की है उन्हें मै संतुष्ट करने वाले जवाब दू परन्तु फिर भी अगर कोई संतुष्ट नहीं हुआ तो मै उनसे माफी मांगता हूँ.
पिछले कुछ महीनो में मेरा अपनी जिंदगी का सबसे अधिक चुनौती भरा समय गुजरा है. ख़राब स्वास्थ के साथ-साथ मैने अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन के कुछ खट्टे और कुछ मीठे अनुभवों की अनुभूति की है, इस बात का अहसास शायद आपको मेरी कुछ हाल की पोस्ट्स से हुआ होगा. स्वास्थ कारणों की वजह से जब मैने कुछ दिनों पूर्व अपनी कुछ राजनैतिक जिम्मेदारियो से छुट्टी ली तो मीडिया ने इसे पूरी तरह से राजनैतिक रंग दे दिया. मिडिया द्वारा इस प्रकरण को दिए गए इस ट्विस्ट से मेरे कुछ साथी भी भ्रम में आ गए और उन्होंने कुछ अनचाही बाते सार्वजनिक रूप से कही और मेरे इस निजी फैसले को राजनैतिक चाल समझने की भूल भी कर दी. वैसे तो मै इस विषय में पूर्ण रूप से चुप रहना चाहता हूँ परन्तु आप लोगो ने जिस तरह से अपने कमेंट्स में अलग-अलग तरह के विचार प्रकट किये है मेरा फर्ज है की मै आप लोगो को कुछ बाते स्पष्ट रूप से बता दू.
मै इस वक्त देश में नहीं हूँ. लोग तरह-तरह की बाते कर रहे है. कुछ कह रहे है कि मै मायावती द्वारा दर्ज फर्जी मुकदमे से डर कर देश के बाहर हूँ. जिस भांति देश से मेरे राजनैतिक भविष्य और इरादों को ले कर राजनीति हो रही है, मुझे लगता है कि मुझे इस गहमागहमी से दूर रहना ही बेहतर है.
सबसे पहली बात यह है कि मै अपने बेहद करीबी महाराष्ट्र के कद्दावर नेता अबू हासिम आज़मी के पुत्र फरहान आज़मी के लिए चिंतित हूँ. मुझे कांग्रेस का चवन्निया सदस्य बनाने वाले एक नेता समाजवादी पार्टी को एक टूटने वाली पार्टी बता कर भिवंडी में फरहान के विरुद्ध भाषण देते हुए कह रहे है कि समाजवादी पार्टी टूट कर कांग्रेस में आ रही है. बकरे की अम्मा पहले हैदराबाद में अपनी ख़ैर मनाये, अपनी टूटती पार्टी और डूबती नैय्या बचाए. मै विदेश से सीधे तन, मन और धन के साथ फरहान के लिए मुंबई पहुँच रहा हूँ.
मेरी आलोचना आदरणीय मुलायम सिंह जी ने कभी नहीं की है और ना ही मैने उनके विरुद्ध एक शब्द कहा है, तो फिर बटवारा और टूट कहाँ? श्री संजय दत्त, सुश्री जया प्रदा और अमर सिंह भले ही पदाधिकारी न हो, पार्टी के साधारण सदस्य तो है ही. चुनाव नेता नहीं कार्यकर्ता लड़वाते है. हमारा नेतृत्व इटावा में सम्पादित हो रहे है वार्षिक ”सैफई महोत्सव” में व्यस्त है पर हम साधारण कार्यकर्ता सम्पूर्ण उर्जा के साथ अबू आज़मी और फरहान आज़मी के साथ है. १९ जनवरी को जयाप्रदा जी भिवंडी जा रही है. जयाप्रदा जी एक बहुत बड़ी तेलगू स्टार और तेलगू भाषियों की बहुत चहेती है. उत्तर प्रदेश के बड़े समाजवादी नेताओ की तरह अबू आज़मी को फिल्म स्टारों से परहेज़ नहीं है. इसलिए श्रीमती जया बच्चन भिवंडी जा चुकी है और अब जयाप्रदा और संजय दत्त भी जायेंगे और मै तो वहां पड़ा ही रहूँगा ताकि पुत्रवत फरहान की विजय हो.
मैने स्वास्थ कारणों से सिर्फ कुछ पदों से स्तीफा दिया है. मै आज भी समाजवादी पार्टी का सदस्य हूँ. मेरे इस्तीफे से अलग-अलग तरह की अटकले लगाई गयी किसी ने बोला की मै इस पार्टी में जा रहा हूँ कोई बोला उस पार्टी में, यहाँ तक की मेरे कांग्रेस पार्टी में जाने की भी बात कही गयी. पता नहीं कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता मेरे कांग्रेस पार्टी में जाने की अफवाह को सुन कर डर सा गए और उन्होंने कुछ बौखलाहट दर्शाने वाले वक्तव्य भी दे डाले. उन्होंने ने तो यहाँ तक कह डाला की शायद मुझे कांग्रेस में २५ पैसे वाली सदस्यता भी नहीं मिले. मै इन महानुभाव को आदरपूर्वक बताना चाहता हूँ की मै आज भी समाजवादी पार्टी में बहुत ही आरामपूर्वक हूँ और मुझे मेरे नेता का स्नेह और विशवास आज भी उसी तरह से प्राप्त है जैसा की वर्षो से मिलाता आ रहा है. हां, भगवान् न करे अगर भविष्य में कभी कोई ऐसी परिस्थिति बनी कि मुझे राजनैतिक विकल्प तलाशने पड़े तो मेरे पास विकल्पों की कमी नहीं है और हां यदि मुझे इन २५ पैसे वाले कांग्रेसी नेता की मदद से राजनैति करने की जरूरत पडी तो में सार्वजनिक जीवन से संन्यास लेना बेहतर समझूंगा.
कल समाजवादी पार्टी के कुछ जिले और ब्लाक स्तर के नेताओ ने मुलायम सिंह जी से मुझे छुट्टी देने को कहा. मुझे दुख है कि मेरे ऊपर यह आक्रमण नेताजी, अखिलेश और स्वयं रामगोपाल जी के साथ वार्ता होने के बाद की गयी, और हद तो यह है कि श्री वीरपाल जी ने यहाँ तक कह डाला कि इस सारे घटनाक्रम में आदरणीय नेताजी का हाथ है. अब मुझे भी पता लगने लगा है कि नेता जी इच्छा के बाद, उनके सैफई महोत्सव के निमंत्रण के बाद चुने हुए एक खास गुट के मुस्लिम नेताओ का छोटा समूह मुझे कल्याण सिंह जी के नाम पर क्यूँ कोस रहा है.
