Sunday, March 7, 2010

ब्लॉग के गलियारे में महिला आरक्षण की गूंज

(''हिंदुस्तान'' से साभार)
राष्ट्रपिता ने कभी कहा था कि 'जिस कानून को बनाने में स्त्री का कोई हाथ नहीं था और जिसके लिए सिर्फ पुरुष ही जिम्मेदार है, उस कानून ने स्त्री को लगातार कुचला है..।' आज एक कानून जब महिलाओं के लिए बनना है तो उस पर बहस बेहिसाब छिड़ी है। इस बहस की गूंज ब्लॉग के गलियारे में भी सुनी जा रही है। बापू के उपरोक्त वक्तव्य पर 'समाजवादी जनपरिषद' नामक ब्लॉग ने टिप्पणी की है। सोमवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर संसद में महिला आरक्षण विधेयक को पेश किया जाएगा। इस मुद्दे पर राजनीतिक गलियारे में जमकर बहस हो रही है और इसी बहस को ब्लॉग जगत आगे बढ़ा रहा है। 'नया जमाना' ने 'औरत को बांटने वाली शक्तियां' शीर्षक से टिप्पणी की है, ''महिलाओं का सन 1947 के विभाजन ने जो अ-राजनीतिकरण किया उसी का कालान्तर में हिंदुत्ववादी संगठनों ने जुझारू साम्प्रदायिक विचारधारा के साथ इस्तेमाल किया। यह विड़बना ही कही जाएगी कि जिस समय औरतें अपनी राजनीतिक जमीन तैयार कर रही थीं, राजनीतिक स्पेस तैयार करने में लगी थीं, औरतों के व्यापक हितों से जुड़े सवाल उठा रही थी, अपना जनाधार व्यापक बनाने की कोशिश कर रही थीं। औरतों के लिए राजनीतिक माहौल अनुकूल बन रहा था, ठीक उसी समय औरतों को साम्प्रदायिक विभाजन और साम्प्रदायिक हिंसा का सबसे ज्यादा सामना करना पड़ा।'' अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को लेकर 'धृतराष्ट्र' ने टिप्पणी की, ''दुनिया के साथ-साथ हम लोग भी आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाकर महिलाओं को सम्मानित करने जा रहे हैं। मां और बहनों के लिए कुछ ज्यादा सोचने की आदत में छत्तीसगढ़ियों का कोई सानी नहीं है। 'भारतीय पक्ष' ने 'चौखट तक सिमटा पंचायती राज' शीर्षक से टिप्पणी की है, ''घूंघट की ओट से निकालकर महिलाओं को सामाजिक जीवन और राजनीति में शामिल करने के लिए भले ही लाख कोशिशें कागजों पर चल रही हों लेकिन अभी तक उनका धरातल पर क्रियान्वयन उतना नहीं हो पा रहा है जितना होना चाहिए। यह तो सच है कि महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ा है। हर चुनाव में महिलाओं को अपने पक्ष में करने के लिए हर संभव कोशिशें की जाती हैं लेकिन सरपंच जैसे सार्वजनिक पदों पर आसीन ग्रामीण महिलाएं न तो घर के पुरुषों की सहमति के बिना मतदान कर पा रही हैं और न ही स्वतंत्र रूप से पद के अनुरूप निर्णय ले पा रही हैं।''
'संसदनामा' ने इस विधेयक पर कविता के रूप में मौजू टिप्पणी की है, ''पटना में कुमार ने भाजपा-कांग्रेस के सुर में सुर मिलाया/ दिल्ली में शरद यादव और लालू यादव के अलग सुर/ लीडरशिप शिखर सम्मेलन में पीएम ने सांसदों से समर्थन मांगा/ भाजपा की आपात बैठक के बाद सुषमा बोली- ये अटल आडवाणी के सपनों का बिल/ बिहार और यूपी की सियासत में प्रतिद्वंद्वी दोस्ती के मोरचे पर/ महंगाई का मुद्दा दफन, कांग्रेस की बांछे खिली..मार लिया मैदान।''

( सांसदजी डॉट कॉम)

2 comments:

अफ़लातून said...

’पिछड़े नेता और औरतों के लिए आरक्षण’ इस शीर्षक से ’समाजवादी जनपरिषद’ ने इस विषय पर आज एक और पोस्ट प्रकाशित की है ।

राम लाल said...

एक माइक्रोपोस्ट यहां भी है
ये कैसा आरक्षण है जी ?