आदरणीय कल्याण सिंह जी मुझसे बहुत बड़े कद के नेता है और उनका स्तर श्री मुलायम सिंह जी के समकच्छ है. आज के उनके स्पष्ठीकरण से कम से कम समाजवादी पार्टी से उनकी निकटता का मुख्य सूत्रधार कम से कम अमर सिंह नहीं है, यह तो स्पष्ट हो गया है. फिरोजाबाद चुनाव के दौरान मै सिंगापूर में था और उसी दौरान हुए आगरा सम्मलेन में मुख्य अतिथि के रूप में कल्याण सिंह जी को आमंत्रण की चिट्ठी दल के परिवार से सम्बद्ध एक महत्वपूर्ण राश्ट्रीय महासचिव (श्री रामगोपाल जी) ने संप्रेषित किया था. पूरे आगरा में नेता जी के लगभग बराबर कल्याण सिंह जी की तस्वीरे लगाई गयी थी और वह सारे मुस्लिम नेता जिन्होंने कल मेरी आलोचना की थी मंच से कल्याण सिंह जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे. अनावश्यक रूप से ख़त्म हो चुकी बाते कुरेद कुरेद कर आप अमर सिंह का कतई नहीं बल्कि हमारे प्रिय नेता श्री मुलायम सिंह जी का नुक्सान ”कल्याण खुलासे” के बाद बुरी तरह कर रहे है; बराये करम बाज आइये. और हां, आज मुझे पंजाब नॅशनल बैंक के पुराने चेयरमैन जिलानी याद आ रहे है जिनकी सिफारिश पर मै पहली बार संभल के नवाब इक़बाल को नेताजी के पास ले कर गया था और आज इनका इकबाल इतना बुलंद है कि मै अमर सिंह देखता रह गया और नवाब साहेब मंत्री हो गए. कल्याण सिंह जी ने अपने सियासी दौर के सबसे महत्वपूर्ण पलों में समाजवादी पार्टी के साथ बनी स्वयं की भूमिका में श्री मुलायम सिंह जी को अपना हीरो बनाया और महफ़िल की जिक्रेख़ैर की बातो का खुलासा कर इकबाल महमूद एंड कम्पनी की मुहीम, अमर सिंह “कल्याण फैक्टर” के जिम्मेदार, के आरोप और इलज़ाम से मुझे मुक्ति दिला दी.
समाजवादी पार्टी के चंद बड़े नेताओ की ख़ास पसंद बन चुके जनाब आज़म खान अब मुतमईन हो जाए कि इस सियासती पायजेब को मैने पार्टी के पांव में बिलकुल नहीं बांधा, बाअदब, बमुलाहज़ा होशियार यह खुलासा खुद शहंशाहे बरबादिए बाबरी मस्जिद माबदौलत जनाब कल्याण सिंह साहब खुद अपने जानिब से कह रहे है. हालाँकि इस मसले में नेताजी के मंत्रिमंडल में कल्याण सिंह जी के पुत्र राजवीर जी और श्रीमती कुसुम राय जी के साथ मंत्री रह चुके भाई आज़म खान और बेनी वर्मा जी के साहबजादे श्री राकेश वर्मा और उस सरकार को हिमायती का ख़त देने वाली आदरणीय कांग्रेस अध्यक्ष भी बराबर की सियासी हिस्सेदारी की मुस्तहक है. अकेले मुलायम सिंह जी घेरे में क्यूँ आये? सियासत के इस हमाम में सब नंगे है. २०१२ अभी दूर है, आइये ईमानदारी से यह बात हम सब मान ले.
मुझसे रूठे मेरे भाई अरविन्द सिंह आजकल हमारी पार्टी पर भड़के हुए है. पहले मुझसे भड़क कर कांग्रेस और फिर वहाँ से भाजपा में चले गए. पार्टी में नेताजी के साथ रहने वाले भाई के बयान पर नेताजी का नियंत्रण नहीं तो फिर समाजवादी पार्टी से भगा दिए गए रूठे भाई पर अमर सिंह का नियंत्रण कहाँ से होगा? नेता जी, न आपके भाई आपके नियंत्रण में न मेरे भाई मेरे नियंत्रण में. पर मुझे इस बात का फक्र जरूर है कि मैने कभी भी अपने परिवार के सदस्यों की राजनैतिक महत्वकंछाओ को सपा में बढ़ावा नहीं दिया. दुर्भाग्यवश सियासत की फ्री स्टाइल कुश्ती चल रही है, मुझे माफ़ करे.
जया बच्चन जी खामोश है परन्तु बहुत दुखी है. विधान परिषद् चुनावों के एक दिन पहले दिए मेरे इस्तीफे से यदि दल को नुक्सान हुआ हो तो मै हाँथ जोड़ कर माफी मांगता हूँ. अगर कुछ लोगो की माने तो मै कुछ हूँ ही नहीं तो फिर मेरे इस्तीफे की अनुकूलता या प्रतिकूलता क्या? फिर भी यदि मेरी कुछ प्रासंगिगता है तो इस भूल के लिए प्रत्याशियों एवं दल के शीर्ष नेतृत्व से इस कार्यकर्ता की छमा याचना.
सैफई से उत्साहवर्धक वार्ता के बाद सुकून मिला है, अपरान्ह तक दल के कुछ विधायक टिड्डी दल की तरह मेरे रक्त के प्यासे हो जाते है, बीच-बीच में ठंढी फुहार की तरह ओबेदुल्ला खान आज़मी और दूसरे आज़मी अबू हासिम की हिमायत एक तीसरे आज़मी अमर आज़मी के लिए आ जाती है तो नींद आ जाती है, यह सोच कर कि तन्हा नहीं मै, कोई तो साथ है. अल्लाह जाने कही मेरे ये हिमायती मेरी हिमायत में सियासत की कुर्बानी के बकरे न बन जाये.
जनवरी-11.
कल शाम ब्लाग लिखने से पहले नेता जी को संपर्क करने की कोशिश की पर बात नहीं हो पाई. सैफई महोत्सव चल रहा है, बड़ी भीड़ होगी, वही मसरूफ होंगे.
“तुम्हे अपनो से कब फुर्सत, न हम अपने गम से खाली, चलो बस हो चूका मिलना, न तुम खाली न हम खाली”
अंत में शरद पवार जी को धन्यवाद इस स्पष्ठीकरण के लिए कि मैने उनसे कोई राजनैतिक सौदेबाजी की बात नहीं की है. लिखते-लिखते बयान आया है कि भाई राम गोपाल फिर कुछ बोले. सुबह कुछ, शाम को कुछ, छड़े रुष्टा छड़े तुष्टा, चूँकि भाई रामगोपाल जी नेता जी के परिवार के है अतएव मुझे कुछ नहीं कहना है. श्री बेनी वर्मा जी, श्री राज बब्बर जी, श्री कल्याण सिंह जी, श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी जी, श्री राजनाथ जी, राष्ट्रवादी कांग्रेस के श्री डी पी त्रिपाठी जी या तो मौन हो गए है या सभी ने मेरी प्रशंषा की है. गलियां तो मुझे मेरे घर में ही दी जा रही है, जहा मैने अपना तन-मन धन सब दे डाला. मोहन भाई का बयान आया कि जो पैसा उन्होंने लिया वह मेरा नहीं पार्टी का था और मै इस पैसे का सिर्फ कस्टोडियन हूँ. पार्टी के सारे पैसे एवं कोष के कस्टोडियन आदरणीय मुलायम सिंह जी के सचिव श्री जगजीवन जी है. आज तक सपा में हर स्तर पर राजनैतिक पैसे एवं कोष के लेखा जोखा के चित्रगुप्त जगजीवन जी ही रहे है. श्री मोहन सिंह जी ने पार्टी के चित्रगुप्त जगजीवन जी से अलग और मुझसे नेता जी के अनुरोध पर लन्दन इलाज के लिए मेरा निजी पैसा और अपने चुनाव के लिए भी निजी पैसा अलग से लिया था. आज तक नेता जी ने मुझे पार्टी के कोष का कस्टोडियन नहीं बनाया है. मेरी यह बाते झूठ हो तो नेता जी स्वयं खंडन करे, भाई मोहन सिंह जी,
“मेरी एक बात पर इतना गिला हुआ, कुछ तुम्हे भी याद है अपना कहा हुआ”
अंत में यदि रामगोपाल भाई इतने नाराज है तो उनसे सैफई महोत्सव में मुझे अतिथि बनाने के अपने प्रस्ताव पर नेताजी और परिवार एक बार पुनर्विचार करले. अब मुझे यह ज्ञान हो गया है कि ईसा को सूली, गांधी को गोली और सुकरात को उनके अपने मित्रो ने जहर दिया क्यूँ दिया. मुझे समाजवादी पार्टी और उसके प्रथम परिवार से गोली, सूली और जहर की उम्मीद बिलकुल नहीं है पर हां मुझे अपने नेता और बड़े भाई मुलायम सिंह जी से बहुत उम्मीदे है.


फरवरी-1
मेरे और मुलायम सिंह जी के रिश्ते लगभग २० वर्ष पुराने है और पिछले १५ वर्षों से राजनैतिक धूप-छावं को हमने साथ-साथ भोगा है. मैने उनमे और स्वयं में कभी कोई भेद-भाव नहीं समझा. उनकी विपत्ति को अपनी और उनके लोगों को अपना जाना और माना. मेरे चरित्र को कलंकित करने के लिए सी.डी. की बातें हो रही है. स्वयं मेरे फोन की अवैध टैपिंग हुई, मामला उच्च न्यायालय में गया और उसके निर्देश से “प्राइवेसी ला” बना. मैने कभी उनके या उनके परिवार की किसी सी.डी. की बात नहीं कही बल्कि मात्र इतना माना कि एक सी.डी. जरूर है जो आय से अधिक संपत्ति के मामलों के मुकदमे के शिकायतकर्ता की है, जिससे मुलायम सिंह जी की ईमानदारी सामने आती है. “कैश फार वोट” में भी मेरी चर्चा के मूल में मेरी पार्टी के वरिष्ठ नेता भाई रेवतीरमण सिंह जी का वीडियो फुटेज है, मेरा नहीं. मै रेवतीरमण जी पर कोई आरोप नहीं लगा रहा हूँ क्योंकि संसदीय समिति उन्हें भी क्लीन चिट दे दी है. पार्टी ने मेरे यूं.पी.ए. प्रेम की बात कह कर यह आरोप लगाया कि यूं.पी.ए.-२ सरकार को दिया गया मेरा समर्थन मेरे अकेले का निर्णय है, पार्टी का नहीं. सच तो यह है कि मैनपुरी से मुलायम सिंह जी का कांग्रेस के विरुद्ध विपक्ष में बैठने का समाचार मिलने पर प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी की जब मुझसे वार्ता हुई तो मेरे अनुरोध पर श्री मुलायम सिंह जी ने कृपापूर्वक मुझे अधिकृत करते हुए माननीया राष्ट्रपति महोदया से मिल कर यूं.पी.ए.-२ की सरकार को समर्थन देने का निर्णय पहुचाने का आदेश दिया. संभवतः पार्टी प्रवक्ता एवं अध्यक्ष के मध्य कोई संवादहीनता है. पार्टी प्रवक्ता का यह भी बयान है कि मैने कोई डील अपने लाभ हेतु यूं.पी.ए.-२ की सरकार से की है. ऐसा करने पर संभवतः सिंगापुर जाने के पूर्व तीन बार समय माँगने के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष से समय ना मिल पाए, यह तो संभव नहीं. हाँ, प्रधानमंत्री से ले कर विधि मंत्री तक आदरणीय मुलायम सिंह जी की झूठे मामलों से मुक्ति दिलाने की गुहार मैने सदैव की है और प्रबल राजनैतिक दूरियों के बावजूद मेरी यह मांग लगातार जारी रहेगी. अध्यक्ष जी के विधिक मामलों पर कितनी बार भाई रामगोपाल जी ने संसद के अन्दर या बाहर आवाज उठाई है. हाँ, स्वर्गीय जनेश्वर जी मरते दम तक इस विषय पर चिंतित रहे.
मुझे आश्चर्य है कि प्रवक्ता महोदय शर्मलशेख वार्ता के बाद श्री मुलायम सिंह जी का भारत-पाक सम्बन्धो पर दिया गया संसदीय बयान नहीं देख पाए, बेचारे हार जो गए वो भी तीसरे नंबर पर रहके. भारत-पाक सम्बन्धो पर मेरा बयान श्री मुलायम सिंह जी के उसी बयान का प्रतिविम्ब था. मै कल तक का १४ वर्ष पुराना बेचारा प्रवक्ता था और आप आज के बेचारे प्रवक्ता है. हमारी गूंगी जबानो से हमारी अपनी कहाँ हमारे नेता की ही वाणी मुखरित होती है. कन्नौज/बदायूं चाहिए ही नहीं, रखे रखिये आदरणीय मुलायम सिंह जी के नाम पर प्रवक्ता जी आपने मुझे रामगोपाल जी के द्वारा “पागल” उदघोषित करने के बाद “बेशरम” की पदवी दे दी. आप मेरे क्षत्रिय भाई है, मेरी शुभकामना है कि आप मुझे भला-बुरा कह कर जल्द से जल्द राज्य सभा पहुँच जाएं. जागरण में आया कि मैने सोनिया जी और मायावती जी की तारीफ़ की, जो कि बिल्कुल गलत है. मैने तो मात्र इतना ही कहा था कि समर्थन ना देने पर मायावती जी पर गेस्ट हाउस काण्ड और बीमारी की छुट्टी माँगने पर अमर सिंह का भी मायावती की तर्ज पर राजनैतिक शीलहरण; भाई रहम करो. मैने गाजीपुर की सभा में प्रवक्ता जी का नाम ना लेने का संकल्प किया था, द्रढता से उस पर कायम हूँ.
अब बता दूँ कि श्री मुलायम सिंह जी की राजनीति से दूर समाजवादी दल के लाखों – करोड़ो सामान्य कार्यकर्ता की हैसियत से एक निर्वाण प्राप्त कार्यकर्ता “लोकमंच” नाम के एक गैर राजनैतिक संगठन के माध्यम से सक्रिय रहेगा. फिलहाल मुंबई में बड़े भैया अमिताभ जी के घर पर हूँ. आयुष्मान अभिषेक, भाभी जया जी और बहूरानी ऐश्वर्या भी साथ है. बड़के भैया २६ फ़रवरी को मेरे गृह जनपद आजमगढ़ के पकड़ी गाँव में “कंप्यूटर कम अंगरेजी” सेंटर का उदघाटन करने आएँगे. यह कार्यक्रम “निष्ठां” नाम की संस्था की तरफ से होगा जिसकी अध्यक्ष सांसद जया प्रदा जी है. आखिर पिछड़े उत्तर प्रदेश के गाँव के बच्चों और अभिभावकों में यह सन्देश तो जाये कि “पढो लिखो और बड़े बनो”. मेरे और मुलायम सिंह जी के सम्बन्धो का विशलेषण टुच्चे लोग करना बंद करे तो बड़ी कृपा होगी.
“वक्त का आखिरी फरमान अभी बांकी है, मेरी तकदीर का अंजाम अभी बांकी है,
किस तरह मिटाएंगे मिटने वाले, एक अपना आवामी निगेहबान अभी बांकी है.”
आज मै श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में था. क्षत्रिय महासभा की रैली रेले में बदल गई. लगभग एक लाख लोगों में अधिकाँश क्षत्रिय भाई थे लेकिन उनके साथ-साथ महाराज अग्रसेन के वंशज वैश्य भाई, निषाद भाई, कुशवाहा, चौहान, और कुर्मी भाइयों के साथ साथ धर्मान्तरण के कारण मुसलमान बने क्षत्रिय भाइयों के समूह ने इस रैली को जातीय रैली की सीमा से काफी ऊपर उठा कर समाज के सभी वर्गों के समन्वय का संगम बना डाला.
कुछ लोगो के अनुसार मैं जनाधार विहीन, गगनबिहारी और हवाहवाई नेता हूँ और मुझ जैसे छुद्र व्यक्ति के लिए ऐसा विहंगम समागम. वाराणसी, गोरखपुर, जौनपुर, हरदोई, शाहजहांपुर, सहारनपुर, एटा, आगरा, और अंत में भगवान कृष्ण की लीलास्थली मथुरा में आ कर ऐसी अनुभूति हुई जैसे कि माता जगदम्बा ने मेरे राजनैतिक और सामाजिक प्रतिद्वंदियों को मेरे जनाधार का अहसास कराया है. स्वयं को मेरे पुराने नेता मुलायम सिंह जी से नजदीक दिखाने वाले कुछ क्षत्रिय नेताओं के एक वर्ग ने सौ बसों का जखीरा भेजते हुए आश्वस्त किया कि हम आपके विरोधी खेमे के टाइम बम है, समय से फूटेंगे. ईश्वर इनका भला करे और मुलायम सिंह जी को इनसे सुरक्षित रखे. यह स्वयं मुझसे कह रहे थे कि हम नील गाय है जहाँ लम्बी घास दिखेगी वहीं जाएँगे. लम्बी घास अभी तो आदरणीय मुलायम सिंह जी ही है, अतएव औपचारिक रूप से मुलायम सिंह जी के साथ और गुपचुप अनौपचारिक रूप से मेरे साथ. इन मौक़ापरस्त साथियों का तर्क था कि भाईसाहब श्री कृष्ण अर्जुन के साथ और उनकी सेना कौरवों के साथ, तो हम रिस्क क्यूँ ले, दिन के उजाले में मुलायम सिंह जी के साथ और रात के अँधेरे में आपके साथ. वाह रे राजनीति और इसके अभूतपूर्व खेल , कभी तुम भूतपूर्व और कभी हम भूतपूर्व. अमर सिंह का भूत जो समाजवादी यदुकुल के एक सज्जन के दुर्वचनों की भेट चढ़ गया जो अब प्रदेश के हर क्षेत्र और कोने कोने में खूब घूम रहा है. हमारे प्रवक्ता क्षत्रिय भाई हमें बहुत याद करते रहते है, शीघ्र ही उन्हें सादर प्रणाम करने देवरिया भी पहुंचूंगा.
महा-निषेध, दहेज़ उन्मूलन एवं गरीबी के आधार पर क्षत्रिय समाज का आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे आज मथुरा की रैली में छाए. आदरणीय मुलायम सिंह जी, स्थापित क्षत्रिय नेतृत्व जो मेरी मदद से सांसद, विधायक, मंत्री, ठेकेदार और लाभार्थी बने, गायब है या फिर गुपचुप तौर पर मेरे साथ है. ईश्वरचंद्र विद्यासागर जो कि बंगाल के बहुत बड़े दार्शनिक थे, ने कहा था कि तुम्हारा विरोध वही करेगा जो तुमसे लाभार्थी हुआ हो. चाहे मेरे पुराने नेता मुलायम सिंह जी हो, मेरी पुरानी पार्टी सपा हो और फिर चाहे पुराने स्थापित क्षत्रिय छत्रप हो, सभी माननीय विद्यासागर जी की टिप्पणी के अनुकूल ठन्डे है या फिर धुर विरोध कर रहे है. सामान्य जन जिन्हें मुझसे कुछ मिला ही नहीं, कोई लेना-देना नहीं हमारे अति-पिछड़े, मुसलमान और गरीब क्षत्रिय भाई खुल कर साथ है.
क्षत्रिय जाती नहीं क्षात्र धर्म है और यह क्षात्र धर्म गरीब-गुरबों और अति-पिछड़ों को संरक्षण देने का धर्म है. हमारे पुरखे क्षत्री कुलभूषण मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने तो अति-पिछड़ी शबरी का जूठन तक चखा था. महाराणा प्रताप के संघर्ष में उनका सेनापति मुसलमान, आर्थिक मददगार अति-पिछड़े मीणा-भील समुदाय के भामाशाह और सेना में रूठ कर वापस आए भाई शक्ति सिंह ने दिया था. गंभीर बीमारी के बाद संवेदना की जगह जब मेरे दल ने मुझे अपमान और क्रूरता दी तो आम मुसलमान भाई जैसे डाक्टर अयूब और मुझसे रूठ कर दूर हुए अन्य दलों के बिछड़े क्षत्रिय बन्धु शक्ति सिंह की तरह लौट कर मेरे संघर्ष के साथी बने एवं अति पिछड़े समुदाय के भामाशाह की तरह ओमप्रकाश राजभर, हेमंत कुशवाहा, रामचरित्र निषाद, मनोज चौहान और महान दल के केशव मौर्य साथी भी मेरे साथ हो गए. अपने पुराने नेता के लिए बस यही कहना है कि-
“रहते थे कभी जिनके दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह, बैठे है उन्ही के कूंचे में हम आज गुनहगारों की तरह”
आजमगढ़ की २५ फरवरी की रैली निर्णायक होगी. श्री अमिताभ बच्चन का कार्यक्रम निरश्त कर दिया हूँ ताकि समाजवादी साथी यह न कहें कि बच्चन जी की भीड़ की बैसाखी पर मेरी सियासत टिकी है. मुलायम सिंह जी, उत्तर प्रदेश के इन दौरों में मेरे साथ कोई नायक और नायिका नहीं अपितु आपके अपमान और राजनैतिक अभिशाप का आशिरवाद मुझे खूब फला-फुला रहा है, बहुत-बहुत धन्यवाद.
फरवरी-2
पूणे की जर्मन बेकरी में धमाका हुआ. कोई सुराग नहीं की यह किसकी हरकत है लेकिन पकड़ा कोई मुसलमान ही जाएगा. हो सकता है की वह मुसलमान भी हमारी बच्ची इशरत जहान की तरह मासूम हो लेकिन अपने मुसलमान होने की अच्छी-खासी कीमत उसे भी चुकानी पड़े. हमारे सेकुलर सियासतदा साक्षी महराज, कल्याण सिंह जी, शकर सिंह वाघेला, नारायण राणे, संजय निरुपम सबको सियासती दूध के घोल में सेकुलरिज्म का पानी बना कर मिला देते है और अगर इस तरह के सियासतदाओं की जानिब मै कहता हूँ की यह हरी घास में छुपे बैठे जहरीले न दिखाई देने वाले हरे आस्तीन के सांप है तो मेरे इस बयान को किसी एक सियासी शख्स से जोड़ दिया जाता है. बटला हाउस काण्ड के दो साल बाद कांग्रेस के एक मेहरबान नेता आज़मगढ़ जाने की पेशकश करतें है. सरकार आपकी सरकार है, आप दो सालों तक सो क्यूँ रहे थे और दो सालों बाद यकायक जागे है. मेरे भाई रावण का भाई कुम्भकरण भी सिर्फ छः महीने ही सोता था, आप तो कुम्भकरण को भी पीछे छोड़ दिए है.
शेहीद हेमंत करकरे ने मुंबई के आतंकी कसब को भी पकड़ा, वहीं मालेगांव की आतंकी साध्वी प्रज्ञा को भी कानूनी घेरे में लिया. आतंकवाद इस्लाम का वाहिद चेहरा नहीं है. डॉ. कलाम, हवालदार अब्दुल हमीद, डॉ. जाकिर हुसैन, मौलाना आज़ाद, डॉ. फखरुद्दीन अली अहमद, श्री हामिद अंसारी भी तो मुसलमान है. मुसलमान की हिंदुस्तानियत पर शक मुल्क की बहदूदी और तरक्की के खिलाफ है. कुछ कट्टर हिन्दू भाई इल्जाम लगा सकते है कि मै मुस्लिम तुष्टीकरण की बात कह रहा हूँ, दुनिया में सबसे अधिक तादात में मुसलमान मलेशिया में है. हिन्दुस्तानी मुसलमान हिन्दुस्तान में अल्पसंख्यक होने के बावजूद संख्या में मलेशिया से अधिक है और कहीं यह बिदक गया तो ज्यादा नुकसान हिन्दू भाइयों का ही होगा. जरूरत हमवारी की है. हमी हम है तो क्या हम है, तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो, मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा. ‘ह’ से हिन्दू और ‘म’ से मुसलमान, इस सुर के बिना हिन्दुस्तान में खुशहाली का सरगम नहीं बज सकता है, बाबरी मस्जिद के भड़काऊ तकरीर से अधिक तालीम और रोजगार की जरूरत है, शायद इसीलिये और दूसरी मुस्लिम तंजीमों के मुकाबले मुसलमानों ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में डॉ अयूब की पीस पार्टी को मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी से कहीं कहीं ज्यादा तबज्जो दी. आतंकवाद का एक चेहरा दहशतगर्दी है, तो दूसरा चेहरा वो सभी सियासतदा है जो दहशतगर्दी के लिए मुसलमानों को मजबूर करतें है. मुस्लिमों के मुफीद के लिए दवा, तालीम, रोजगार के अवसर जब तक आम मुसलमानों की बजाय अफसरशाहों और मौक़ा परस्त नेताओं की जेब तक सीमित रहेंगे, आतंकवाद अपने कई चेहरों के साथ कभी इस्लाम के नाम पर कभी नक्सलवाद के नाम पर मुल्क में बदहाली करता रहेगा. इससे अगर बचना है तो सियासत के दोमुहे सापों के हर रोज़ बदलते चेहरों को पढ़ने की लियाकत होनी चाहिए. आखिर क्या कहूँ,
“जब भी जी चाहे नए चहरे लगा लेते है लोग, एक चहरे पर कई चहरे लगा लेते है लोग.”
फरवरी-3
देश की आज़ादी के ६० से भी अधिक वर्षों के बाद भी उत्तर प्रदेश देश के सबसे अधिक पिछड़े राज्यों में गिना जाता है. क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से उत्तर प्रदेश दुनिया के अधिकतर देशों से बड़ा है और अगर विशेषज्ञों की माने तो इतना बड़ा अकार प्रदेश के विकास के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा है. प्रदेश का पूर्वी हिस्सा जो कि पूर्वांचल के नाम से जाना जाता है, बाकी प्रदेश के मुकाबले सबसे ज्यादा पिछड़ा है. यहाँ की यह बदहाली औद्योगिक शून्यता, रोजगारपूरक शेक्षणिक संसाथानो की कमी, कुटीर उन्द्योगों की उपेक्षा के कारण उत्पन्न हुई है. जबकि प्रदेश से अलग किया हुआ उत्तराँचल तुलनात्मक ढंग से हर क्षेत्र में आगे निकल चुका है. किसी समय चीनी उद्योग के लिए सारे देश में विख्यात देवरिया जिले की अधिकतर चीनी मिले या तो बंद है या फिर बंदी की कगार में है. कमोवेश यही स्थित पूर्वांचल की अधिकतर चीनी मिलों की है. यही हाल मऊ की स्वदेशी काटन मिल, परदहा की काटन मिल, बहादुरपुर और जौनपुर की स्पिनिंग मिल का है. यही नहीं हज़ारों लोगों को रोजी-रोटी देने वाला गोरखपुर का उर्वरक कारखाना दशकों से बंद पडा है. इसी तरह पूर्वांचल के कुटीर, कालीन, सिल्क, हथकरघा, पातरी व् अन्य उद्योग भी बहुत बुरी स्थित में है.
पूर्वांचल में सोनभद्र एक ऐसा इलाका है जहां की तमाम खनिज संपदा का दोहन कर प्रदेश सहित देश के अन्य प्रान्तों में भेजा जाता है. बीजापुर, अनपारा, शक्तिनगर, रेनूकोट, ओबरा, टांडा इत्यादि विद्युत् उत्पादन ग्रहों से उत्पन्न बिजली का अधिकाँश हिस्सा अन्य प्रान्तों में भेज दिया जाता है. पूर्वांचल के जिलों को उनकी आवश्यकता भर की भी बिजली नहीं दी जाती है, जिससे उनका विकास बिलकुल ठप्प पडा है. पर्यटन की द्रष्टि से पूर्वांचल में बहुत अधिक क्षमता है, जिसमे वाराणसी, कुशीनगर, इलाहाबाद, अयोध्या, फैजाबाद, गोरखपुर, बस्ती, मगहर, आज़मगढ़ इत्यादी में स्थित पर्यटन स्थल उल्लेखनीय है. परन्तु उपेक्षा की वजह से इन सारे स्थानों की क्षमता का एक चौथाई भी दोहन नहीं किया गया है. हद तो यह है कि गरीबी और बदहाली से परेशान पूर्वांचलवासी जब रोजी-रोटी की तलाश में अन्य प्रान्तों में जाते है तो उन्हें पूर्वांचली कह कर के अपमानित किया जाता है. बात तो यहाँ तक बढ़ गयी है कि भाषा और क्षेत्र के नाम पर आज-कल पूर्वांचलियों को मारा-पीटा भी जा रहा है.
अभी तक पार्टी की मर्यादा में बंधे होने की वजह से मै पूर्वांचल और अन्य छोटे राज्यों के निर्माण का समर्थन नहीं कर सका था. परन्तु अब समाजवादी पार्टी से बाहर आने के बाद मै खुले तौर पर कह सकता हूँ कि उत्तर प्रदेश के विकास के लिए प्रदेश का छोटे राज्यों में बटवारा करके के पूर्वांचल, हरित प्रदेश और बुंदेलखंड का निर्माण आवश्
फरवरी-4
ब्रिटिश भारत में हुए १९४३ के आकाल ने ४० लाख से भी अधिक लोगों की जान ली थी. इस आकाल के वर्षों बाद तक सारा देश इसे नहीं भुला पाया था. परन्तु १९६७ और १९७८ के बीच हुयी “हरित क्रांति” ने हमारे देश की खद्यानों की समस्या को लगभग ख़त्म कर दिया था और धीरे-धीरे हमारे यहाँ सर्पलस अनाज पैदा होने लगा. लगातार बढ़ती जनसंख्या के बावजूद, हमारे अनाज के गोदाम वर्षो तक भरे रहे और हम भारी मात्रा में अनाज का निर्यात भी करते रहे. परन्तु पिछले कई वर्षों में हमने अनुभव किया है कि हमारे किसानो की उत्पादन क्षमता में ठहराव सा आ गया है. जिस तरह से जलवायु परिवर्तन और रितुवों का मिजाज़ मनमाना हो रहा है, शायद फसलों का उत्पादन बढ़ने की जगह घटने लगे. जनसँख्या वृद्धि की दर तो कम हो सकती है परन्तु शायद आने वाले ५० वर्षो में भी हम जनसंख्या वृद्धि को स्थिर न कर पाए. इन सभी कारणों की वजह से आने वाले वर्षों में “फ़ूड ग्रेन” की स्थित काफी भयावी सी दिखती है और भगवान न करे की फिर कभी दोबारा १९४३ के आकाल जैसी स्थित का सामना हमें करना पड़े.
हमें पता है कि उपजाऊ बीज, बेहतर खाद और कीटाणु नाशकों के इस्तेमाल इत्यादि की वजह से हरित क्रांति संभव हो पायी थी परन्तु जलवायु परिवर्तन की वजह से शायद अब इन सबका इस्तेमाल करके उत्पादन और अधिक ना बढ़ाया जा सके. साथ ही साथ हमें यह भी ध्यान रखना है कि अधिक रसायनों का उपयोग न सिर्फ मानवीय स्वाथ्य के लिए ख़राब है बल्कि इसके दूरगामी प्रभाव प्रकति पर भी पड़ते है. इसलिए आने वाली पीढ़ियों का पेट भरने के लिए अब हमारे सामने “जेनेटिक इंजीनिअरिंग” के अलावा और कोई साधन नहीं है. हमारे देश ही नहीं सारी दुनिया में आज जेनेटिक इंजीनिअरिंग के द्वारा उत्पादन बढाने के अथक प्रयास चल रहे है.
इस बात में दो राय नहीं कि अब हमें जेनेटिक इंजीनिअरिंग को बढ़ावा देने की सख्त जरूरत है परन्तु किसी भी विज्ञान और तकनीक के कुछ नुकसान भी होते है. जैसे की जेनेटिकली मोडीफाइड फ़ूड का खाने वाले के स्वास्थ पर गलत असर पड़ सकता है, मिट्टी की गुणवत्ता हमेशा के लिए खराब हो सकती है. परन्तु भारत जैसे गरीब कृषि प्रधान देश में इसका बहुत ही खराब असर किसानो की स्वात्यता पर पड़ सकता है. यह तो सब को पता है कि जेनेटिक इंजीनिअरिंग एक बहुत ही महंगी विधा है, इसलिए इस विज्ञान के द्वारा शोधित बीज की कीमत बहुत ही अधिक महंगी होगी और काफी हद तक संभव है की इसमे निजी कंपनियों की भी भागेदारी होगी. एक बार अगर किसान इस तरह के बीज का इस्तेमाल करना शुरू करता है तो वह बीज के लिए पूरी तरह से निजी कंपनियों पर आश्रित हो जाएगा और संभव है किसानो को शोषण का भी सामना करना पड़े. इन सभी कारणों की वजह से सरकारों को इस विषय को काफी गंभीरता से लेने की जरूरत है जिससे के इस विज्ञान का उपयोग मानवता के हित में हो जाये परन्तु इसके नकारात्मक प्रभावों को भी दूर किया जा सके.
पिछले कुछ दिनों में बी.टी. बैगन का मामला काफी गर्म रहा है. बी.टी. बैगन के अडोप्शन के खिलाफ और इसके पक्ष में अलग-अलग तरह के तर्क रखे गए है. हमारे पर्यावरण मंत्री को इस मसले को ले कर काफी मशक्कत करनी पडी और कई बार प्रो-फारमर लाबी के तीरों का शिकार भी होना पडा. हाल में ही मंत्री महोदय ने बी.टी. बैगन को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया. मै उनके इस निर्णय का स्वागत करता हूँ परन्तु साथ ही साथ उनको सुझाव भी देना चाहता हूँ की शायद अब हम जेनेटिकली रूपांतरित किस्मों को ज्यादा दिनों तक नजर अंदाज नहीं कर पाए. अतः आने वाले समय में हमारे किसान भाइयों के हित और उपभोक्ता के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर जेनेटिक इंजीनिअरिंग को बढ़ावा दिया जाय.
फरवरी-5
आतंकवाद के मुद्दे पर दिल्ली की बैठक में श्री नरेन्द्र मोदी फिर बोले. अबकी वह यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी जी के विरुद्ध नहीं बल्कि केन्द्रीय गृह मंत्री श्री चिदम्बरम एवं प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह की तारीफ़ में बोले. आतंरिक सुरक्षा एवं आतंकवाद पर तत्परता से कार्यवाही करने के केन्द्रीय सरकार के उद्यम को उन्होंने खूब सराहा. नरेन्द्र भाई काफी चर्चित व्यक्ति है. इनकी तारीफ़ और नफ़रत दोनों से बड़ी चिंता होती है. कहीं उनकी इस प्रशंसा से सरकार के धर्म निरपेक्ष चहरे पर साम्प्रदायिकता की कालिख न लग जाए, ठीक वैसे ही जैसे कि गुजरात के पर्यटन के प्रचार के अमिताभ बच्चन जी के निर्णय पर खूब कोलाहल मचा. चाहे हम माने या ना माने, चाहे या ना चाहे, इस लोकशाही में चुनावों के महासमर में विजयी चर्चित और विवादित चेहरों को हमें सहना ही पडेगा.
डाक्टर राम मनोहर लोहिया किसी परिस्थिति एवं समस्या के गुणदोष में मात्र भेद-भाव के सिद्धांत को मानते थे. यह मात्र भेद-भाव का सिद्धांत आज भी व्यवहारिक एवं प्रासंगिक है. मोदीजी की प्रशासनिक चुस्ती, राजनैतिक तत्परता, त्वरित गति से गलत-सही निर्णय लेने की क्षमता को सराहे बिल्कुल नहीं पर नज़र में जरूर रखे और धार्मिक उन्माद के आधार पर प्रायोजित हिंसा की प्रवत्ति को राजनीति कहने की खूब निंदा भर्त्सना करे. श्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व के दोनों पहलुओं के बीच की इस महीन लकीर को यदि हम चिन्हित नहीं करेंगे, तो गुजरात के पर्यटन का प्रचार करने पर श्री बच्चन मोदीवादी, गुजरात के योजना बजट पर विचार करने वाले श्री मोंटेक सिंह जी भी मोदीवादी एवं मुख्यमंत्री सम्मलेन में साथ बैठने पर प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी और मोदी के द्वारा प्रशंसित गृहमंत्री श्री चिदंबरम भी पत्रकार, देश, समाज एवं यूपीए के सियासी विरोधियों की नज़र में मोदीवादी हो जाएंगे.
आखिर भारत अमेरिका तो नहीं है कि विवादित श्री मोदी का बायकाट कर दे. सभ्य सुसंकृत समाज श्री नरेन्द्र मोदी की फिरकापरस्त सियासत को तो बायकाट कर सकता है लेकिन गुजरात के चुने हुए संवैधानिक मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को, मनमोहन जी, चिदंबरम जी, मुकेश अम्बानी, अमिताभ बच्चन और ललित मोदी जैसे लोग चाह कर भी दर किनार नहीं कर सकते है. हाँ यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और कांग्रेस के युवा महासचिव श्री राहुल गांधी उनसे दूरी रख सकते है क्योंकि इश्वर की कृपा से दोनों संविधान के किसी पद की मर्यादा से मुक्त है और स्वतंत्र है. वाह रे नरेन्द्र भाई आप हिन्दुस्तान की सियासत के वह लड्डू है जो खाए पछताए, जो गुजरात जा कर ना खाए वो और ज्यादा भी पछताए. रही बात पत्रकार भाइयों की चाहे टीवी के हो या प्रिंट के, उनको एक जरूरी सलाह दे रहा हूँ,
“हर मौसम में फतवा जारी किया करो, सबको रुसवा बारी-बारी किया करो.”
फरवरी-6
पत्रकार भाइयो का कोई जवाब नहीं और हमारे राजनैतिक विरोधियो का भी, कुछ भी लिखते है और कहते है. पिछले दिनों से काफी चर्चा है कि बच्चन साहब श्री नरेन्द्र मोदी के ब्रांड एम्बैसडर बन गए है. इससे बड़ा सफ़ेद झूठ और क्या हो सकता है. बच्चन साहब अपनी नई फिल्म “पा” के लिए गुजरात गए और मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से मिले नाकि संघ के स्वयंसेवक नरेन्द्र मोदी से. यह मुलाकात कुछ वैसी ही थी जैसी संघ प्रमुख श्री सुदर्शन की मुलाकात तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह जी से पोलीथीन के इस्तेमाल पर रोक लगाने की थी. क्या सुदर्शन जी के साथ इस मुलाक़ात से मुख्यमंत्री मुलायम सिंह जी संघी हो गए? गुजरात के मुख्यमंत्री ने गुजरात के पर्यटन स्थलों के प्रचार के लिए श्री बच्चन से अनुरोध किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. फ़र्ज़ कीजिये कि श्री बच्चन गुजरात के पालिताना का प्रचार करें, तो क्या हर्ज़ है. हमारे पुराने दल समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता ने इसे जया बच्चन जी की राज्यसभा सदस्यता की अग्रिम कवायत का हिस्सा बता दिया. मेरे और श्री बच्चन के संबंधो का हवाला देते हुए मुझे भी श्री मोदी से जोड़ दिया. मुझ पर सिनेमा कलाकारों और उद्यमियों को ला कर पूंजी और साम्प्रदायिकता का घोल समाजवादी परिवार में मिलाने का आरोप लगाने वाले मेरे प्रवक्ता साथी शायद भूल गए कि विश्व हिन्दू परिषद् के अध्यक्ष श्री विष्णु हरी डालमिया के सुपुत्र श्री संजय डालमिया जी को मुझसे पहले राज्यसभा में मनोनीत करने का काम आपकी पार्टी ने किया था. और १८ वर्षों के समाजवादी इतिहास में १४ वर्ष नेत्ताजी एक पूंजीवादी अमर सिंह और बाकी चार वर्ष एक दूसरे पूंजीपति विश्वहिंदू परिषद् के अध्यक्ष के सुपुत्र सांसद संजय डालमिया के साथ गुजारे. अर्थात श्री मुलायम सिंह जी के समाजवादी इतिहास के १८ वर्षों में उनके दो घनिष्टतम सहयोगियों, पहले संजय डालमिया जी और फिर मै अमर सिंह दोनों पूंजीवादी रहे. और सिनेमावालों की बात पर, समाजवादी पार्टी को खडा करने के लिए भीड़ जुटाऊ पहला स्टार क्या श्री राज बब्बर को ले कर आपकी पार्टी आगे नहीं आई थी. शुरू के बुनियादी चार वर्षों की उसूली बात को आपके पुराने सिपाही ने ज़रा ज्यादा आगे बढ़ा डाला, माफ़ भी करिए न!
घबराइये नहीं बच्चन साहब आज श्री करुणा निधि का सम्मान चेन्नई में कर रहे है क्यूंकि श्री करुणा निधि भी तामिल फिल्मों के प्रसिद्द लेखक है. कल वामपंथी सरकार के सानिध्य में, केरल में वहाँ के प्रसिद्द मलयालम कलाकार जिन्हें आस्कर पुरस्कार मिला है, उन्हें मुख्यमंत्री केरल की उपास्थित में सम्मानित कर रहे है. इससे पहले श्री बच्चन बीमार ज्योति बसु को देखने कोलकोता भी गए थे. और आपके बता दूं कि कई मुकदमे उनके विरुद्ध दर्ज करने वाली माया सरकार अगर कहे तो बच्चन साहब ताजमहल का भी प्रचार कर देंगे. सम्पूर्ण भारत में भ्रमण कर रहे श्री बच्चन क्या हर जगह अपनी अर्धान्गिनी श्रीमती जया बच्चन जी के लिए राज्यसभा ढूंढ रहे है.
मुसलमान भाइयों को बरगलाइये मत, पालिताना और ताजमहल कोई कल्याण सिंह जी की तरह थोड़े है जो कि श्री बच्चन और अमर सिंह के सर पर चिपक जाए. प्रवक्ता जी आपके नेता श्री मुलायम सिंह ने बच्चन परिवार की भूरी-भूरी प्रशंसा की और आपने छकके गालियाँ दी. टीवी के आधे पर्दे पर आप और आधे पर आपके नेताजी, क्या कोई आपसी समन्वय नहीं है. मै आपकी तरह १४ वर्षों तक भुगता पूर्व प्रवक्ता हूँ और आप हसीन तरीन तरोताजा १४ दिन के बेचारे प्रवक्ता. आपकी हैसियत क्या जो आप बोलें आपकी तो जीभ है जुबान किसी और की और जिनकी जुबान है उनके लिए बस इतना कहना है कि-
“मेरे बाद वफ़ा का धोखा और किसी को मत देना, लोग करेंगे जिक्र तेरा तो सर मेरा झुक जाएगा.”
बहुत दिनों बाद लिख रहा हूँ, माफ़ करिएगा, कोशिश रहेगी, चलता रहूँ और लिखता रहूँ.
फरवरी-7
देश की आज़ादी के ६० से भी अधिक वर्षों के बाद भी उत्तर प्रदेश देश के सबसे अधिक पिछड़े राज्यों में गिना जाता है. क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से उत्तर प्रदेश दुनिया के अधिकतर देशों से बड़ा है और अगर विशेषज्ञों की माने तो इतना बड़ा अकार प्रदेश के विकास के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा है. प्रदेश का पूर्वी हिस्सा जो कि पूर्वांचल के नाम से जाना जाता है, बाकी प्रदेश के मुकाबले सबसे ज्यादा पिछड़ा है. यहाँ की यह बदहाली औद्योगिक शून्यता, रोजगारपूरक शेक्षणिक संसाथानो की कमी, कुटीर उन्द्योगों की उपेक्षा के कारण उत्पन्न हुई है. जबकि प्रदेश से अलग किया हुआ उत्तराँचल तुलनात्मक ढंग से हर क्षेत्र में आगे निकल चुका है. किसी समय चीनी उद्योग के लिए सारे देश में विख्यात देवरिया जिले की अधिकतर चीनी मिले या तो बंद है या फिर बंदी की कगार में है. कमोवेश यही स्थित पूर्वांचल की अधिकतर चीनी मिलों की है. यही हाल मऊ की स्वदेशी काटन मिल, परदहा की काटन मिल, बहादुरपुर और जौनपुर की स्पिनिंग मिल का है. यही नहीं हज़ारों लोगों को रोजी-रोटी देने वाला गोरखपुर का उर्वरक कारखाना दशकों से बंद पडा है. इसी तरह पूर्वांचल के कुटीर, कालीन, सिल्क, हथकरघा, पातरी व् अन्य उद्योग भी बहुत बुरी स्थित में है.
पूर्वांचल में सोनभद्र एक ऐसा इलाका है जहां की तमाम खनिज संपदा का दोहन कर प्रदेश सहित देश के अन्य प्रान्तों में भेजा जाता है. बीजापुर, अनपारा, शक्तिनगर, रेनूकोट, ओबरा, टांडा इत्यादि विद्युत् उत्पादन ग्रहों से उत्पन्न बिजली का अधिकाँश हिस्सा अन्य प्रान्तों में भेज दिया जाता है. पूर्वांचल के जिलों को उनकी आवश्यकता भर की भी बिजली नहीं दी जाती है, जिससे उनका विकास बिलकुल ठप्प पडा है. पर्यटन की द्रष्टि से पूर्वांचल में बहुत अधिक क्षमता है, जिसमे वाराणसी, कुशीनगर, इलाहाबाद, अयोध्या, फैजाबाद, गोरखपुर, बस्ती, मगहर, आज़मगढ़ इत्यादी में स्थित पर्यटन स्थल उल्लेखनीय है. परन्तु उपेक्षा की वजह से इन सारे स्थानों की क्षमता का एक चौथाई भी दोहन नहीं किया गया है. हद तो यह है कि गरीबी और बदहाली से परेशान पूर्वांचलवासी जब रोजी-रोटी की तलाश में अन्य प्रान्तों में जाते है तो उन्हें पूर्वांचली कह कर के अपमानित किया जाता है. बात तो यहाँ तक बढ़ गयी है कि भाषा और क्षेत्र के नाम पर आज-कल पूर्वांचलियों को मारा-पीटा भी जा रहा है.
अभी तक पार्टी की मर्यादा में बंधे होने की वजह से मै पूर्वांचल और अन्य छोटे राज्यों के निर्माण का समर्थन नहीं कर सका था. परन्तु अब समाजवादी पार्टी से बाहर आने के बाद मै खुले तौर पर कह सकता हूँ कि उत्तर प्रदेश के विकास के लिए प्रदेश का छोटे राज्यों में बटवारा करके के पूर्वांचल, हरित प्रदेश और बुंदेलखंड का निर्माण आवश्यक है.

फरवरी-8
आज मुझे तेलंगाना के साथियों ने दिल्ली में प्रदर्शन लिए याद किया. जंतर-मंतर पहुंचते ही मैने काले कोट वाले वकीलों के जखीरे को देखा. यह सभी विधिवेत्ता मुट्ठी बांधे अपने दांतों को भीचते हुए तेलंगाना की मांग का इजहार बड़े ही गुस्से से कर रहे थे. पिंजरे से आजाद पंछी की तरह समाजवादी निरंकुशता की कैद से आजाद मै भी वहाँ पहुंचा था. कलावती के विदर्भ के भी काफी लोग मिले जहाँ किसान आज भी आत्महत्या करते हुए असहज म्रत्यु का वरण कर रहे है. आज पूरे देश के संसदीय एवं विधानसभा क्षेत्रों की नई सीमारेखाओं का परिसीमन हो रहा है. घुट रही जन आकान्छाओं एवं क्षेत्रीय स्वाभिमान का मर्दन करते हुए तानाशाह राजनेता मात्र अपनी गद्दी के लिए चिंतित है. कुछ मायावती जी जैसे चालाक चालाक नेता है जो बिल्कुल सही प्रतीकात्मक राजनीति करते है. सुखदेव राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू सिंह कुशवाहा और दारा सिंह चौहान को पद देदिया लेकिन इनके कहने से इनके समाज को और कहीं प्रतिनिधित्व मिलेगा, राम जाने? इसी तर्ज पर बहन जी उत्तर प्रदेश के बटवारे का बयान तो दे डाली लेकिन उनकी बहुसंख्यक सरकार विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराने की प्रक्रिया से हिचकिचा रही है. प्रतीकात्मक राजनीति की बेताज महारानी चाहे कुछ करे या न करे लेकिन ढपोरशंख की भाँती वादा करने में बिल्कुल पीछे नहीं है
मेरी भूतपूर्व पार्टी के अभूतपूर्व नेता का तो जवाब नहीं. उनकी पूरी राजनीति विसंगतियों की है. उत्तराखंड को प्रथक करने का प्रस्ताव करके, विरोध कर डाला. आजतक उत्तराखंड में उनकी स्वीकार्यता न है और न होगी. यूपीए सरकार बचा कर कांग्रेस की इच्छा होने के बावजूद गठबंधन नहीं किया और कांग्रेस की राजनीति को पुनर्जीवन दे कर कर भी यथावत दुश्मन भी बने रहे. वामपंथियों के साथ जा कर नारायणन को कांग्रेस के समर्थन से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करके कलाम साहब के पक्ष में अटलजी को सुझाव दे डाले. सोमवार दिल्ली की प्रेसवार्ता में एस.पी. जैसवाल, जगदम्बिका पाल, जितिन प्रसाद की सीट छोडी और दूसरे ही दिन पलटवार करते हुए अपना उम्मीदवार दे डाला. लोकसभा चुनावों में कई उम्मीदवारों के टिकट एक ही दिन में दो-दो बार बदल डाले. हाल में ही मेरे मामले मेरी उलझनों को सुलझाते-सुलझाते एक ब एक मुझे ही मेरे अपमान की ज्वाला में अपने अनुज के प्रायोजित शब्दबाण से झुलसा गए. अब पूर्वांचल और उत्तरप्रदेश के बटवारे को रोकने की मुहीम चला रहे है. यहाँ आज़मगढ़ का यादव भी चींख-चींख कर कह रहा है “ए भाई कबले हमहने के ईहाँ इटावा राज करी, कल्बों हमहनों क आपन राज आई की ना”. इस जनवाणी की व्याख्या मुझसा तुच्छ प्राणी क्या करे. ईश्वर करे की मेरे भूतपूर्व दल के अभूतपूर्व नेता उत्तराखंड की भाँती पूर्वांचल, हरितप्रदेश और बुंदेलखंड की जनाभावनों के प्रतिकूल अपने राजनैतिक आचरण को सुधारें वरना उन्हें राजनीति के हाशिये पर जा कर अपने ही गृह जनपद इटावा के प्रसिद्द कवि श्री गोपालदास नीरज का यह गीत न गाना पड़े,
“कारवाँ गुजर गया और हम खड़े-खड़े गुबार देखते रहे.”

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